जानलेवा है पर्यावरण की सुरक्षा

जानलेवा है पर्यावरण की सुरक्षा

Update: 2018-04-11 13:06 GMT

फरवरी के अंतिम सप्ताह में तमिलनाडु के ठुत्तुकुदी जिले के कुमारात्तियापुरम गाँव में वेदांता समूह के एक ताम्बा उद्योग के विस्तारीकरण का विरोध करने वाले 270 से अधिक लोगों को तमिलनाडु पुलिस ने हिरासत में लिया, बाद में बच्चों और कुछ महिलाओं के छोड़ दिया गया, पर बाकी लोगों पर जिनमे कुछ महिलाएं भी शामिल थीं, को धारा 188, 143 और 441 लगा कर जेल में डाल दिया गया. ध्यान रहे, यह क्रमिक आन्दोलन पूरी तरह से शांतिपूर्ण था. दरअसल जिस उद्योग का विस्तारीकरण किया जाना है वह इलाके में प्रदूषण फ़ैलाने के लिए और पर्यावरण कानूनों के उल्लंघन के लिए कुख्यात है. हालत यह है कि वर्ष 2013 में सर्वोच्च न्यायालय ने इसपर 100 करोड़ रूपए के जुरमाना भी इसी कारण लगाया था पर पता नहीं कौन सी मजबूरी में इसे बंद करने का आदेश नहीं दिया. प्रदूषण फैलाता यह उद्योग अब विस्तारीकरण के लिया सारे स्वीकृति को प्राप्त कर चुका है. ठुत्तुकुदी जिले के एसपी महेन्द्रन के अनुसार जब उद्योग के पास सारी स्वीकृति है तब जन विरोध का कोई मतलब नहीं रह जाता और यह पूरी तरीके से गैर-कानूनी हो जाता है.

प्रतिष्ठित समाचारपत्र गार्डियन ने ग्लोबल विटनेस नामक संस्था के साथ सयुंक्त तौर पर वर्ष 2017 में ऐसे लोगों का एक रिकार्ड तैयार किया जिनकी हत्या पर्यावरण के विनाश का प्रतिरोध करने के कारण की गयी. “रिकार्डिंग एवरी डिफेंडर्स डेथ” के अनुसार वर्ष 2017 में पूरे विश्व में 197 लोगों की हत्या केवल इस लिए की गयी, क्योंकि वे पर्यावरण विनाश का प्रतिरोध कर रहे थे, यानि हरेक हफ्ते 4 लोगों की हत्या की गयी. सबसे अधिक हत्याएं ब्राज़ील में 46, फिलीपींस में 41 और कोलंबिया में 32 दर्ज की गयीं. खनन के विरोध करने वालों की हत्या सबसे अधिक की गयी. इसमें हमारे देश का भी उदहारण है – रेत खनन का विरोध करने पर मध्य प्रदेश के जैतपुरा में तीन भाइयों को कुचल डाला गया था.

पर्यावरण का विनाश हमारे लिए अनेक तरह की समस्याएं उत्पन्न करता है और अनेक मामलों में जानलेवा भी होता है. पर, समस्या यह है कि तथाकथित आधुनिक विकास का आधार ही पर्यावरण का विनाश है. विश्व की 1 प्रतिशत से भी कम आबादी के पास पूरी अर्थव्यवस्था के लगभग 70 प्रतिशत पर अधिकार है और अर्थव्यवस्था प्राकृतिक संसाधनों पर टिकी होती है. जाहिर है, ऐसी अवस्था में प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार गिने चुने लोगों का है जो अपनी मर्जी से इसका दोहन करते हैं और इस दोहन का प्रभाव पूरी दुनिया की आबादी पर पड़ता है. अधिकतर सरकारें, जिनमे भारत भी शामिल है, अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में पर्यावरण संरक्षण के बारे में सारे देश अपनी प्रतिबद्धता दिखाते हैं, पर सभी सरकारें उद्योगपतियों को संसाधन के दोहन की खुली छूट देती हैं.

