फूलन देवी को जैसा मैंने देखा
कैमरा निकाला और आंख में लगाने के बजाय तस्वीरें लेने लगा
एक दिन सुबह दफ्तर पहुंचने के बाद दि सन्डे के संवाददाता उदयन शर्मा ने मुझे दफ्तर के बाहर अकेले मिलने को कहा। उन्होंने कहा कि किसी महत्वपूर्ण और गुप्त विषय पर चर्चा करनी है और यह भी कहा कि इस बात का ज़िक्र मैं किसी से न करूं। तब उन्होंने मानों बम फोड़ते हुए कहा कि हम खूंखार डाकू फूलन देवी से मुलाक़ात करने मध्य प्रदेश के भिंड ज़िले के बीहड़ों में जा रहे हैं और चूंकि ये एक गुप्त मिशन है इसलिए मैं दस दिन छुट्टी बिताने अपने गृह जनपद जाने की अर्ज़ी अपने दफ्तर में तुरन्त लगा दूं। उन्होंने यह भी कहा कि दो दिन बाद हम दोनों इस मिशन पर निकलेँगे और फिर फूलन देवी से मिलने की उम्मीद में बीहड़ की ओर प्रस्थान करेंगे। ग्वालियर पहुंचने के थोड़ी देर बाद हमें बताया गया कि हमारी बाबा घनश्याम से मुलाकात होने की संभावना है। बाबा घनश्याम एक खूंखार डाकू था जो देवी दुर्गा का बहुत बड़ा भक्त था। एक पुलिस दल, जो उसका आत्मसमर्पण कराने की तैयारी में लगा था, उसे लाने जाने वाला था।
इंटरव्यू लेने गए बुद्धू बनकर वापस लौट आये
आधी रात के बाद भिन्ड के एसपी राजेंद्र चतुर्वेदी के नेतृत्व में हम बीहड़ की ओर बढ़ चले। मैं और दो मुखबिर एसपी की जीप में बैठे थे और आधे दर्जन सिपाही दूसरी गाड़ी में थे। हम एक जगह रुक गए और फिर वहां से लगभग 1 किलोमीटर पैदल चले। वहां से आगे चलते हुए ऐसा लग रहा था कि मानो वे दोनों मुखबिर आदेश दे रहे हों और एसपी साहब उनके दल के मात्र एक सदस्य। अब वायरलेस सेटों को बंद कर दिया गया। बीच-बीच में मुखबिर थोड़ी देर रुकते और मुंह से जानवरों की आवाज़ निकलते। ये आवाज़ें भेड़िया, उल्लू या कुत्ते की होती थीं और कभी-कभी वे खांसते और उधर से जवाब आने का इंतज़ार करते। कुछ कदम चलने के बाद मुखबिरों ने हमें अकेला छोड़ दिया और आगे निकल गए। उन्होंने एक बार फिर जानवरों की आवाज़ निकाली। जब कभी भी मुखबिर इस तरह की आवाज़ निकालते, मैं तस्वीर लेने के लिए खुद को तैनात कर लेता। उस समय मेरे पास दो कैमरे थे - एक 50 एम एम लेंस के साथ नाईकोरमेट और दूसरा 35 एम एम लेंस वाला असाई पेन्टेक्स। साथ ही रात में तस्वीर लेने के लिये एक फ्लैश भी था। हम सांस रोके इंतज़ार कर रहे थे कि कब अचानक डाकू उधर से आते दिख जायें। एक घंटे बाद भी जब उधर से कोई जवाब नहीं आया तो एसपी ने वायरलेस सेट चालू कर दिया और अपने मुख्यालय से संपर्क साधने का प्रयास किया, लेकिन संपर्क नहीं हो पाया। लेकिन उनके द्वारा इधर चार्ली शब्द का उच्चारण शायद पास ही छुपे डाकुओं ने सुन लिया और वे सजग हो गए। इस बात से आशंकित हो कि कहीं वे मुठभेड़ में मार न दिए जाएं, वे बीहड़ से बाहर नहीं निकले। कुछ महीने पहले ही उत्तर प्रदेश पुलिस खूंखार डाकू छवि राम को सुरक्षित आत्मसमर्पण का वादा करने के बावजूद फ़र्ज़ी मुठभेड़ में मार चुकी थी। शायद पुलिसवालों की इस चाल को समझते हुए बाबा घनश्याम और उसके गिरोह के सदस्यों ने बाहर आने का संकट मोल नहीं लिया। पूरा अभियान टांय-टांय फिस्स हो गया और इसके लिए मैं एसपी द्वारा की गयी बेवकूफ़ी को जिम्मेदार ठहराऊंगा। हम सुबह 2 बजे बुद्धू बनकर वापस लौट आये।
