पाकिस्तान के चुनाव : भारत के मतदाताओं के लिए आईना

पाकिस्तान में सैन्य संस्कृति के विस्तार की वजहें

Update: 2018-07-24 11:52 GMT

पाकिस्तान के निर्माण की परिस्थितयां कुछ ऐसी रही कि जन्म से ही कई प्रकार की शासकीय संस्थाएं. जो किसी भी राज्य के चलने के लिए आवश्यक होती हैं , काफी कमज़ोर रही जिससे एक मात्र संगठित इकाई , पाकिस्तान फ़ौज को सत्ता में आने का मौका मिला . शुरू से ही सत्तारूद पार्टी मुस्लिम लीग जन पार्टी नहीं थी. उसके पास केवल एक राष्ट्र व्यापी नेता था, जिन्ना. बाकी कोई भी, लियाकत समेत, किसी की ऐसी हैसियत नहीं थी की वह देश को नेतृत्व दे सके. इससे पहले राष्ट्र में स्थायित्व आता , जिन्ना की मौत हो गई .

प्रारम्भिक वर्षों में नागर समाज का निर्माण शुरू नहीं हो पाया था और अधिकारी वर्ग का संगठित होना बाकी था . यह एक ऐसा राज्य बना जिसके नेता ऐसे स्थान से आये थे जो पाकिस्तान के हिस्सा नहीं बने. इस प्रकार इन नेताओं की बोली/भाषा जिन के ऊपर यह शासंन कर रहे थे उनसे भिन्न थे. . कश्मीर युद्ध के कारण फ़ौज की शक्ति भी बढ़ गयी थी. अन्य संस्थाओं के कार्यकुशल ना होने के कारण फ़ौज को यह मौका मिला और वर्ष १९५० से और विशेष तौर पर १९५८ के बाद शासन तंत्र में फ़ौज की एक भागीदारी रही है. सामने सरकार के कोई भी नेता रहा हों , राजकीय ढाँचे, राजसत्ता में , फ़ौज एक विशिष्ठ स्थान रखे हुए है वह शासक वर्गों का एक घटक है .इससमय यह आम राय है फ़ौज और इम्रंरान खान की पार्टी में समझौताहो चूका है और फ़ौज इसबात को सुनिश्चित करने में लगी है के इमरान के पार्टी की विजय हो.

यह बात रेखांकित करने की ज़रुरत है कि पाकिस्तान की फ़ौज और तीनों प्रमुख पार्टियां शासक वर्गों का समर्थन करती हैं .इनमें कोई भी विद्रोही या प्रगातिशील पार्टी नहीं है जो सत्ता में बदलाव लाना चाह्ती हो.

ये शासक वर्गों के घटकों के गठजोड़ की पार्टियां हैं. . इन में अंतर इतना है कि कोई पार्टी अमुक घटक पर अधिक जोर देती है तो दूसरी दुसरे घटक पर . इनमें सामन्ती वर्ग , पूंजीपति वर्ग और उसके विभिनं हिस्से .

विश्लेषकों का मत है की फ़ौज आम तौर पर भूमिपतियों के पक्ष में रही हैं. तथा पूंजीपतियों के लाभ की नीतियाँ फ़ौज के रणनैतिक लक्ष्यों के विरोध में है. जैसे पूंजीपति वर्ग भारत से अच्छे सम्बन्ध चाहता है . उनके प्रतिनिधि, नवाज़ शरीफ, इस बात के लिए प्रयत्नशील रहते हैं और उनका फ़ौज से टकराव का यह एक बहुत मुख्य बिंदु है. इसप्रकार के सम्बन्ध विभिन्न घटकों के हैं विभिन्न राजनातिक संगठनों के साथ .

