कायमखानी युवाओं की मेहनत से जोड़ो के लेन-देन का चलन कम हुआ

बचत का उपयोग तालीम पर खर्च हो रहा है।

Update: 2018-08-16 14:43 GMT

राजस्थान के शेखावाटी जनपद, मारवाड़ व बीकाणा के अलावा मेवाड़ के कुछ हिस्सों में खासतौर पर निवास करने वाली कायमखानी बिरादरी में बिना वजह जोड़ो के लेनदेन की सामाजिक बुराई के घर कर जाने से समाज में जो खोखलापन बढ़ गया था उसे बचाने के लिये बिरादरी के युवाओं ने इस कुरीति के खिलाफ दो साल पहले जगं छेड़ी थी। दो वर्षों के बाद युवाओं की उस मेहनत का काफी हद तक रंग लाई हैं और आगे सफलता के रास्ते खुलते साफ नजर आने लगे हैं। कायमखानी राजपूत बिरादरी के चौहान वंशज के मोटेराव चौहान के पुत्रों के इस्लाम धर्म अपनाने वाली बिरादरी है और खेतिहर व देहाती परिवेश में रहने के अलावा फौज व पुलिस की सेवा के लिये जहनी तौर पर परिपक्व मानी जाती है।

सामाजिक तौर पर किसी भी तरह के समाज सुधार के लिये चलाये जाने वाले जन आंदोलन में से यह पहला आंदोलन माना जा सकता है जिसमे युवाओं ने खुद सेवक बनकर अपनी बहनों व माताओं को आगे रखकर आंदोलन में भाग लेकर सफलता पाई है। शेखावाटी जनपद के भींचरी गावं में युवाओं ने सर्वप्रथम उक्त कुरीति के खिलाफ व समाज को खोखला होने से बचाने की मंशा को लेकर महिला सम्मेलन आयोजित किया और जो शमां उस समय रोशन की थी, उसके सार्थक परिणाम अब धरातल पर साफ नजर आने लगे है। यानि नेक इरादे के साथ शुरु करने वाले काम में लोगों का भी साथ मिलता गै और परिणाम भी आसमान छूने लगते है।

हालांकि इस तरह के लेनदेन के जोड़े वेसे तो किसी के पहने के काम में कभी नही आते थे। केवल रस्म अदायगी के लिये इनकी खरीद पर धन की बरबादी होती थी। उक्त जोड़े एक दूसरे के हाथ से एक दूसरे के हाथों तक जाने का लगातार सफर तब तक करते थे तब वो जोड़े गल कर टूकड़े टूकड़े ना हो जाये। हां वो जोड़े अपने लगातार जारी सफर में हर हाथ से दूसरे हाथ मे जाने से पहले अपनी प्लास्टिक का खोल जरुर नया पहन लेते थे ताकि उनका ऊपरी रुप नया सा नजर आने लगता था।

कायमखानी यूथ ब्रिगेड की पहल पर समाजिक सुधार के एक पहलू के तौर पर जोड़ो के समाजी स्तर पर बेजा लेनदेन पर बहनों व माताओं के सहयोग से काफी हद तक सफलता मिलती साफ नजर आने लगी है। दूसरी तरफ इस तरह के कपड़ो के अनेक विक्रेताओं की दूकानों पर कागले बोलने लगे है। थक हार कर अनेक कपड़ा विक्रेताओं को अपनी दूकान का स्वरुप व विक्रय के लिये माल में बदलाव करना पड़ा है। साथ ही इस तरह की कुरीति के कमजोर होने से इससे होने वाली माली व समय की बचत का उपयोग बच्चों की तालीम पर खर्च होने से समाज में बदलाव की बयार बहने लगी है।
 

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