विकास की शर्त पर्यावरण और लाश नामंजूर

विकास की शर्त पर्यावरण और लाश नामंजूर

Update: 2018-05-25 15:11 GMT

मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ ने हाल ही में तूतीकोरिन में बहुराष्ट्रीय कंपनी वेदांता स्टरलाइट तांबा यूनिट की विस्तार योजना पर रोक लगा दी है। न्यायमूर्ति एम सुंदर और न्यायमूर्ति अनीता सुमंत की खंडपीठ ने आर फातिमा की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान अंतरिम आदेश पारित करते हुए वेदांता समूह को अपने संयंत्र की दूसरी इकाई में निर्माण कार्य रोकने के निर्देश दिये। खंडपीठ ने आदेश दिया कि तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में पर्यावरण मंजूरी के नवीकरण की, कंपनी की याचिका पर सार्वजनिक सुनवाई के बाद चार महीने के भीतर प्रक्रिया पूरी की जाये। यानी यह प्रक्रिया 23 सितम्बर से पहले पूरी हो जाए। तब तक वेदांता समूह को तूतीकोरिन संयंत्र में अपनी दूसरी इकाई के निर्माण कार्य को रोके रखना होगा। अदालत के इस आदेश के बाद तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (टीएनपीसीबी) ने तूतिकोरिन में संयंत्र को तत्काल प्रभाव से बंद करने का आदेश दिया है। यानी अदालत एक बार फिर देशवासियों के अधिकारों की रक्षक के तौर पर सामने आई है। अदालत ने अपने आदेश से साबित किया है कि उसकी नजर में देश का कानून ही सबसे अव्वल है।

तूतीकोरिन में वेदांता समूह का स्टरलाइट तांबा संयंत्र पिछले 20 साल से चल रहा है। इस संयंत्र की सालाना 70 हजार से 1.70 लाख टन तांबा उत्पादन की क्षमता है, लेकिन यह सालाना 4 लाख टन तांबे का उत्पादन कर रहा है। देश के प्राइमरी कॉपर बाजार में इसका 35 फीसदी हिस्सा है।

स्टरलाइट प्लांट को अपने यहां पर लगाने से तीन राज्यों गुजरात, गोवा और महाराष्ट्र ने मना कर दिया था। इस प्लांट से पर्यावरण को होने वाले खतरे के चलते इन राज्यों ने अपने यहां पर इसे लगने नहीं दिया था। जिसके बाद आखिर में इसे तमिलनाडु में लगाया गया। तूतीकोरिन हत्याकांड के बाद, कंपनी द्वारा की गई कई अनियमितताएं सामने आ रही हैं। मसलन कंपनी ने एन्वायरमेंट क्लियरेंस (ईसी) लेते वक्त, कंपनी की तरफ से पर्यावरण पर पड़ने वाले इसके असर (एन्वायरमेंट इम्पैक्ट असेसमेंट) की सरकार को गलत जानकारी दी। नियमों के मुताबिक संयंत्र को पारिस्थितिक तौर पर संवेदनशील क्षेत्र के 25 किलोमीटर के दायरे में नहीं होना चाहिए। लेकिन, यह संयंत्र ‘मुन्नार मरीन नेशनल पार्क’ के नजदीक स्थित है। इसके अलावा कंपनी ने बिना स्थानीय लोगों को सुने गलत एन्वायरमेंट इम्पैक्ट असेसमेंट रिपोर्ट पेश की।