पाक्सितान के इस समय के आर्थिक संकट इन पूंजीपति वर्गों को इसे प्रधान रूप से संघर्ष करना होगा .हर देश की तरह यह वर्ग भी राजनैतिक दलों को समर्थन देता है और उन्हें आर्थिक सहायता भी और इसके द्वारा दोनों आपसी सौदेबाजी करते हैं जो सत्ता में आने और उसके अलावा भी ,राजनेता पूंजीपतियों की मदद में जुटे रहते हैं दोनों का सम्बंध घनिष्ठ है और राजनेता इस वर्ग .के ही राजनीतिक प्रतिनिधि की हैसियत से काम करता है . इसलिए इस वर्ग के विचार जानने ज़रूरी हैं .

पाकिस्तान और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष

इन व्यवसायी वर्गों का मानना है की पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के पास जाना होगा .

इस वर्ग का मानना है की नीतिया ऐसी हो रोज़गार पैदा करे . निर्यात में वृद्धि हो और आयातों में कमी. ऊर्जा के दर क्षेत्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी हो; विनिमय दर यथार्थ पर टिकी हो; असंगठित क्षेत्रों से संगठित को बराबरी का दर्जा मिले . अ. मु. कोष से कर्जा लेने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है.;चीन-पाक आर्थिक गलियारा में लागत मूल्य , वित्तीय आमद, और लाभ के बारेमें पारदर्शी तरीके से खुलासा किया जाय ; विशेष आर्थिक परिक्षैत्र में( एस ई जेड) में उद्योगों की स्थापना की जाय, बिना वर्तमान उद्योगों को क्षति पहुंचाए हुए ,

उपरोक्त से साफ है की व्यव्सायी वर्ग के कंट्रोल में समस्त नीतियाँ नहीं हैं. वह आश्वस्त नहीं है की भविष्य में क्या होने जा रहा है. उसे सी पी ई सी से भी बहुत आश्वस्त नहीं है और कई मुक्त व्यापार समझौते को वह चाहता है कि दोबारा समीक्षा की जाय और उन्हें ज़रुरत पड़ने पर बद्ला जाय क्योंकि इससे उसका नुक्सान हो रहा है.

गत सरकार के समय के खुले आयात का नतीजा आज सामने आ रह है जब विदेशी कारोबार में घाटा बढ़ता जा रहा है.

डौन अखबार में तीनो बड़ी पार्टियों के घोषणा पत्रों का विश्लेषण

कराची के डौन अखबार ने तीनो बड़ी पार्टियों के घोष्णा पत्रों में से पांच प्राथमिकता के बिंदु रेखांकित किये हैं जिनहें ज्यों का त्यों नीचे दे रहे हैं .

इससे पहले एक बात और नोट कर ले .तीनों पार्टियों में से किसी ने भी ईश निंदा के क़ानून को ख़तम करने अथवा अहमदियों के विरोध में बने कानूनों को समाप्त करने और उनका अलगाव ख़तम करने के लिए एक शब्द भी नहीं बोला है.

डौन के अनुसार तहरीक-इ –इन्साफ ने अपने घोषणा पत्र में : मानव विकास ; आर्थिक उन्नति,भ्रष्टाचार उन्मूलन ,संघ को सुद्रढ करना _ यह फ़ौज का भी एजेंडा है; और र्पयावरण सुरक्षा , इस पार्टी की प्राथमिकताएं हैं .

यह पार्टी सोशल मीडिया पर अत्यंत सक्रिय है न्याय और सामाजिक सेवाओं को लक्ष्य तक पहुंचाने पर जोर दे रही है.

इसी प्रकार पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी ने भूख मिटाने के कार्यक्रम,, स्वास्थ्य , शिक्षा के लिए आर्थिक उन्नति ,पीने योग्य पानी , युवक, मजदूर वर्ग, महिला ,बच्चों पर पूंजी निवेश में वृद्धि ; लोक तंत्र को गहरा करना और अभिव्यक्ति की स्वतंत्र को सुनिश्चित करना, उसकी प्राथमिकताओं में है .

पी पी पी ने कल्याणकारी कार्यक्रम प्रस्तुत किया है और यह उसकी प्राथमिकता है और आसन्न खतरे को देखते हुए , तथा निरंतर प्रेस की आजादी में रुकावटें डालने की कोशिश के मद्दे नज़र यह स्वाभाविक है कि वह अभिव्यक्ति की आज़ादी की मांग को रखे .

