विद्यासागर की मूर्ति पर हमला : पश्चिम बंगाल में प्रगतिशीलता दांव पर
उफान पर भाजपा – तृणमूल की आदिम संस्कृति
वर्ष 2019 के आम चुनावों ने बंगाल में वाम मोर्चा के तीन दशक के शासन के दौरान स्थापित प्रगतिशील संस्कृति को ध्वस्त करने की हिन्दुत्ववादी शक्तियों और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की दीर्घकालिक रणनीति को उजागर कर दिया है.
प्रगतिशील बंगाली संस्कृति को ध्वस्त करने के इस काम को रणनीतिक रूप से ममता बनर्जी और उनकी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने संभव बनाया है.
इन दोनों प्रतिक्रियावादी दक्षिणपंथी पार्टियों की कई प्रवृतियां एक जैसी हैं. मसलन पदानुक्रम की विचारधारा, हिंसा का प्रायोजन, असहमति को चुप कराना और प्रगतिशील सामाजिक – राजनीतिक विचारों के प्रति घृणा. वामपंथी पार्टियों को निशाना बनाने के मामले में ये दोनों पार्टियां एकजुट हैं.
बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस, दोनों पार्टियां व्यक्तिवादी परंपरा की मुरीद ऐसी हस्तियों द्वारा चलायी जा रही हैं, जो सीखने की प्रवृति के खिलाफ हैं, शैक्षिक संस्थानों पर हमलावर हैं, तार्किक सोच को खारिज करती हैं, और जिनपर अपनी साख बनाने का आरोप लगाया जाता है. इन हस्तियों की तुलना पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की नेता ज्योति बसु के साथ कीजिए, जिन्होंने प्रेसीडेंसी स्कूल में और बाद में लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में पढ़ाई की. इसी तरह, आप उनकी तुलना प्रेसीडेंसी और कैम्ब्रिज में शिक्षित सीपीआई के नेता इंद्रजीत गुप्ता के साथ करें.
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की एक रैली के दौरान कोलकाता के विद्यासागर कॉलेज पर हुआ हमला और बंगाल पुनर्जागरण के महान प्रणेता माने जाने वाले ईश्वरचंद्र विद्यासागर की मूर्ति के साथ की गयी तोड़फोड़ हिन्दुत्ववादी विचारधारा की आदिम संस्कृति को दर्शाता है. प्रतिगामी धारणाओं पर आधारित और नारों पर सवार हिंदुत्व की विचारधारा विरोधाभासी रूप से व्यापक पैमाने पर भारतीय संस्कृति की बुनियादी तत्वों के लिए सबसे बड़ा खतरा है.
बंगाली महानायक के तौर पर विद्यासागर
मेरे बचपन के दिनों में मेरी मां ने विद्यासागर की खूबियों के बारे में जितनी कहानियां सुनायी थी, उनमें से एक पढ़ने और सीखने के प्रति उनकी ललक के बारे में थी. उस कहानी में यह बताया गया था कि कैसे वो सड़क पर रोशनीवाले खम्भों के नीचे घंटों पढ़ा करते थे क्योंकि उनका परिवार घर में गैस वाली लाइट का खर्च वहन करने में सक्षम नहीं था.
विद्यासागर का अर्थ होता है “विद्या का सागर”. उन्हें यह पदवी कलकत्ता के संस्कृत कॉलेज द्वारा संस्कृत और दर्शनशास्त्र में उनके बेहतरीन प्रदर्शन के लिए दी गयी थी. वे बंगाल पुनर्जागरण के एक अहम पुरोधा थे. संस्कृत कॉलेज में अपने नौ वर्षों के अध्ययन के दौरान, उन्होंने संस्कृत व्याकरण से लेकर अलंकार शास्त्र और खगोलशास्त्र समेत विविध विषयों का विस्तार से अध्ययन किया था. महज 21 साल की उम्र में 1841 में वे फोर्ट विलियम कॉलेज में संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष बन गये. एक शिक्षाविद के तौर पर उन्होंने शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए काम करना शुरू कर दिया.
बंगाली भाषा की वर्णमाला की जिस किताब - “बोरनो पोरिचय” - से प्रत्येक बंगाली बच्चे का परिचय कराया जाता है, उसके आवरण पर विद्यासागर की तस्वीर होती है. विद्यासागर ने बंगाली भाषा की वर्णमाला को सरल बनाकर इसे सबके लिए सुलभ बना दिया था.
विद्यासागर द्वारा किये गये शैक्षिक सुधारों को सक्रिय सामाजिक सुधारों से पूरक बनाया गया. उन्होंने बंगाल में विधवा पुनर्विवाह की वकालत कर रूढ़िवादी हिंदू धर्म को भीतर से चुनौती देने का साहस किया. विधवा पुनर्विवाह उन कई प्रगतिशील परिवर्तनों मेंसे एक था, जिसने बंगाल पुनर्जागरण की रुपरेखा को तैयार किया.
बंगाल में हुडदंग की संस्कृति और भाजपा
बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के आठ साल के शासन में हुडदंग का क्रमिक विकास हुआ है. और इसे तृणमूल कांग्रेस द्वारा पुरजोर समर्थन दिया गया और प्रायोजित किया गया है. हुडदंग की इस संस्कृति का आधार विरोध और आलोचना को चुप कराने के लिए हिंसा के रणनीतिक उपयोग में है.
हुडदंग की संस्कृति के साथ – साथ ममता बनर्जी और टीएमसी ने एक राजनीतिक रणनीति के तौर पर सक्रिय रूप से हिन्दुत्ववादी शक्तियों को प्रोत्साहित किया है. इसे आप पूरे पश्चिम बंगाल में आएसएस की शाखाओं में आचानक और तेजी से आई बाढ़ के रूप में देख सकते हैं.
हिंदुत्ववादी शक्तियों को समर्थन देने के साथ – साथ सुश्री बनर्जी ने इस्लामी कट्टरपंथी ताकतों को भी प्रोत्साहित किया. और यह सब एक रणनीति के तहत वामपंथियों को राजनीतिक हाशिए पर धकेलने की नीयत से किया गया.
विद्यासागर की मूर्ति की तोड़फोड़ के साथ यह प्रतिक्रियावादी दक्षिणपंथी राजनीति अपनी तार्किक परिणति पर पहुंच गयी है. हाल के दिनों में भाजपा के नेतृत्व में पूरे पश्चिम बंगाल में हुडदंग अपने चरम पर है और नफरत की राजनीति की उनकी विशिष्ट रणनीति वामपंथी शासन के तीन दशकों के दौरान बंगाली समाज में स्थापित धर्मनिरपेक्ष और प्रगतिशील भावना की धुर विरोधी है.
टीएमसी और बीजेपी, दोनों मिलकर इस प्रतिगामी संस्कृति को गूंथ रहे हैं. यह एक खतरनाक प्रवृति की ओर संकेत कर रहा है और बता रहा है कि 2019 में बंगाल में वास्तव में क्या दांव पर लगा है.