स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें किसानों के साथ धोका है।

स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें किसानों के साथ धोका है।

Update: 2018-05-22 14:57 GMT

कृषि फसलों को उत्पादन खर्च पर आधारित लाभकारी कीमत प्राप्त करने के लिये देशभर के किसान दशकों से संघर्ष करते आये है। वह संघर्ष आज भी जारी है। लेकिन अचानक कुछ संगठनों व्दारा कुछ सालोंसे स्वामीनाथन आयोग (राष्ट्रीय किसान आयोग) लागू करो की मांग शुरु हुई। आयोग की सिफारिशें जिसे स्वामीनाथन स्वयं सदाबहार क्रांति कहते है, प्रथम हरित क्रांति की तरह उत्पादन केंद्रित है। प्रथम हरित क्रांति का अनुभव यह बताता है की उत्पादन वृद्धि के लिये केवल किसान ही नही पूरे समाज को बडी कीमत चुकानी पडी। स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार लागत पर डेढ गुना एमएसपी देने की सिफारिश भी एक धोका है। इसलिये केवल जूमलों को घेरने के लिये यह मांग करना नासमझी है। खासकर तब जब पूरे देश में किसानों में आक्रोश है और वह अपने अधिकार के लिये रास्ते पर उतर रहा है।

देश में कृषि उत्पादन बढाने की चुनौती हमेशा रही है। देश में बढती आबादी के खाद्यान्न पूर्ति के लिये डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन के नेतृत्व में हरित क्रांति की शुरुवात की गई। खेती की देशी विधियों के माध्यम से उत्पादन बढाने का रास्ता अपनाने के बजाय उन्होंने रासायनिक खेती, संकरीत बीज और यांत्रिक खेती को बढावा दिया। क्रॉप पैटर्न बदलकर एक फसली पिक पद्धती को बढवा देने से जैव विविधता, फसल विविधता पर बुरा असर पडा। देश के बडे हिस्से में बहुफसली खेती एक फसली खेती में परिवर्तित हो गयी। किसान को अपने खेती से पोषक आहार तत्व मिलना बंद हुआ तथा पूरे देश में रासायनिक खेती के कारण कृषि भूमि की उर्वरा शक्ति घटी व भूजल स्तर में तेजी से गिरावट आने लगी तथा जमीन, पानी और खाद्यान्न जहरीले हुये। थाली में जहर पहुंचा।

हरित क्रांति से कृषि उत्पादन तो बढा लेकिन किसानों पर दुतर्फा मार पडने से उनकी हालत तेजी से बिगडती गयी। बीज, खाद, कीटनाशक, यंत्र का बढता इस्तेमाल, सिंचाई, बिजली आदि के लिये किसान की बाजार पर निर्भरता बढने से लागत खर्च बढा। फसलों का उत्पादन बढने से फसलों की कीमत कम हुई। परिणाम स्वरुप लागत और आय का अंतर इस तरह कम हुआ कि खेती घाटे का सौदा बनी और किसान कर्ज के जाल में फंसता चला गया। इस प्रकार प्रथम हरित क्रांति किसानों की लूट करने, थाली में जहर पहुंचाने और जैवविविधता को प्रभावित करने के लिये कारण बनी। किसानों के बर्बादी में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। हरित क्रांति के जनक के नाते डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन किसान की दुर्दशा के लिये सबसे अधिक जिम्मेदार माने जा सकते है।

प्रथम हरित क्रांति का मूल उद्देश कृषि रसायनों और तथाकथित उन्नत संकर बीजों के व्यापार को प्रोत्साहित करना था। जिसके व्दारा भारत में खाद, बीज, कीटनाशक और कृषि औजारों के बाजार का विस्तार किया गया। यह कहा जाता है कि व्दितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद बारुद बनाने वाली कंपनियों ने बारुद के घटक नायट्रोजन, पोटाश और फास्फेट का वैकल्पिक इस्तेमाल करने के लिये रासायनिक खाद का उत्पादन शुरु किया। हरित क्रांति ने उत्पादन वृद्धि के नामपर प्राकृतिक खेती करनेवाले किसान को रासायनिक खेती के झांसे में लाकर रासायनिक खेती को पूरे देश में फैलाने का काम किया। कंपनियों ने सरकारी मदद से रासायनिक खाद, बीज, कीटनाशक, कृषि उपकरण किसानों को बेचकर उनकी लूट की।

अब दूसरी हरित क्रांति के लिये युपीए के तत्कालीन कृषिमंत्री ने कहां है कि उन्होने स्वामीनाथन आयोग की 17 में से 16 सिफारिशे लागू की थी। एनडीए सरकार कह रही है कि उन्होने स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट नब्बे प्रतिशत लागू की है। अर्थमंत्री ने बजट पेश करते समय कहा कि सरकार पहले से स्वामीनाथन आयोग के अनुसार लागत के डेढ़ गुना कीमत दे रही है। अब सरकार ने सी2 पर पचास प्रतिशत मिलाकर एमएसपी देने की घोषणा कर दी है। स्वामीनाथन स्वयं कहते है कि एनडीए सरकार उनके रिपोर्ट पर अच्छा काम कर रही है। फिर भी किसान की हालत बिगडती जा रही है। तब स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों पर सवाल उठता है।

