देश के रिटेल कारोबार को बर्बाद कर देगी वालमार्ट

जाहिद खान

Update: 2018-05-13 15:02 GMT

दुनिया की सबसे बड़ी रिटेल कंपनी कंपनी वालमार्ट ने हाल ही में भारतीय ऑनलाइन परिचालक फ्लिपकार्ट की 77 फीसदी हिस्सेदारी खरीदने का एलान किया है। यह सौदा 16 अरब डालर यानी करीब 1Û05 लाख करोड़ रुपए में हुआ है। वालमार्ट का यह अब तक का सबसे बड़ा अधिग्रहण होने के साथ-साथ ई-कामर्स क्षेत्र का सबसे बड़ा सौदा है। इस सौदे से वालमार्ट को भारत के ई-कॉमर्स बाजार में प्रवेश मिलेगा। 130 करोड़ की आबादी वाले भारत में अमेरिकी कंपनी वालमार्ट कई साल से पैर पसारने की कोशिशें कर रही थी, जो कि अब कामयाब हुई है। अलबत्ता वॉलमार्ट चार साल पहले भारतीय बाजार में उतरी थी, लेकिन तब उसने खुद को सिर्फ कैश एंड कैरी थोक कारोबार तक ही सीमित रखा था। ऐसा उसने अपनी मर्जी से नहीं किया था, बल्कि विदेशी निवेश को लेकर सरकार की पाबंदियां इसकी वजह थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विपक्ष के जबर्दस्त विरोध के चलते भले ही खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को मंजूरी नहीं दी, लेकिन खुदरा ई- कॉमर्स में उन्होंने अमेरिका के आगे घुटने टेक दिए। मोदी सरकार ने इस क्षेत्र में 100 फीसदी विदेशी निवेश की इजाजत दे दी। ई- कॉमर्स में विदेशी निवेश की इजाजत के बाद, अमेजन और वालमार्ट जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए देश में अप्रत्यक्ष तौर पर व्यापार करने के लिए रास्ता खुल गया।

ई-कॉमर्स में विदेशी निवेश की इजाजत के अपने फैसले के पक्ष में सरकार की ओर से अब कई दलीलें दी जा रही हैं। मसलन ई-कॉमर्स में 100 फीसदी विदेशी निवेश से इस क्षेत्र में नई तकनीक आएगी और सप्लाई चेन में सुधार होगा। अमेजन और वालमार्ट जैसी कंपनियों की आपसी प्रतिस्पर्धा से भारतीय ग्राहकों को फायदा होगा। ग्राहकों को डिस्काउंट और नए-नए ऑफर्स मिलेंगे। 5 अरब डॉलर के भारतीय ई-कॉमर्स मार्केट की ग्रोथ में तेजी आएगी और सर्विस में सुधार होगा। ई-काॅमर्स कंपनियों की स्टॉक क्वालिटी और डिलीवरी सर्विसेज में भी सुधार होगा। हजारों नौजवानों को रोजगार मिलेगा। एक तरफ ई-कॉमर्स में विदेशी निवेश को लेकर सरकार के ये बड़े-बड़े दावे हैं, तो दूसरी ओर भारतीय कंपनियों को चिंता है कि उनका धंधा अब चैपट हो जाएगा। यही वजह है कि घरेलू व्यापारी सरकार की इस नीति का शुरू से ही हर मोर्चे पर विरोध कर रहे हैं। विरोध की वजह भी है। सरकार के इस अकेले फैसले से देश के व्यापारी और खासकर छोटे व्यापारी बुरी तरह से प्रभावित होंगे। लघु और मध्यम उद्योगों से जुड़े हुए लोग, जिनकी तादाद इस वक्त देश में 4 करोड़ 25 लाख होगी और जिनसे 10 करोड़ 5 लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है, वे बर्बाद हो जाएंगे। ट्रेडर्स का कहना है कि वालमार्ट ऑनलाइन मार्केट के जरिए देश के ऑफलाइन बाजार में उतरेगी, जिससे छोटे रिटेलर्स का धंधा चैपट हो जाएगा। यह बहुराष्ट्रीय कंपनियां दुनिया में कहीं से भी सामान लाएंगी और देश को डंपिंग ग्राउंड बना देंगी। ऐसे में भारतीय कंपनियां, प्रतिस्पर्धा में पिछड़ जाएंगी। उनके धंधे-कारोबार बर्बाद हो जाएंगे।