ये लोक लुभावन बातें एक तरफ , उसकी सिंध में सरकार के कार्यकलाप बेहद खराब रहे हैं वैसे इसकी छवि जन पक्षीय पार्टी की है वैसे इसने कोई नवीन कार्य करने की कोशिश नहीं की है.

पकिस्तान मुस्लिम लीग ( नवाज़) की प्राथमिकता है लोकतंत्र को मज़बूत करना , देश और बाहर दोनों स्थानों पर शांति स्थापित करना , विकास के समेकन आद्यगिक आधार का विस्तार.; भोजन की सुरक्श सुनिश्चित करना;क्षेत्रीय व्यापार को बढ़ावा ;

वैसे तो यह पार्टी शुरू से ही यथास्थिथी वादी वाली पार्टी रही हैलेकिन अब यह यह नागर समाज और राजनैतिक गतिविधियों के लिए अधिक स्थान मिलने के लिए प्रयत्नशील है .देश के भविष्य और उसकी निहित शक्ति के प्रति आशावान है तथा पूंजी निर्माण तेज़ी से होगा ऐसा वह मानती है.

लेकिन पाकिस्तान के आसन्न भुगतान संतुलन के संकट पर तीनों साफ तौर पर कुछ नहीं कहां है. दीर्घ कालिक राय ज़रूर दी गई है.पी एम एल ( न)के अनुसार वह लागत मूल्य कम करेंगी ; और औद्योगिक कच्चे माल पर आयात शुक्ल तर्क संगत बनायेगी.; एस ई जेड से औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि करेगी. निर्यात में १५% प्रति वर्ष की वृद्धि ,चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा का लाभ उठाकर अंरराष्ट्रीय बाजारों में अपनास्थान बनायागी. निर्यात विरोधी करों को समापत करेगी . ऋण पत्रों के बाज़ार को विदेश निवेश के लिए खोल देगी. प्रवासी पाकीस्तानियों का पैसा जमा करने पर अधिक ब्याज मिलेगा . टूरिस्ट उद्योग को बढ़ावा. इससे $ १० बिलियन आमदनी की आशा.

लेकिन फौरी और आसान्न संकट पर यह पार्टी खामोश है.

पी टी आई ने भी कोई हल नहीं बताया है केवल समस्या बतायी है वह है : कम निर्यात; जमा विदेशी मुद्रा में कमी ;उच्च स्तर का विदेशी कर्जा.

पी पी पी ने एक नई बात कहने के कोशिश यह की है की वह देसी संसाधनों से ही योजना बनाकर स्थायित्व लाने की कोशिश करेगी.. इसके लिए अर्थ्शास्त्रियों से सहायता लेगी. मध्यावादी दौर के लिए बुनियादी राष्ट्रीय आर्थिक सुधार योजना बनायगी .. सभी मुक्त व्यापार पर समझौतों की समीक्षा की जायगी ताकि पाक्सितान के निर्यात बराबरी के स्तर की प्रतिस्पर्धा का मौका मिल सके .

पी टी आई के घोषणा पत्र में यह बहादुरी दिखाई देती है कि वह इस्लामिक कल्याणकारी राज्य की स्थापना, के पक्ष में हैं जिसमें बिना किसी भेद भाव के सभी को बराबरी की नजर से देखा जायगा .बेरोजगारी और आवास पर पार्टी ने केन्द्रित किया है .

उसके विदेश नीति पर विचार महत्त्वपूर्ण हैं ; राष्ट्रीय सुरक्षा मूल भूत हित है; देश की एकता , सार्वभौमिकता की रक्षा ,सामाजिक आर्थिक विकास ; कश्मीर समस्या का हल ;पाकिस्तानी नागरिकों की विश्वव्यापी स्तर पर सुरक्षा;

कश्मीर समस्या के मुद्दे पर सुरक्षा परिषद के तत्वाधान में एक बार और विचार ; पड़ोसियों से युद्ध के स्थान पर शान्ति पूर्ण तरीके से लड़ाइयों को हल करना ; यह एक नया विचार है . अमेरिका के प्रति झुकाव से हटकर चीन के प्रति झुकाव ; बहुराष्ट्रीय मंचो पर सक्रियता ..

