अलविदा नीलाभ

काबलियत और वैचारिक ऊँचाई जिन्हें भीड़ से अलग करती थी

Update: 2018-02-24 14:44 GMT

वो हवा के झोंके की तरह आते लेकिन थोड़ी देर में ही लोग उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होने लगते। नीलाभ मिश्र न केवल एक बेहतरीन पत्रकार बल्कि एक नेक इंसान भी थे।उन्हें हिंदी अंग्रेजी पर समान पकड़ और किसी भी विषय पर गहराई तक समझ के लिए याद किया जाता है।अपने से कनिष्ठ पत्रकारों के लिए वे एक शिक्षक भी थे।लोग उनसे सियासत का फलसफा समझते थे तो कोई उनसे विश्लेष्ण की विधा समझने का प्रयास करता। वे एक ऐसे पत्रकार थे जो सतह के उस पार देखते थे और फिर जमाने को उसके निहितार्थ बताते थे।

राजस्थान नीलाभ मिश्र से तब रूबरू हुआ जब वे नब्बे के दशक में अंग्रेजी दैनिक न्यूज़ टुडे के सवांददाता के रूप में जयपुर आये। इससे पहले वे पटना में नवभारत टाइम्स में थे। अंग्रेजी में विद्व्ता के बावजूद नीलाभ ने हिंदी पत्रकारिता को चुना।ऐसे बहुत कम पत्रकार देखे जो किसी नए राज्य को इतना जल्दी समझ सके। नीलाभ बहुत जल्द ही राजस्थान की बोली -भाषा , संस्कृति ,वास्तु ,परम्परा ,जाति समीकरण और सियासत को ठीक से जानने लगे।सरलता और सादगी उनके मिजाज में थी।इसीलिए वो जल्द ही राजस्थान में लोगो की पसंद बन गए।हालाँकि उनका अख़बार हैदराबाद से प्रकशित होता था। मगर नीलाभ मिश्र किसी स्थानीय रिपोर्टर से भी ज्यादा सक्रिय रहते। उन्हें यात्रा करना अच्छा लगता था।राजस्थान के हर दूरस्थ स्थान की यात्रा में वे ऐसा कुछ लेकर लौटते कि साथी पत्रकारों के लिए भी कुछ नया होता।

जब भी कोई साथी पत्रकार शब्द और भाषा के मामले किसी उलझन में फंसता ,नीलाभ मिश्र उसके लिए शब्दकोश की तरह काम आते।उन्हें इतिहास ,भूगोल ,भाषा ,मुहावरे ,साहित्य और राजनीति की अच्छी समझ थी।जब भी वे किसी साधारण विषय पर बोलने लगते ,लोग जिज्ञासु होकर सुनंने लगते। यही वो समय था जब समाज का एक हिस्सा जाति -धर्म को अपनी सियासी मंजिल के लिए इस्तेमाल करने लगा था।ऐसे में नीलाभ मिश्र जैसी समीक्षा करते ,उसे बहुत पसंद किया जाता। इसी वक्त राजस्थान में अधिकारों के लिए कई समूह और व्यक्ति खड़े हो रहे थे /इसमें मानव अधिकार ,सूचना का अधिकार और समाज के वंचित वर्गो के हको की लड़ाई के मुद्दे शामिल थे। नीलाभ मिश्र जल्द ही इन सबके चहेते बन गए।वे लोगो के लिए एक वैचारिक संबल थे। वे इन सबके सुख दुःख में भी एक सहारा थे। इसी दौरान उनकी मुलाकात मानव अधिकार कार्यकर्त्ता कविता श्रीवास्तव से हुई। जो बाद में ताहयात रिश्तो में बदल गई।

नीलाभ को शायद ही कभी किसी ने मायूस और उदास देखा हो।जिदंगी के हर सुख दुःख में वे अविचलित और मजबूत नजर आते थे।यहां तक कि अपनी इस तकलीफ में भी सहज नजर आते थे।शानो शौकत की जिंदगी से दूर नीलाभ हमेशा बहुत सादगी से रहना पसंद करते थे।वे बहुत परिश्रमी थे।इसी के सबब नीलाभ ने राजस्थान के दूर दराज के स्थानों का सफर किया और अनछुए मुद्दों और लोगो के बारे में रिपोर्टिंग की।वे एक विचारक और दार्शनिक की तरह जिये। नीलाभ उसूलो के पक्के थे। मगर उन्हें कभी किसी से दुराव और अदावत में जीते नहीं देखा।हर वक्त खुश मिजाज रहते थे । मुस्कान को वे हंसी तक ले जाते थे।हंसी अट्हास तक जाती और इंसान अपने दुःख दर्द भूल जाता।लेकिन न अब वो हंसी मुस्कान है ,न नीलाभ मिश्र।उनके यूँ रुखसत करने से हर कोई गमजदा है।
 

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