पुलिस, सेना, राजनेता और कंपनियों के गुंडे

2 मार्च 2016 को होंडुरास में बाँध का विरोध करने के कारण गोल्डमैन पुरस्कार प्राप्त पर्यावरण हितैषी बर्ता काकेरेस को उनके ही घर में मार डाला गया. जांच में पता चला है कि हत्या के पहले उन्हें धमकी देने वालों में पुलिस, सेना, राजनेता और निर्माण कंपनियों के लोग शामिल थे. इस हत्या के लिए कुल 8 लोगों को हिरासत में लिया गया है, जिसमे कुछ सेना के लोग भी हैं. इसी वर्ष 24 जनवरी को ब्राजील में मर्चियो मतोस और 27 जनवरी को कोलंबिया में तेमिस्तोक्लेस मचाडो को मार डाला गया, दोनों उद्योगों द्वारा किसानों की जमीन हड्पने के विरोध की अगुवाई कर रहे थे.

पर्यावरण विनाश या प्रदूषण का प्रतिरोध साल दर साल पहले से अधिक खतरनाक होता जा रहा है. प्रतिरोध का स्वर दबाने में उद्योगपतियों या अवैध कारोबारियों का साथ स्थानीय पुलिस और सरकारें भी देती हैं. हमारे देश के साथ साथ लगभग पूरी दुनिया में ऐसा ही हो रहा है. दूसरी तरफ संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण के अध्यक्ष एरिक सोल्हीम के अनुसार पर्यावरण का अधिकार मानव अधिकार है, और हमारा कर्त्तव्य है कि पर्यावरण विनाश को रोकने के लिए जो लोग काम कर रहे हैं हम उनकी रक्षा करें.

पूरी दुनिया में फरवरी 2018 के दौरान पर्यावरण को बचने वालों पर बहुत जुल्म हो चुके हैं. वियतनाम में होन्ग दुक बिन्ह नामक पर्यावरण से सम्बंधित ब्लॉगर को 14 वर्षों के लिए जेल में डाल दिया गया. बिन्ह का कसूर यह था कि उसने सागर तट पर स्थापित एक स्टील प्लांट से उत्पन्न प्रदूषण के खिलाफ आन्दोलन कर रहे मछुवारों की अगुवाई की और ब्लॉग की मदद से पूरी दुनिया को बताया. केन्या में एस्मोंड ब्रेडली मार्टिन की निवास पर ही गोली मारकर हया कर दी गयी. मार्टिन हाथीदांत की तस्करी के विरुद्ध काम करते थे. वे अमेरिका के रहने वाले थे और तस्करी के विरुद्ध 1970 के दशक से ही काम करते थे. यहाँ यह जानना जरूरी है कि पूर्वी अफ़्रीकी देशों में हाथीदांत के लिए बड़ी संख्या में हाथियों का शिकार किया जाता है और पिछले 5 वर्षों के दौरान वहां हाथियों की संख्या में 40 प्रतिशत कमी दर्ज की गयी है.

केन्या में ही लेड स्मेल्टर उद्योग के प्रदूषण का विरोध करने वाली स्थानीय निवासी फीलिस ओमिडो के लगातार प्रताड़ित किया जाता है, उन्हें पुलिस ने जेल में भी डाला फिर भी रिहा होने के बाद वे अज्ञातवास में चलीं गयीं और वहीँ से न्यायालय में मुक़दमा दायर किया. मारे जाने के डर से वे दो वर्षों से सुनवाई के लिए न्यायालय भी नहीं जा पायीं थीं, इसी महीने की सुनवाई में वे पहली बार न्यायालय पहुँचीं.

कम्बोडिया में अवैध जंगल को काटने से रोकने पर तीन लोगों को गोलियों से भून दिया गया – इसमें एक वन सुरक्षाकर्मी, एक फ़ौज का अधिकारी और एक पर्यावरण कार्यकर्ता था. हाल में ही संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण ने ईरान सरकार से कहा है कि वे पर्यावरण रक्षकों की इज्जत करना सीख लें. ईरान में पुलिस हिरासत में बंद वन्यजीव कार्यकर्ता कावोस सैएद इमामी की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गयी. उनके साथियों का आरोप है कि पुलिस ने उनकी हत्या की है. इमामी अपने दल के साथ तेजी से विलुप्तिकरण की तरफ बढ़ रहे एशियाई चीते का अध्ययन कर रहे थे. उनके दल के दूसरे सदस्य अभी तक हिरासत में ही हैं.

इसी तरह के बहुत सारे उदहारण हैं जिनसे स्पष्ट होता है कि भारत समेत बहुत सारे देशों में पर्यावरण, वन, वन्यजीव और संसाधन उद्योगपतियों और सरकारों के धरोहर हैं और इनके खिलाफ आवाज उठाने वालों को कुचल दिया जाता है.
 

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