न्यूनतम वेतन के लिए संघर्ष करती नर्स

न्यूनतम वेतन के लिए संघर्ष करती नर्स

Update: 2018-05-23 15:27 GMT

जनवरी 2016 में एक याचिका के संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने निजी अस्पतालों में नर्सों के काम करने के हालात पर केन्द्र सरकार से चार हफ्तों के भीतर एक एक्सपर्ट कमेटी बनाने के लिए कहा। यह कमेटी देखे कि निजी अस्पतालों में नर्स किन हालात में काम करने को मजबूर है। केंद्र की बनाई कमेटी की रिपोर्ट में की गई सिफारिशों के आधार पर सरकार को एक कानून भी बनाना होगा ताकि नर्सों का शोषण न हो सके। 19 जुलाई 2017 की खबर के मुताबिक सरकार ने लोकसभा में आश्वासन दिया कि यह सुनिश्चित किया जाएगा कि निजी अस्पतालों में काम करने वाली नर्सों को भी सरकारी अस्पतालों की नर्सों के बराबर वेतन मिले।

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री जेपी नड्डा ने सदस्यों को आश्वासन दिया और कहा कि सरकार ने इसके लिए एक समिति बनाई थी। उसकी सिफारिशों के अनुसार निजी क्षेत्र में 200 बिस्तरों के अस्पताल में काम करने वाली नर्स का वेतन सरकारी अस्पताल में काम करने वाली नर्स के वेतन के बराबर हो और 100 बिस्तरों तक के निजी अस्पताल में काम करने वाली नर्स को सरकारी अस्पताल की नर्स के वेतन से 10 फीसदी कम मिलना चाहिए। 50 बिस्तरों के अस्पताल में यह वेतन सरकारी अस्पताल में मिलने वाले वेतन की तुलना में 25 प्रतिशत कम हो। इसी रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि प्राइवेट सेक्टर में काम करने वाली नर्सों की हालत बेहद दयनीय है। देश में स्वास्थ्य सेवाओं की बढ़ती मांग को पूरा करने हेतु स्वास्थ्य संबंधी सेवाएं प्रदान करने के लिए सार्वजनिक बुनियादी ढांचा पर्याप्त नहीं है इसलिए निजी स्वास्थ्य सेवाओं को प्रोत्साहित किया गया। निजी स्वास्थ्य सेवाओं से स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार तो हुआ है लेकिन निजी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में काम करने वाली नर्सों और अन्य कर्मचारियों को वेतन बहुत कम दिया जाता है। नर्सों को वेतन, कामकाजी घंटे और बुनियादी सुविधाओं के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता है। इस संदर्भ में देखे तो केरल की नर्सों ने जुलाई 2017 से अनिश्चितकालीन हड़ताल की और लगभग 200 दिनों के बाद निजी अस्पताल में नर्सों के वेतन को बढ़ाकर 20,000 किया गया जबकि सबसे ज्यादा नर्से केरल राज्य से होती है। जब केरल के निजी अस्पतालों में काम करने वाली नर्सों के हालात ऐसे है तो बाकी राज्यों के निजी अस्पताल में काम करने वाली नर्सों के हालात का अंदाजा ही लगाया जा सकता है।

 


इसी संदर्भ में देश की राजधानी दिल्ली के रोहिणी में निजी हॉस्पिटल सरोज सुपरस्पेशलिटी सेक्टर-14 और सरोज मेडिकल इंस्टीट्यूट सेक्टर-19 में काम करने वाली नर्सें इस तपती दोपहरी में 13 मई से अपनी मांगों के लिए धरने पर बैठी हैं। वह अपने लिए काम-काज के घंटे, वेतन और बेहतर सुविधाओं की मांग कर रही है। इन नर्सों को वेतन के रूप में 11 हजार से 13 रुपये तक दिए जाते हैं। दिल्ली के इन बड़े निजी अस्पतालों में चेजिंग रूम और शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाओं तक का अभाव है। इन अस्पतालों में काम करने वाली नर्सों को 30 अर्जित अवकाश (अर्नड लीव) के बजाये सिर्फ 15 अर्जित अवकाश ही दिये जाते हैं। उन्हें एक ही समय में 3-4 मरीजों की देखभाल करनी पड़ती है। दिल्ली के इन निजी अस्पतालों में काम करने वाली नर्सों को भी केरल की नर्सों की तरह लंबा संघर्ष करना पड़ेगा जबकि पिछले साल सरकार ने निजी अस्पतालों में काम करने वाली नर्सों को बराबर वेतन दिये जाने की बात कही थी। उसके बावजूद आज भी निजी अस्पतालों में नर्सों को न्यूनतम वेतन तक नहीं मिलता है।

12 मई को अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस मनाया गया। इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि नर्सिंग एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें कार्यरत बेटियों की संख्या हमेशा से अधिक रही है। नर्सों की सेवा और समर्पण भावना की जरूरत बच्चों-बूढ़ों, स्त्री-पुरुषों, गरीब-अमीर और ग्रामीण और शहरी सब लोगों को होती हैं। वे दूर-दराज के ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर युद्ध क्षेत्र की भीषण परिस्थितियों में अपनी सेवाएं प्रदान करती हैं। उन्होंने कहा कि भारत में अभी प्रति 1000 लोगों पर 1.7 नर्स हैं जबकि विश्व का औसत 2.5 है। उन्होंने यह भी कहा कि देश को स्वस्थ रखने में नर्सिंग की सेवा प्रदान करने वाले आप सभी लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका है।

 

हमारे देश के राष्ट्रपति स्वास्थ्य क्षेत्र में नर्सिंग के महत्व को समझते हैं और वह नर्सों के औसत को बढ़ाने की बात भी करते हैं। लेकिन देश में निजी स्वास्थ्य सेवाओं में काम करने वाली नर्सों के हालातों में सुधार नहीं होगा तो लड़कियों क्यों नर्सिंग के पेशे को चुनेंगी। सरकार द्वारा बनाई समिति के अनुसार ही नर्सों को वेतन दिया जाना चाहिए और केन्द्र सरकार को नर्सों के लिए एक कानून भी बनाना चाहिए जिसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने फैसले में कहा था। जब तक नर्सों के हालात नहीं सुधरेंगे तब तक स्वास्थ्य क्षेत्र में भी सुधार नहीं हो सकता।
 

Similar News

The City That Reads

Siddaramaiah Fights It Out

Mayawati’s Sad Elephant

A Warrior No More

A Taste Of Lucknowi Kitchens