स्वामीनाथन आयोग को खेती की आर्थिक व्यवहारता में सुधार कर किसान की न्यूनतम शुद्ध आय निर्धारण का काम सौपा गया था। तब वह किसानों की बगडती हालात को सुधारने, उनके मौलिक अधिकारों की रक्षा करने के लिये बुनियादी सुझाव दे सकते थे। कृषि फसलों के शास्त्रीय पद्धति से मूल्यांकन करने और उसके आधार पर श्रम मूल्य देने या सभी कृषि उपज के दाम देने के लिये वैकल्पिक योजना सरकार को पेश कर सकते थे। लेकिन यह जानते हुये भी कि एमएसपी फसलों का उत्पादन मूल्य नही है उन्होने एमएसपी में उत्पादन की भारित औसत लागत से 50 प्रतिशत अधिक मूल्य देने की सिफारिश की।

स्वामीनाथन आयोग के सिफारिशों के अनुसार यह अनुमानित किया जा रहा है कि सी2 पर पचास प्रतिशत के आधार पर एमएसपी में सामान्यत: अधिकतम दो-तीन सौ रुपये तक की बढोतरी हो सकती है। यह बढोतरी भी तभी संभव है जब सरकार एमएसपी पर सभी फसलें खरिद करे या खुले बाजार में एमएसपी से निचे फसल की खरिदने पर निर्बंध लगाये। आज नाही सरकार के पास ऐसी व्यवस्था है नाही इसके लिये उन्होंने बजट में कोई प्रावधान किया है। स्वामीनाथन आयोग की आर्थिक सिफारिशें पूर्णता: लागू होने पर भी किसान के मासिक आय में अधिकतम 1000 रुपयों की बढोतरी संभव है। आज किसान की केवल खेती से प्राप्त मासिक आय औसतन 3000 रुपयें है। वह बढकर 4000 रुपये हो सकती है। अन्य मिलाकर कुल आय 6400 रुपये से 7400 रुपये हो सकती है। जबकि सरकार कुल आय को दोगुना करने का दावा कर रही है। वेतन आयोग के अनुसार परिवार की बुनियादी आवश्यकताओं के लिये न्यूनतम मासिक आय 21 हजार रुपये होनी चाहिये। यह स्पष्ट है कि स्वामीनाथन आयोग के आधार पर एमएसपी में थोडी बढोतरी से किसानों को न्याय मिलना संभव नही है। किसानों के साथ फिर से धोका किया जा रहा है।

स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों में कृषि उत्पादन बढाने के लिये जी.एम. बीज, सिंचाई की व्यवस्था, फसल बीमा, कृषि ऋण का विस्तार, समूह खेती, यांत्रिक खेती, गोडाउन आदि की सिफारिश की गयी है। यह सारी व्यवस्थाऐं किसानों को खेती से हटाकार कार्पोरेट खेती को बढावा देने के लिये की जा रही है। सरकार इसी रास्ते चलकर किसानों को खेती से हटाना चाहती है। वह खेती पर केवल 20 प्रतिशत किसान रखना चाहती है जो पूंजी और तकनीक का इस्तेमाल कर सके। कृषि, बीमा, बैंकिंग में एफडीआई, जी.एम. बीज, ठेके की खेती, ई-नाम, आधुनिक खेती पद्धति और इजराईल खेती, निर्यातोन्मुखी खेती आदी को बढावा देने की तैयारी इसी लिये की जा रही है। यह सदाबहार हरित क्रांति किसान को जड से उखाडने के लिये लाई गई है। नई आर्थिक नीति लागू होने के बाद विश्व व्यापार संगठन के माध्यम से भारत की खेती पर कारपोरेटी कब्जा करने की शुरुवात हुई थी। स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट किसान हित का नाटक कर कारपोरेट खेती की निंव को मजबूत करने का काम रही है। कारपोरेटी साजिसे किस तरह काम करती है इसका स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट उत्तम उदाहरण है।

कारपोरेट घराने किसान को लूटकर, खेती को घाटे का सौदा बनाकर भारत की खेती पर कब्जा करना चाहते है। उसके लिये वह किसान आंदोलन का भी उपयोग करना चाहते है। स्वामीनाथन आयोग लागू करो की मांग के लिये स्वामीनाथन फाउंडेशन और इससे लाभान्वित होनेवाली कंपनियां काम कर रही है। वैश्विक तापमान वृद्धि से मुकाबला करने के लिये किसान परिवहन के लिये बैलशक्ति को बढावा देने और रासायनिक खेती से मुक्त नई प्राकृतिक खेती के लिये गाय बैलों की रक्षा करने की आवश्यकता है। लेकिन उसे किसानों के लिये बोझ साबीत कर गोवंश हत्याबंदी कानून हटाने की कोशिस हो रही है। सिंचाई का क्षेत्र बढाने के लिये नदी जोड योजना की मांग सरकार और कार्पोरेट द्वारा प्रायोजीत है। कंपनियों को जमीन पर कब्जा करने का रास्ता खोलने के लिये किसान विरोधी कानून हटाने के नामपर किसान का सुरक्षा कवच बने सीलिंग एक्ट हटाने की मांग की जा रही है। देश के किसानों और किसान संगठनाओं को अपने अधिकारों के लिये संघर्ष करते हुये किसान विरोधी छडयंत्रों से सावधान रहने की आवश्यकता है।
 

Similar News

Justifying The Unjustifiable

How Votes Were Counted

The Damning Of Greta Thunberg