घरेलू सी दिखाई देने वाली लड़की फूलन हैं, समझ ही नहीं सका
लेकिन तभी हमारी किस्मत ने पलटी मारी। क़रीब बीस मिनट बाद हमारे संपर्क व्यक्ति ने हमें तैयार रहने को कहा क्योंकि दस्यु रानी, जैसा कि वो अब कहलायी जाने लगी थीं, से 4 बजे भोर में मुलाक़ात की संभावना बनने लगी थी। हम फिर किसी की कार में बैठ कर मऊ गांव पहुंचे और फिर वहां से पैदल चलते हुए गेहूं के खेत में पहुंचे। खेत के बीचोंबीच एक झोपड़ी थी जहां पर अलाव जल रही थी। अभी भी अन्धेरा ही था, सुबह नहीं हुई थी। वहां मैंने कुछ लोगों को पुलिस की वेशभूषा में देखा जो पुलिस वालों से ज़्यादा डकैत लग रहे थे। मैं भी अलाव के निकट खड़ा था और फूलन को ढूंढ रहा था, लेकिन वहां कोई महिला नहीं दिख रही थी। उसे न पाकर मैं उदास हो गया, लेकिन वहां उपस्थित दूसरे डाकू या तो बीड़ी सुलगाये हुए थे या फिर चिलम धौंक रहे थे। मैं अपना कैमरा नहीं निकाल पाया क्योंकि मुझसे ऐसा करने को नहीं कहा गया था। तब मैंने अपने संपर्क व्यक्ति से पूछा कि फूलन कहां हैं? वो बोला- "आप भी कैसी बात करते हो ? वो तो वहीं बैठी है जिस जगह आप थोड़ी देर पहले खड़े थे।" मुझे विश्वास ही नहीं हुआ क्योंकि वहां तो शॉल लपेटे एक घरेलू सी दिखाई देने वाली लड़की बैठी थी जो ग्रामीण पृष्ठभूमि की कोई भी लड़की हो सकती थी। फूलन की जो छवि मेरे दिमाग़ में थी उसके अनुसार उन्हें लम्बी-चौड़ी डील-डोल और खूंखार सी दिखने वाली महिला होनी चाहिए थी, लेकिन उनमें ऐसा कुछ भी नहीं था। मुझे आश्चर्य हुआ कि कैसे इतनी सीधी-सादी सी लड़की दुनिया के द्वारा दस्यु सुंदरी कहलाई जाने लगी! एक व्यक्ति के रूप में मैं इस पर विश्वास नहीं कर सका, लेकिन तभी मुझे एहसास हुआ कि मैं तो यहां एक खबरिया छायाकार के रूप में आया हूं और यह एक बहुत महत्वपूर्ण मिशन है जिसने मुझे मौक़ा दिया है फूलन की विशेष तस्वीरें लेने का।
जब तस्वीरे लेने की इजाजत ली
मैंने अपनी भावनाओं पर लगाम लगाई और अपने संपर्क व्यक्ति से पूछा कि क्या मैं फूलन की तस्वीर उतार सकता हूं? उसने मुझे कुछ देर और इंतज़ार करने को कहा। सूरज उग रहा था और आसमान में नीलिमा छाई थी। चूंकि रोशनी बढ़ती जा रही थी इसलिए मैं श्वेत-श्याम तस्वीरें ही ले सकता था। मेरे संपर्क व्यक्ति ने सामने से तस्वीर लेने को कहा। यह एक लम्बे फ्रेम (वर्टिकल) का शॉट था जिसमें फूलन देवी अपने गिरोह के सदस्यों से घिरी अलाव के सामने बैठी थीं, उनके गिरोह के 2-3 सदस्य उनके बांयें और 2-3 उसके दायें बैठे थे और 4-5 सदस्य उनके पीछे खड़े थे। कुछ देर बाद वो खड़ी हो गयीं और बोलीं - अब कोई तस्वीर नहीं वरना मैं मार दिया जाऊंगा। उन्होंने ये भी जानना चाहा कि मुझे यहां कौन लाया है। उस समय नागरिक पोशाक पहने पुलिस अधीक्षक (एसपी) ने उनसे कहा कि चिंता करने की कोई बात नहीं है, ये