जैसी कि आशंकाएं थीं, कुछ ही दिनों में संयंत्र का असर पर्यावरण और स्थानीय लोगों पर होना शुरू हो गया। साल 2008 में तिरुनेलवेली मेडिकल कॉलेज की ओर से जारी एक रिपोर्ट ‘हेल्थ स्टेटस एंड एपिडेमियोलॉजिकल स्टडी अराउंड 5 किलोमीटर रेडियस ऑफ स्टरलाइट इंडस्ट्रीज (इंडिया) लिमिटेड’ में इस कॉपर इकाई को इलाके के बाशिंदों में सांस की बीमारियों के बढ़ते मामलों के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था। इस शोध में 80 हजार से ज्यादा लोग शामिल हुए थे। रिपोर्ट के मुताबिक तूतीकोरिन स्थित कुमारेदियापुरम और थेरकु वीरपनदीयापुरम के भूमिगत जल में आयरन की मात्रा तय सरकारी मानक से 17 से 20 गुना ज्यादा पाई गई, जो कि लोगों में कमजोरी और पेट, जोड़ों में दर्द की मुख्य वजह थी। यही नहीं स्टरलाइट तांबा संयंत्र के आसपास के इलाकों में पूरे राज्य और गैर-औद्योगिक क्षेत्रों के मुकाबले 13.9 फीसदी अधिक श्वास रोगों के रोगियों की संख्या दर्ज की गई। अस्थमा-ब्रॉन्काइटिस के मरीज राज्य औसत से दोगुने मिले। साइनस और फैरिनगाइटिस समेत आंख, नाक व गले के दीगर बीमारियों से जूझ रहे लोगों की तादाद भी काफी अधिक पाई गई। इसके अलावा महिलाओं में मासिक धर्म से जुड़ी समस्याएं भी देखने में आईं।

संयंत्र के खिलाफ जब लोगों का विरोध सामने आया, तो राज्य की तत्कालीन मुख्यमंत्री जे जयललिता ने साल 2013 में संयंत्र को बंद करने का आदेश दे दिया। लेकिन कंपनी एनजीटी में चली गई। एनजीटी ने राज्य सरकार का फैसला उलट दिया। राज्य सरकार ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपनी अर्जी लगाई हुई है, जो कि अभी विचाराधीन है। राज्य सरकार ने इसके अलावा पिछले साल पर्यावरण नियमों का पालन नहीं करने के लिए तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से कंपनी को रिन्यूअल न देने की अपील की। इसमें काॅपर कचरे के निपटान न करने की बात कही गई थी। कंपनी कॉपर का लावा नदी में डाल रही है और प्लांट के आसपास के बोरवेलों में पानी की क्वॉलिटी रिपोर्टें भी साझा नहीं कर रही है। यानी संयंत्र में पर्यावरण संबंधी किसी कानून का पालन नहीं हो रहा है। राज्य सरकार की सख्ती के बाद भी कंपनी के रवैये में कोई फर्क नहीं आया। कंपनी ने तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के खिलाफ अपीलीय प्राधिकरण में अपील की हुई है और इस पर आगामी 6 जून को सुनवाई होनी है। एक तरफ कछुआ गति से यह सरकारी कार्यवाहियां चल रही थी, दूसरी तरफ स्थानीय निवासियांे ने कंपनी के खिलाफ मोर्चा खोल लिया। स्थानीय निवासी तमिलनाडु सरकार से मांग कर रहे थे कि संयंत्र से होने वाले प्रदूषण की वजह से जिले के लोगों को सेहत से जुड़ी गंभीर समस्याएं पैदा हो गई हैं। जिससे लोग कई जानलेवा बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। लिहाजा संयंत्र को बंद किया जाए।

आंदोनकारियों की मांग बेजा नहीं थी। सरकार से वे वही मांग कर रहे थे, जिसकी हमारा संविधान उन्हें जमानत देता है। संविधान देश के हर नागरिक को जीने का अधिकार देता है। जीने का अधिकार, जिन कारणों से प्रभावित होता है, एक जिम्मेदार सरकार को इनका निदान करना होता है। किसी भी हाल, वह इसका इंकार नहीं कर सकती। तमिलनाडु सरकार, लोगांे की समस्याओं पर गंभीरता से ध्यान देती, उसके उलट कंपनी को संरक्षण और सुरक्षा देती रही। आंदोलनकारियों का विरोध, तब और भी ज्यादा बढ़ गया, जब साल की शुरुआत में इस प्लांट के विस्तार की योजना सामने आई। आंदोलनकारी पिछले 100 दिन से लगातार प्रदर्शन कर रहे थे। प्रदर्शन जब हिंसक हुआ, तो पुलिस ने अंधाधुंध गोलियां चला दीं जिसमें 10 से ज्यादा लोगों की दर्दनाक मौत हो गई और 50 से ज्यादा लोग जख्मी हो गए। घायलों में कुछ की हालत अभी बेहद गंभीर है। घटना के बाद से ही पूरे शहर और उसके आस-पास के जिलों में तनाव है। प्रशासन ने एहतियातन सारे इलाके में धारा 144 लगा दी है।