भारत दुनिया का सबसे आकर्षक खुदरा बाजार है। इसका आकार और वृद्धि दर दुनिया भर की बड़ी कंपनियों को हमेशा आकर्षित करती रहती हैं। भारतीय उपभोक्ता तेजी से ऑनलाइन कॉमर्स पर शिफ्ट हो रहे हैं। अमेरिका और चीन के बाद भारतीय ई-कामर्स मार्केट ही ऐसा मार्केट है, जहां पर ग्रोथ की सबसे अधिक संभावना है। भारत में ऑनलाइन शॉपिंग का कारोबार तेजी से फैल रहा है और मार्केट रिसर्च फर्मों का दावा है कि पिछले साल ये कारोबार 2100 करोड़ डॉलर था। मॉर्गन स्टैनली की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक भारत में साल 2026 तक ऑनलाइन कारोबार 200 अरब डॉलर तक पहुँच जाएगा। यानी अगले आठ साल में इसमें 9 से 10 गुना तक बढ़ोतरी होगी। जाहिर है कि यही आंकड़े बहुराष्ट्रीय कंपनियों को लुभा रहे हैं। मौका मिलते ही इन कंपनियों ने भारत में प्रवेश कर लिया। वालमार्ट अमेरिका का सबसे बड़ा काॅरपोरेशन है। साल 2017 में इसकी विश्व स्तर पर कुल बिक्री 495 अरब डाॅलर थी। इसमें से 317 अरब डाॅलर की अकेले बिक्री अमेरिका में है। अमेरिका में वालमार्ट 70 से 80 फीसदी सामान चीन का बना बेचता है। जबकि वालमार्ट के संस्थापक सैम वाल्टन का कहना था कि जहां तक मुमकिन होगा, उनकी कंपनी अमेरिका में बने माल को ही खरीदने के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन आज स्थिति यह है कि वह चीनी सामान का मुख्य विक्रेता है। लिहाजा मुनाफा अमेरिकी कंपनी के हिस्से, तो रोजगार चीनियों को मिल रहा है।

विकसित और विकासशील देशों में हुए अनेक अध्ययन यह बतलाते हैं कि खुदरा व्यापार की बड़ी कंपनियां रोजगार पैदा नहीं करतीं, बल्कि खत्म कर देती हैं। थोक खरीद से उत्पादक को मिलने वाली कीमत कम होती जाती है और लाभ उपभोक्ताओं को होता है। सबसे ज्यादा नुकसान किसानों को होता है। मसलन 30 अरब डॉलर से ज्यादा के विश्व बाजार में कॉफी उत्पादकों को पहले 10 अरब डाॅलर की कमाई होती थी, लेकिन अब विश्व बाजार का आकार 60 अरब डॉलर से ज्यादा हो गया है, पर उनकी कमाई 6 अरब डॉलर से कम हो गई है। ई-काॅमर्स में सौ फीसदी विदेशी निवेश फैसले का असर भारत में यह होगा कि वालमार्ट के जरिए चीन से सारा माल देश में आएगा और यह कारोबार देश के छोटे कारोबारियों, खास तौर पर लघु और मध्यम उद्योगों को निपटा देगा। वालमार्ट के आने से पहले ही चीन से होने वाले सस्ते निर्यात से इन उद्योगों की हालत खराब है। वालमार्ट के आने के बाद हालत और खराब हो जाएंगे। देश में इस वक्त लगभग 7 करोड़ रिटेलर्स हैं, जिनमें से लगभग 3 करोड़ रिटेलर्स को वालमार्ट-फ्लिपकार्ट की डील से सीधे तौर पर नुकसान होने की संभावना है। भारत के ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों सेगमेंट के रिटेलर्स को मिलाकर कुल 40 लाख करोड़ रुपए सालाना का रिटेल कारोबार होता है, जिसमें कम से कम 20 लाख करोड़ के बिजनेस को नुकसान होगा। जहां तक नए रोजगार पैदा होने की बात है, तो कुछ लोगों को जरूर रोजगार मिलेगा, लेकिन ज्यादातर लोग बेरोजगार हो जाएंगे। रिटेलर्स कां धंधा गिरने से वे अपने यहां काम करने वाले लोगों को निकालेंगे, इससे 5 लाख लोगों की नौकरियों पर संकट आ सकता है। यही नहीं भारतीय रिटेलर्स प्रतिस्पर्धा में पिछड़ जाएंगे। ऑनलाइन वेंडर्स को भी इस डील से नुकसान होगा। देश में ऑनलाइन वेंडर्स की तादाद अभी 8 से 10 हजार है, उनके लिए भी ये डील परेशानी का सबब बनेगी।