सब उनकी भलाई के लिए ही किया जा रहा है। बाद में फूलन को जब बताया गया कि मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के एक करीबी सहायक ने हमें यहां भेजा है तब जाकर वो थोड़ा शांत हुईं। तब उन्होंने याद करते हुए बताया कि कुछ समय पहले एपी न्यूज़ एजेंसी ने उनसे संपर्क किया और उनकी तस्वीरें खींचने के बदले एक लाख रुपये देने की पेशकश की थी, लेकिन उन्होंने मना कर दिया था।" और यहां तुम ऐसे ही फ़ोटो खींच रहे हो, कैमरा वापस रक्खो।"
जब फूलन ने तस्वीरें लेने की इजाजत दी
खबरिया छायाकार होने के नाते मैं साफ तौर पर निराश था क्योंकि फूलन की तस्वीरें उतारने का यह बहुत बड़ा मौक़ा था। कुछ देर बाद गिरोह उस जगह जाने के लिए चल पड़ा जहां, मुझे पता चला, फूलन की मां और बहनें उनसे मिलने का इंतज़ार कर रही थीं। सभी डाकू एक पंक्ति में चल रहे थे। सबसे आगे एक लम्बा मुच्छड़ डाकू चल रहा था जिसने बन्दूक आसमान की और तानी थी, फूलन उसके पीछे थीं और जो डाकू सबसे पीछे था वो गठरी सिर पर लेकर चल रहा था। बढ़िया तस्वीर खींचने का मौका देख मैंने बैग से कैमरा निकाला और आंख में लगाने के बजाय मैंने वहीं से तस्वीरें लेना शुरू किया ताकि किसी की नज़र मेरे ऊपर न पड़े। मुझे पूरा विश्वास था कि मैं कुछ तस्वीरें खींचने में सफल रहा हूं, लेकिन डाकुओं को लगा कि मैं कैमरा बैग से बाहर निकाल रहा हूं और मुझे ऐसा न करने को कहा। अचानक मैंने देखा कि फूलन देवी किसी बात पर गुस्सा हो गयीं और पुलिस अधीक्षक को धमकाने लगीं कि वो उसे मार डालेंगी और उसके शरीर को कुत्तों के आगे फेंक दिया जाएगा। लेकिन पुलिस अधीक्षक सयंमित रहे और बोले- वो किसी से नहीं डरते हैं और जो कुछ भी वे कर रहे हैं फूलन के भले के लिए ही कर रहे हैं। लेकिन फूलन ने कहा कि जिस तरह उत्तर प्रदेश पुलिस ने छवि राम की हत्या की उससे पुलिस पर विश्वास नहीं किया जा सकता है। लेकिन पुलिस अधीक्षक ने हाथ जोड़े और गुहार लगाई कि उन्हें अपनी जान की परवाह नहीं है और उनके गिरोह ने जो भी शर्तें रखी हैं उन पर पूरी तरह से विचार किया जाएगा और उन्होंने पहले ही मुख्यमंत्री से इस सम्बन्ध में बात की हुई है। यह सुनकर फूलन कुछ शांत हुईं और तब हम आगे बढ़ने लगे। हम तब तक चलते रहे जब तक हम उस जगह पर नहीं पहुंच गए जहां पर फूलन की बहनें और मां उनका इंतज़ार कर रही थीं। उन्हें देख कर फूलन काफी खुश हुईं और अपनी छोटी बहन मुन्नी के गले लग गयीं। चूंकि मैं इससे पहले फूलन के गांव पहुंच चुका था और उनकी बहनों से मिल चुका था, मैंने इस मौके का फ़ायदा उठाते हुए यह कहते हुए फूलन से दोस्ती करने का प्रयास किया कि उनके घर पर एक बकरी अब काफी बड़ी हो चुकी है। लकड़ी की एक बेंच पर पैर पर पैर चढ़ा बैठी फूलन ने सिर हिलाते हुए हामी भरी। इससे मेरी हिम्मत बढ़ी और मैंने पूछ डाला- क्या आपकी बहन मुन्नी के साथ मैं आपकी तस्वीर उतार सकता हूं? उन्होंने मेरी बात मान ली, लेकिन इस शर्त के साथ कि मैं केवल दो तस्वीर ही खींच सकता हूं। जैसा कि कोई भी छायाकार करेगा, मैं उनकी बात अनसुनी कर कई तस्वीरें खींचता रहा जब तक उन्होंने मना नहीं कर दिया। मैं मान भी गया।