यह बात गौर करने की है, और यहाँ पर इमरान का अपनी फ़ौज से फरक है, वह यह कि इमरान शुरू से ही अन्य देशों के मसलों में हस्तक्षेप के विरोध में हैं, वे अमेरिका के ड्रोन कार्यक्रम के खिलाफ हैं वह आतंक के विरोध में वैश्विक युद्ध के विरोध में हैं.

कुच्छ अन्य पार्टियां जो आज बेशक महत्त्वपूर्ण न हो लेकिन आगे चलकर वे कई उलटफेर कर सकती हैं.

मुत्तहिदा कौमी मूवमेंट ( एम क्यू एम्)का घोषणा पत्र एक विशुद्ध पुरानी किस्म की पूंजीवादी जनवादी पार्टी का कार्य्रक्रम लगता है .इसका मानना है की पाकिस्तान की अवनति का मुख्य कारण यहाँ की सामंती व्यवस्था है जो देश की प्रगति और जनता की खुशहाली में बाधक है. इसलिए यहाँ वास्तविक जनवाद स्थापित नहीं हो सका है न ही आवाम को सामजिक न्याय, अधिकार, और बराबरी का दर्जा ही प्राप्त हो सका है . इसे क़ानून के राज से और राज्य के कार्यों में हिस्सा लेने से वंचित रखा गया है .

वर्तमान व्यवस्था को समाप्त कर भागीदारी लोक तंत्र ,गुण आधारित नौकरशाही और स्वतंत्र न्याय पालिका स्थापिटी की जायगी. सभी नागरिकों के आर्थिक ,राजनैतिक हितों को प्रोन्नत करेगा. बिना भेद भाव के सभी को बराबर अधिकार प्राप्त होंगे ; जाती , रंग भाषा,लिंग, धर्मं इत्यादि से अप्रभावित रहेगा. धार्मिक अतिवादिता, आतंकवाद ,और धार्मिक संकीर्ण सोच के विरोध में और विभिन्न धर्मों के आपसी अच्छे संबंधों के पक्ष में है सांस्कृतिक विविधता को प्रोत्साहत किया जायगा , राजनैतिक अधिनायकत्व और सामंती व्यवस्था को स्थापित करना लक्ष्य है सत्ता का विकेंद्रीकरण, स्थानीय निकायों के पास शक्ति होने से आम आदमी को राजकीय ढाँचे मेंहिस्सेदार बनता है . आर्थिक और सामजिक तौर पर वंचितों को अवसर प्रदान करने की पक्षधर है .

एम् क्युए एम् में अभी हाल में फूट पडी थी और दुसरे गुट ने भी यही कार्यक्रम अपनाया है . कुछ नई बातें इस प्रकार हैं.:प्रदेशों में नई प्रशासनिक इकाइयों को राज्यों के बीच में गठित करना चुनाव के नियमों को समा वेशी बनाना; कोटा प्रथा को समाप्त करना ; विदेशों में गैर कानूनी तरीके से पैसे भेजने वालों पर रोक लगाना ; बढ़ा चढ़ा कर लक्ष्य रखने का कोई मतलब नहीं है..

पी टी आई के विपरीत एम् क्युए एम् ने मांग की है संघीय सरकार के खर्चे घटाए जायगैर ज़रूरी आयातों पर प्रतिबन्ध ; सार्वजनिक उप क्रमों पी आई ऐ और पाकिस्तान स्टील मिल्स को सुद्रढ़किया जाय. अंतिम, सिंध रेंजर को सिंध सराकर के अधीन रखा जाय.

