उतराखंड में भालू का केला खतरे में
इसका टूटी हुई हड्डियों को जोड़ने में इस्तेमाल किया जाता है
उत्तराखण्ड में सीमांत पिथौरागढ़ जिले के गोरी घाटी क्षेत्र में पाया जाने वाला पुष्पीय पादप हरजोजन आर्किड के अस्तित्व पर अब मानवजनित खतरा मंडराने लगा है।
पिथौरागढ़ जिले में मुनस्यारी से जौलजीबी तक फैली गोरी गंगा नदी घाटी क्षेत्र में पायी जाने वाली आर्किड की लगभग 127 विभिन्न प्रजातियों में से एक हरजोजन आर्किड अपने औषधीय गुणों के कारण जानी जाती है।इसके सम्पूर्ण पादप का इस्तेमाल प्राचीनकाल से ही लोक औषधि के रुप में और विशेषकर टूटी हुई हड्डियों को जोड़ने में किया जाता रहा है।
स्थानीय लोग इसे भालू का केला नाम से पहचानते हैं।
वन विभाग की अनुसंधान शाखा द्वारा तैयार एक रपट के अनुसार हर्बल एवं आयुर्वेदिक दवाइयों में प्रयोग किये जाने वाले हरजोजन आर्किड का कुछ व्यापारियों द्वारा सोशल मीडिया के माध्यम से अवैध व्यापार किया जा रहा है जिस कारण इस बहुमूल्य औषधियुक्त दुर्लभ एवं महत्वपूर्ण प्रजाति के आर्किड के अवैध विदोहन की प्रबल संभावना है।
वन संरक्षक अनुसंधान वृत,उत्तराखण्ड संजीव चतुर्वेदी ने द सिटीजन को बताया कि इस प्रजाति के औषधीय गुणों के कारण इसके अवैध व्यापार का प्रयास किया जा रहा है तथा सोशल मीडिया के माध्यम से 20 हजार रुपये प्रति किलोग्राम की दर से अवैध विक्रय का प्रयास भी किया जा रहा है।
उन्होंने बताया कि यह दुर्लभ आर्किड प्रजाति अत्यंत विशिष्ट वासस्थल में ही सीमित है लिहाजा इसके अवैध दोहन से इसके अस्तित्व को खतरा बना हुआ है।