कुछ देर बाद उन्होंने अपना हुलिया बदल कर खाकी पैंट-शर्ट पहनी, गोलियों से लदी एक बेल्ट को अपने कंधे पर लटकाया जो उनकी कमर को छू रही थी और अपने हाथ में एक राइफल पकड़ ली। चूंकि सभी डाकू व्यस्त थे इसलिए मैं तबियत से उनकी तस्वीरें लेता रहा। मुझे खुशी थी कि मैं जो चाह रहा था वो मुझे मिल गया। काम पूरा होते ही मैं जल्द से जल्द दिल्ली पहुंचना चाहता था ताकि उन तस्वीरों को प्रकाशित होने के लिए दे सकूं। मैं पुलिस अधीक्षक के पीछे-पीछे चल रहा था। अधीक्षक अपनी जीप में डाकू बाबा घनश्याम को लाने जा रहा था, शायद वे चाह रहे थे कि दोनों डाकू एक ही मंच से आत्मसमर्पण करें। मैं भी उनकी जीप में चढ़ गया हालांकि वो कहते रह गए कि मैं क्यों आ रहा हूं।
आत्म समपर्ण के वक्त मेरा अर्द्धसैनिक बल के अनुभव का उपयोग
मैं अधीक्षक के साथ उनकी जीप में बैठ गया और दोपहर बाद हम एक बार फिर बीहड़ की और बढ़ चले। यह तस्वीर उतारने के लिए बेहद खूबसूरत लोकेशन थी। छोटी-छोटी पहाड़ियों से घिरी घाटी के बीच मैं दूसरे लोगों के साथ खड़ा था। पहाड़ियों पर चारों ओर डाकू हाथ में बंदूकें लिए खड़े थे। वे जय माता की आवाज़ें लगा रहे थे। अचानक हर दिशा से बढ़ते हुए वे हमें घेरने लगे। मैं दनादन तस्वीरें खींचता चला गया, लेकिन मुझे लगातार महसूस हो रहा था कि मैं किसी फ़िल्मी दृश्य को शूट कर रहा हूं, न कि वास्तविक दृश्य को। तस्वीर खींचने के लिहाज़ से रोशनी सटीक थी। जब वे और निकट आये तो मैंने बाबा घनश्याम की कई तस्वीरें उतारी। बाबा मुझसे लिपट गए और बोले - मेरी और तस्वीरें खींचो। फिर वो ऐसी मुद्रा में खड़े हो गए मानों गोली चला रहे हों। मैंने उनकी तस्वीरें करीब से लीं ताकि उनके चेहरे के हाव-भाव को भी कैमरे में क़ैद किया जा सके। ये तस्वीरें मैंने साधारण लेंस से ही लीं। हालांकि यहां मेरा अर्द्ध सैनिक बल में थोड़े समय काम करना उपयोगी रहा। मुझे पता था कि अगर मैं बहुत करीब से तस्वीर उतारूंगा तो स्वचालित हथियार से चलायी गयी गोली की आवाज़ से कम्पन पैदा होगा जिससे तस्वीर हिल सकती है। इसीलिये इस अभियान के दौरान मैंने एक ख़ास दूरी बनाये रखी। लेकिन मेरी कमज़ोरी रही है कि मैं आस-पास के माहौल की तस्वीर न लेकर अपने शिकार को ही तवज्जो देता हूं। अब मुझे महसूस होता है कि फूलन देवी की तुलना में यह शूट मेरे लिए ज़्यादा सरल रहा। हालांकि मुझे ताज्जुब हुआ कि जब घनश्याम का केस न्यायलय में चल रहा था और उसे पेशी के लिए कोर्ट में लाया जा रहा था तो वह लघुशंका के बहाने वहां से भाग निकला और फिर दोबारा कभी पकड़ा नहीं गया। एक चीज़ जो उसके बारे में मुझे याद है वो ये कि वो अपने माथे पर बड़ा सा तिलक लगाता था, वह लंबा और सुडौल काठी का था, मोटी मूंछे रखता था और एक डाकू की तरह ही दिखाई देता था। लेकिन चूंकि मैं उसके काफी क़रीब खड़ा था, उसके शरीर से दुर्गन्ध आ रही थी, मानों वह हफ़्तों से नहाया नहीं हो। तस्वीर खिंचवाते समय उसने अपने सर पर गमछा बांधा था। कुछ देर बाद घनश्याम और दूसरे डकैतों को एक जीप और दूसरी गाड़ियों में बिठा कर वहीं ले जाया गया जहां फूलन देवी थीं। चूंकि मेरा काम ख़त्म हो चुका था लिहाजा मैं चुपके से वहां से ख़िसक गया, थोड़ी दूर पैदल चला, मऊ गांव के बस स्टॉप पर पहुंचा और ग्वालियर के लिए बस पकड़ ली। मैं सीधे रेलवे स्टेशन की ओर बढ़ चला।