यह शहरी आधारित पार्टी है जो सिंध में कराची और हैदराबाद जैसे शहरों में प्रभावशाली है ये खेतिहर भूमि के स्वामी नहीं है. यह अधिकाँश तौर पर नौकरी,मजूरी, छोटे व्यवसाय इत्यादि में सक्रीय हैं . इसके माध्यम वर्ग. मज्दूर्वर्गीय चरित्र के कारण इनकी बाकी मुख्य धाराकी पार्टियों से निरंतर टकराव रहता है.

अवामी वर्कर्स पार्टी

६ वामपंथी पार्टियों ने २०१३ में एकता स्थापित करके विलय किया और एक नयी पार्टी अवामी वर्कर्स पार्टी का निर्माण किया .यह ८ राष्ट्रीय सीटों और १३ प्रादेशीक सीटों के लिए संघर्ष में है .यह पार्टी लम्बी लडाई के लिए मैदान में है.लक्ष्य यह है की ऐसे समाजको स्थापित करे जहां लिंग, वर्ग धर्म और नस्ल के आधार पर शोषण न हो..

फौरी मांगों में इसका मुख्य जोर शिक्षा और पाठ्य क्रम में सुधार पर है. यह झूठ पर आधारित शिक्षा जिसमें विभिन्न समूहों में विरोधी भावना को जगाती है . शिक्षा ऐसी होनी चाहिये जिससे विभिन्न समुदायों में मित्रता बदे पाद्य्क्रम आलोचनात्मक सोच को बढाने वाला होना चाहिए; फौज ने संविधान को ख़त्म किया उनके विरुद्ध कार्यवाही होनी चाहिए ताकि सबके लिये एक मिसाल कायम हो.फ़ौजी ताना शाही ने देश की प्रगति को धीमा किया है..

इस पार्टी का मुख्य जोर इस्लामाबाद की दो, सीटों पर है जिसके लिए इसने अपने प्रत्याशी खड़े किये हैं.

इसके नारे वही हैं जो इस उप महाद्वीप में वामपंथी लोग लम्बे समत से लगा रहे हैं . ;

जैसे : जब तक जनता तंग रहेगी , जंग रहेगी, जंग रहेगी

जब तक भूख और नंग रहेगीं , जंग रहेगी जंग रहेगी .

और : ;हम क्या चाहते हैं , आजादी .

हर ज़ुल्म से लेंगे आजादी

जो तुम ना दोगे आजादी , हम छीन कर लेंगे आज़ादी

पढने लिखने की आज़ादी , इज़हार की लेंगे आज़ादी

भूख नंग से लेंगे आजादी.

धार्मिक पार्टियां

पुरानी धार्मिक पार्टियों का प्रभाव घट रहा है और उनके स्थान नई पार्टियां, जिनका सम्बन्ध प्रतिबंधित संगठनों से है, वह उनका स्थान ले रही हैं.इनमें से कई ऐसी हैं, जिन पर प्रतिबन्ध लग चूका है

इसमें प्रमुख है हफीज सईद के द्वारा प्रोन्नत पार्टी, मिल्ली मुस्लिम लीग , जिसका पंजीकरण नहीं हो पाया है इसलिए यह पार्टी आल्लाह – ओ- अकबर तहरीक को समर्थन दे रही है . यह दोनों ही अतिवादी पार्टियां हैं . इसी प्रकार से तहरीक –ऐ - लाब्बयेक या रस्सोल अल्लाह नामक पार्टी भी चुनाव लड़ रही है . इन सभी पार्टियों का एक ही मुद्दा है ख़त्म - ऐ –नुबुवत. अर्थात मुहम्मद ही आखिरी पैगम्बर हुए है और इनकी बाद और कोई भी नहीं हुआ . इस कारण ये अहमदियों के विरोध में है और आज कल फिर अहमदी विरोधी हवा तेज़ होती जारही है.

इन पार्टियों को लड़ने की अनुमति देकर इन्हें मुख्याधारा में लाने का प्रयास कियागया है देखना है की क्या नतीजा होते हैं.

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