असम में “लोकतंत्र की मौत” पर कॉटन यूनिवर्सिटी के छात्रों ने निकाली रैली
बोलने की आज़ादी पर लगाये जा रहे प्रतिबंधों से छात्र आक्रोशित
असम की वर्तमान कठिन परिस्थितियों से क्षुब्ध गुवाहाटी स्थित कॉटन यूनिवर्सिटी के छात्रों के एक समूह ने अपनी आवाज़ जोरदार तरीके से बुलंद करने का निर्णय लिया है. उन्होंने बोलने की आज़ादी पर आहिस्ता – आहिस्ता लगाये जा रहे प्रतिबंधों को तोड़ने का ठान लिया है.
यूनिवर्सिटी वीक के एक हिस्से के तौर पर निकाले गए एक मार्च में स्वाहिद मोज़म्मिल हक़ छात्रावास के करीब 60 छात्रों ने राज्य एवं देश भर के वर्तमान हालातों को आठ विषयों पर तैयार नृत्य - नाटिका के माध्यम से दर्शाया.
कॉटन यूनिवर्सिटी में भू – विज्ञान के छात्र मुकुंद सैकिया ने द सिटिज़न को बताया, “ आजकल चारो तरफ जो कुछ चल रहा है, वो बेहद विचलित कर देनेवाला है. विरोध दर्ज कराने वालों को हर जगह मार दिया जा रहा है. ऐसा महसूस होता है मानो हमारे देश में लोकतंत्र की हत्या कर दी गयी हो. इन चीजों की अब इन्तहां हो गयी है. समय आ गया है कि छात्र के तौर पर हम भी कुछ ऐसा करें जिससे लोगों को पता चले कि हमारे इर्द – गिर्द कैसी अस्वाभाविक चीजें घटित हो रही हैं.”
छात्रों द्वारा प्रस्तुत विषयों में पड़ोसी मुल्क के धार्मिक अल्पसंख्यकों को नागरिकता प्रदान करने के लिए केंद्र द्वारा लाया गया नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016, सरकार द्वारा बड़े व्यापारिक घरानों की हिमायत और असम में बाढ़ और कटाव से पीड़ित लोगों की उपेक्षा शामिल थी.
सैकिया ने हाल में असम के दिमा हसाओ की घटना, जिसमें पिछले महीने पुलिस फायरिंग में दो प्रदर्शनकारियों की मौत हो गयी थी, पर एक गीत भी लिखा है. सैकिया ने बताया, “हमें ऐसे अन्यायों के खिलाफ आवाज़ उठाने की जरुरत है. जब हमलोगों ने यह रैली निकाली तो ढेर सारे लोग इसमें शामिल हुए और हमारे इस प्रयास की सराहना की. इसका मतलब यह है कि हम संदेश देने में सफल रहे. जल्दी ही मैं इस गीत को भी पूरा करूंगा.”
पेशे से वकील और अक्सोम छात्रो युवा संमिलन नाम के छात्र संगठन के महासचिव मधुरज्य बरुआ ने वर्तमान हालात पर छात्रों के इस “मुखर विरोध” की प्रशंसा की.
जनवरी के अंतिम सप्ताह में मैबांग में दो युवक पुलिस फायरिंग में उस वक़्त मारे गये थे जब वे दिमा हसाओ जिले को एक समझौते के तहत नगालिम में शामिल किये जाने के अंदेशे के खिलाफ प्रदर्शन कर थे. यह प्रदर्शन आरएसएस के एक स्थानीय नेता के उस बयान के जवाब में था जिसमें उन्होंने नगा समझौता, जिसके बारे में अभी तक देश को कोई जानकारी नहीं दी गयी है, को लागू करने के क्रम में दिमा हसाओ जिले को नगालिम में शामिल किये जाने की बात कही थी.
छात्रों का मानना है कि असम में सर्वानन्द सोनोवाल के नेतृत्व वाली सरकार के आने के बाद पुलिसिया “अत्याचार” में बढ़ोतरी हुई है.
स्वतंत्र शोधकर्ता और सामाजिक कार्यकर्ता बोनोजित हुसैन कहते हैं, “ भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान ब्रिटिश हुकूमत के तहत 9 अगस्त 1942 से लेकर 31दिसम्बर 1943 के बीच प्रदर्शनकारियों पर पुलिस फायरिंग की चार घटनाएं हुई थीं. लेकिन 24 मई 2016 को सर्वानन्द सोनोवाल सरकार के सत्ता में आने के बाद निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर पुलिस फायरिंग की पांच घटनाएं हो चुकी हैं.”
मैबांग से पहले राहा, काजीरंगा, गोलपारा और धुला में पुलिस फायरिंग की घटना हुई थी. इसमें सात लोगों की मौत हुई थी. इन घटनाओं की जांच की घोषणा के बाद अबतक एक भी रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गयी है.