तस्वीरों के साथ दिल्ली पहुंचने की जल्दी
प्लेटफॉर्म पर पहुंच कर सीधे एक दुकान पर कुछ खाने के लिए गया क्योंकि पिछले 24 घंटों से मैंने कुछ नहीं खाया था। लेकिन तभी मैंने देखा कि प्लेटफॉर्म में खड़ी एक ट्रेन चलने ही वाली है। पूछने पर पता चला कि ट्रेन दिल्ली जा रही है। खाने का इरादा छोड़ मैं तुरंत उस पर चढ़ गया। भोर 4 बजे दिल्ली पहुंचा और सीधे कार्यालय की ओर चल पड़ा। कार्यालय में पहुंच मैंने 5.30 बजे तक खींचे गए फिल्म रोल को धोया और डेवेलप किया। फिर अपने ब्यूरो प्रमुख केवल वर्मा को फोन लगाकर खींची गयी तस्वीरों के महत्व के बारे में बताया। यह सुन कर वो बहुत उत्साहित हुए और मुझे बताया कि फूलन देवी और उनके गिरोह के आत्मसमर्पण की खबर सुन कर सोंदीप शंकर अभी-अभी घटना स्थल पर जाने के लिए निकल पड़े हैं। मैंने तस्वीरें तत्कालीन संपादक एम जे अकबर को दे दीं। अकबर उन दिनों दिल्ली में ही थे। तस्वीरें सन्डे पत्रिका में छपीं। लेकिन उस दिन वे तस्वीरें आनंद बाज़ार पत्रिका में लीड स्टोरी के रूप में छपीं। लीड हेडिंग बांग्ला में थी जिसका हिंदी में तर्जुमा इस प्रकार था -'मुख पर हाथ रख ले, पर फोटो मत खींच।' लीड स्टोरी दस्यु रानी फूलन देवी और उनके गिरोह के सदस्यों के साथ मेरी बातचीत पर आधारित थी। दि टेलीग्राफ में भी कुछ तस्वीरें छपीं जबकि दूसरे अखबार फूलन के आत्मसमर्पण की संभावना की ही बात कर रहे थे। इसीलिये ये स्कूप था। सन्डे और रविवार साप्ताहिक पत्रिकाओं में वो कवर स्टोरी बनीं। रविवार ने फूलन देवी की जो तस्वीर छापी वो उनकी पहली-पहल छपी तस्वीर बनी। उस तस्वीर पर जो हेडिंग लगाई गयी थी वो थी-'फूलन की फोटो खींचना आसान नहीं था।' यह भी लिखा गया था - फोटो जगदीश यादव द्वारा। बाद में जब फूलन देवी सांसद बन गयीं, वे बराबर मेरे संपर्क में रहीं।
जब बिना इजाजत हम फूलन देवी से जेल में मिलें
सच तो ये है कि जब भी कोई पत्रकार उनका साक्षात्कार लेने जाता था, वो मुझे फ़ोन कर बुलातीं ताकि सब-कुछ व्यवस्थित ढंग से संपन्न हो जाए। जब फूलन देवी को जेल गए साल भर होने वाला था, एम जे अकबर ने तवलीन सिंह और सोंदीप शंकर को यह कहानी करने के लिए ग्वालियर भेजा कि फूलन ने ये अरसा जेल में कैसे बिताया। उन दोनों ने मध्य प्रदेश के उच्च अधिकारियों, डीजीपी, मुख्यमंत्री तक से संपर्क किया, लेकिन उन्हें बताया गया कि जेल मैनुअल इसकी इजाज़त नहीं देता है। उन्होंने अकबर से कहा कि कहानी करना संभव नहीं है। तब मैंने और संतोष ने आपस में बातचीत की। फिर संतोष ने मुझसे अकबर को ये कहने को कहा कि हम इस कहानी पर