एक तरफ मोदी सरकार ‘मेक इन इंडिया’ और ‘स्किल इंडिया’ जैसे नारे देती है, तो दूसरी ओर वॉलमार्ट जैसी कंपनियों को भारत में आने दिया जा रहा है, जो मनी पावर से व्यापारियों को खत्म करने के लिए कुख्यात हैं। दावा किया जा रहा है कि ई-काॅमर्स में विदेशी निवेश से नए रोजगार पैदा होंगे। यहां पर सवाल उठना लाजिमी है कि कुछ हजार रोजगार के बदले, लाखों लोगों का उनकी आजीविका से विस्थापन क्या वास्तव में सही नीति है ? सरकार इस संबंध में शुरू से ही एक और दलील देती आई है कि ई- कॉमर्स में विदेशी निवेश से किसानों का भला होगा, उन्हें अपनी उपज के वाजिब दाम मिलेंगे। सरकार की इस दलील के जवाब में उससे यह सवाल पूछा जा सकता है कि यदि वास्तव में ऐसा है, तो किराना कारोबार में लगी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के अपने देशों में वहां की सरकारंे, किसानों को खेती में भारी सबसिडी क्यों दे रहीं है ? देश में जब भी कहीं ई- कॉमर्स में विदेशी निवेश फैसले का विरोध होता है, तो केन्द्र सरकार के साथ-साथ उद्योग जगत यह राग अलापने लगता है कि इस तरह के फैसलों से देश में विदेशी निवेश लाने के प्रयासों को झटका लगेगा। नए रोजगार की संभावनाओं को धक्का लगेगा। पर इन बातों में पूरी सच्चाई नहीं। दुनिया में शायद ही कोई ऐसा देश हो, जहां रिटेल सेक्टर में एफडीआई से रोजगार बढ़ा हो। जब भी बड़े कारोबारी इस क्षेत्र में आए हैं, बेरोजगारी और ज्यादा बढ़ी है। स्थिति सुधरने की बजाय और ज्यादा बिगड़ी हैं।

वॉलमार्ट का इतिहास रहा है कि वो बहुत कम कीमत पर सामान बेचकर छोटे-मोटे कारोबारियों को अपने रास्ते से हटा देती है। उसके पास पैसे की कमी नहीं है, दुनिया भर के बाजारों में उसकी पहुँच है। ऐसे में वो दूसरे देशों का सस्ता सामान भारत में डंप कर देगी और खामियाजा देशी उद्योगों, किसानों को भुगतना पड़ेगा। ई-काॅमर्स में विदेशी निवेश, घरेलू कारोबार को पूंजीवाद के कड़े शिकंजे में लेने का ही एक जरिया है। इस फैसले से देशी कारोबारियों के अस्तित्व पर ही संकट खड़ा हो जाएगा। यह फैसला न सिर्फ हमारे छोटे कारोबारियों को नुकसान पहुंचाएगा, बल्कि किसानों, ट्रांसपोर्टर, कामगारों और खुदरा कारोबार से जुड़े कई अन्य पक्षों के लिए भी घातक साबित होगा। बहुराष्ट्रीय कंपनियों का मकसद, बाजार में उतरते ही ज्यादा से ज्यादा बाजार हिस्सेदारी हासिल करना होगा। उनकी आउटसोर्सिंग क्षमताओं, संसाधनों और सरकारों के साथ संबंध बनाने के ‘हुनर’ को देखते हुए उनके लिए ऐसा करना बिलकुल भी मुश्किल नहीं होगा और जब एक बार वे बाजार पर काबिज हो जाएंगे, तो फिर मनमाने तरीके से बाजार को चलाएंगे और लोगों से उलूल-जुलूल दाम वसूलेंगे। जो कि न तो अंत में उपभोक्ताओं के हित में होगा और न ही देश के।
 

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