प्रदूषण फैला रहे एक संयंत्र का शांतिपूर्ण विरोध करने वाले निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर जिसने भी गोलीबारी का आदेश दिया, वह तो इस बर्बर हत्याकांड का जिम्मेदार है ही, सरकार भी उतनी ही जिम्मेदार है। तूतीकोरिन में पुलिस कार्रवाई की जितनी निंदा की जाए वह कम है। पुलिस की फायरिंग लोगों के सीने और सिर पर हुई, जिसकी वजह से ज्यादा लोग मारे गए। जबकि इस तरह के मामलों में अदालतों के साफ-साफ दिशा-निर्देश हैं कि यदि ऐसी स्थितियां निर्मित हो, तो गोलीबारी आदमी के सीने से नीचे के हिस्से पर हो। ताकि लोगों की जान न जाए। जैसा कि इस तरह के हत्याकांडों के बाद होता है, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ई पलानीसामी ने हत्याकांड की न्यायिक जांच के आदेश दे दिए हैं और दावा कर रहे हैं कि हत्याकांड के दोषी बख्शे नहीं जाएंगे। उन्हें उनके किए की जरूर सजा मिलेगी। इतना सब कुछ हो जाने के बाद, केन्द्र सरकार भी अब हरकत में आई है। गृह मंत्रालय ने तमिलनाडु सरकार से इस पूरी घटना की रिपोर्ट तलब की है। इसके अलावा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने मीडिया रिपोर्टों का संज्ञान लेते हुए, राज्य के मुख्य सचिव और डीजीपी को नोटिस जारी कर इस संबंध में जवाब मांगा है।

राज्य सरकार ने घटना में मारे गए लोगों के परिजनों को दस-दस लाख रुपये, गंभीर रूप से घायल लोगों को तीन-तीन लाख और मामूली रूप से घायल लोगों को एक-एक लाख रुपये मुआवजा देने का एलान किया है। लेकिन हत्याकांड की न्यायिक जांच और मुआवजे का एलान ही इस समस्या का समाधान नहीं है। इस बर्बर हत्याकांड के लिए जो जिम्मेदार हैं, उन्हें तो सजा मिलनी ही चाहिए, साथ ही पर्यावरण नियमों की अनदेखी कर इलाके में भयंकर प्रदूषण फैलाने वाली वेदांता कंपनी पर भी कड़ी कार्यवाही हो। जिसमें जुर्माने से लेकर उन्हें सजा के दायरे में भी लाया जाए। उद्योग-धंधों को बढ़ावा देना, सरकारों का काम है, लेकिन इसके लिए कंपनियों द्वारा नियम-कानूनों की अनदेखी और सरकारों का इससे आंखें मूंदे रहना गलत है। पर्यावरण और प्रदूषण संबंधी कानूनों का यदि कहीं पर भी उल्लंघन हो रहा है, तो यह सरकार और संबंधित मंत्रालयों की जिम्मेदारी बनती है कि वे इन कानूनों का सख्ती से पालन कराएं। यदि कंपनियां फिर भी न माने, तो उन पर बिना किसी भेदभाव के कड़ी कार्यवाही हो। देश के लिए विकास जरूरी है, पर अवाम की जान और पर्यावरण की शर्त पर नहीं।
 

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