काम करने की कोशिश करेंगे। अकबर के मान जाने पर मैं कुछ काम पूरा करने के बाद संतोष के पास कानपुर चला गया। फिर हम बस लेकर कल्पी पुलिस स्टेशन चले गए। संतोष वहां के कार्यभारी आर डी सिंह को जानते थे। सिंह साहब ख़ुद हमें फूलन के पैतृक गांव लेकर गए थे जहां हम फूलन के माता-पिता और परिवार के दूसरे सदस्यों से मिले थे। मैंने उनकी कुछ तस्वीरें भी खींचीं थीं। इसके बाद हम दोनों बस लेकर ग्वालियर चले गए। पुलिस महक़मे में उनके सम्पर्कों का इस्तेमाल कर जेल की आचार संहिता और नियमों का उल्लंघन करते हुए हम ग्वालियर जेल में प्रवेश करने में सफल हो गए थे। फूलन देवी को इसी जेल में रखा गया था। साफ़ था कि वो संतोष को नहीं जानती थीं, लेकिन मुझे पहचान गयीं क्योंकि मैं पहले भी उनसे चम्बल के बीहड़ों में मिल चुका था। देखते ही वो बोली-'अरे बाबू जी आप तो हमें बीहड़ में मिले थे।' वो उत्साहित हो इतनी ऊंची आवाज़ में बात करने लगीं कि मुझे डर लगने लगा कि हम पकड़े जायेंगे। मैंने उनसे शांत रहने का निवेदन किया क्योंकि हम अनुमति के बिना ही जेल में आये थे। हम फूलन की जेल सेल में थे जहां वो अपने पूरे दल के साथ रह रही थीं। हमने दरवाज़ा बंद कर दिया और कुछ सेकेंड्स बाद मैंने उनसे अपने पालतू कुत्तों को खिलाने को कहा। मैं तस्वीर लेने लगा। चूंकि मैं फूलन देवी की अलग-अलग अदाओं में तस्वीर लेना चाहता था इसलिए मैंने उनसे पूछा क्या आप साड़ी पहन कर तस्वीर के लिए पोज़ देंगीं? पहले फूलन ने कहा कि वो साड़ी कैसे बांधेंगी, फिर उन्होंने सुझाया कि शायद उनकी बहन रुक्मणी उनकी मदद कर पाएंगी। मैं काफ़ी उत्साहित था और जब हम अगले दिन उनके पास आये तो मैंने एक रंगीन फिल्म रोल अपने साथ रख लिया था। उनके निकट सहायक मान सिंह उन दिनों उनके पति थे। मैंने उन दोनों की एक-दूसरे के साथ वाले पोज़ में तस्वीर उतारी। इस तस्वीर में मान सिंह फूलन को अमरुद खिला रहे थे। मैं खुशी-खुशी तस्वीरें उतार रहा था मेरा श्वेत-श्याम फ़िल्म रोल ख़त्म हो गया था और मैंने रंगीन रोल से दो तस्वीरें खींची ही थीं कि तभी उनके गिरोह का एक सदस्य चिल्लाता हुआ आया कि फूलन के गिरोह के सदस्यों पर मामूली बात पर बगल की सेल में रह रहे डाकू मल्खान सिंह के गिरोह के लोगों ने हमला बोल दिया है। ज़ाहिर है हमले से वे सब बौखलाये थे। फूलन ने उनसे बदले में हमला करने के लिए तैयार रहने को कहा और खुद भी जाने के लिए तैयार हो गयीं। इस सबने तस्वीरों को खींचने की मेरी संभावना को ख़त्म सा कर दिया। इस आशंका को भांपते हुए मैंने फूलन देवी से 10 मिनट और इंतज़ार करने को कहा ताकि मैं उनकी रंगीन तस्वीरें उतार सकूं, नहीं तो मैं पकड़ा जाऊंगा। लेकिन उन्होंने मेरी एक नहीं सुनी बल्कि पलट कर गुस्से में बोलीं-' बाबू हमें पांच मिनट दीजिये, हम वापिस आयेंगे लेकिन पहले हमें मल्खान और उसके गिरोह के सदस्यों को सबक सीखना होगा।'
हम चलने को ही थे कि मान सिंह ने मुझसे अपना नाम, संपर्क नंबर और पता देने को कहा ताकि भविष्य में बात-चीत हो सके। जैसे ही मैंने अपना नाम और फ़ोन नंबर एक कागज़ के टुकड़े पर लिखा, मानसिंह अचानक झुंझलाकर सिर हिलाते हुए खुद से बोले- 'ये क्या बेवकूफ़ी हमसे हो गयी। 'मैंने पूछा- क्या हुआ? उन्होंने कहा- हमारे आदमियों ने जंगल में आपको बहुत परेशान किया और अगर उन्हें पहले पता चल गया होता कि मैं यादव हूँ तो-"हमने पुलिस अधीक्षक राजेन्द्र चतुर्वेदी को वापिस भेज दिया होता और सरकार से कहा होता कि हम जगदीश यादव की वजह से आत्मसमर्पण कर रहे हैं और इस तरह वो ईनामी राशि आपको मिल जाती जो सरकार ने हमारे सिर पर रखी है। हमें इस बात का दुःख है। "मुझे याद है कि मेरी तस्वीरों और कहानी को अखबार में प्रमुखता जगह दी गयी थी, फिर भी एमजे अकबर ने मुझसे कहा कि अगर मैंने कहानी के मूड के हिसाब से कुछ और तस्वीरें खींचीं होतीं तो बेहतर होता। मैं समझ रहा था कि वो खुश नहीं हैं और न ही मैं संतुष्ट था और इसका मुझे अब तक मलाल है। लेकिन मेरा दिल ही जानता है कि उस समय मैं कितनी कठिन परिस्थिति में था।
फूलन का भरोसा
मुझे याद है जेल में रहते हुए वे मुझे लिखते रहे कि चूंकि सरकार द्वारा उनसे किया गया वादा पूरा नहीं किया जा रहा है। इसलिए उन्हें बहुत परेशानी महसूस हो रही है। उन्होंने मुझे लिखा कि फूलन को महिला सेल में भेजा जा रहा है। एक बात और जो उन्होंने लिखी वो ये कि फूलन के आत्मसमर्पण की शर्तों के अनुसार उनके भाई शिव नारायण को मध्य प्रदेश पुलिस विभाग में नौकरी दी गयी थी। वो छुट्टी लेकर अपने घर जाना चाहता है, लेकिन डर रहा है कि उत्तर प्रदेश की पुलिस कहीं उसे मार न डाले।
बाद में मुलायम सिंह यादव की पहल पर फूलन देवी जेल से रिहा कर दी गयीं और आगे चलकर सांसद भी बनीं। अब जब वे दक्षिणी दिल्ली के चितरंजन पार्क इलाक़े में रहने लगीं, मेरा उनसे दोबारा संपर्क स्थापित हो गया। यहीं पर रहते हुए एक बार जब हमारे कलकत्ता कार्यालय के एक वरिष्ठ पत्रकार उनका साक्षात्कार लेने गए तो फूलन देवी ने पहले उनसे उनके अखबार का नाम पूछा और फिर रुखेपन से जवाब दिया-" आप पहले जगदीश यादव से बात करें तभी मैं आपको साक्षात्कार दूंगी। "जब उन्होंने कहा कि मैं उन्हीं के अखबार में काम करता हूं, फूलन ने पलट कर कहा, "ठीक है, चूंकि आप उनके अखबार में काम करते हैं तो आप मुझसे कुछ भी पूछ सकते हैं।" जब मेरे वरिष्ठ सहयोगी ने ये बात मुझे बताई तो मुझे बड़ी झेंप हुई। फूलन देवी जब सांसद बन चुकी थीं तो एक बार मुलायम सिंह के भाई रामगोपाल यादव ने पत्रकार उदयन शर्मा का परिचय फूलन से करवाया। जब उदयन ने फूलन से कहा कि उनके आत्मसमर्पण के समय उनका साक्षात्कार लेने वाले वो पहले पत्रकार थे और क्या वे उन्हें पहचानती हैं तो फूलन ने बड़ी नम्रता से कहा- नहीं, मैं केवल जगदीश यादव को पहचानती हूं जो मुझसे बीहड़ के जंगल में मिले थे। लाजिमी था, फूलन के जवाब पर उदयन थोड़ा निराश हुए। बाद में उन्होंने मुझे ये किस्सा सुनाया।
जगदीश यादव वरिष्ठ फोटोग्राफर हैं। (साभार : उनकी शीध्र प्रकाश्य पुस्तक का जन मीडिया में प्रकाशित अंश)