नागरिकता विधेयक के खिलाफ आसू को मिला नीतीश कुमार का समर्थन
मुखर हो रहा है नागरिकता विधेयक के खिलाफ विरोध
नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2016 के खिलाफ अब विरोध मुखर होता जा रहा है. आल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू), जोकि असम का एक प्रभावशाली छात्र संगठन है, ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समेत राष्ट्रीय स्तर के अन्य दलों एवं नेताओं से संपर्क साधा है.
वर्ष 2016 में संसद में पेश किये जाने के बाद से इस विधेयक के खिलाफ असम में व्यापक जनाक्रोश उभरा है. इस विधेयक में 31 दिसम्बर 2014 तक पड़ोसी देशों से आये सभी गैर – मुसलमानों को नागरिकता प्रदान किये जाने का प्रावधान है.
हाल में पटना में बिहार के मुख्यमंत्री से मुलाकात के बाद आसू के नेताओं ने बताया कि श्री कुमार ने उन्हें भरोसा दिलाया है कि वे इस विधेयक के विरोध में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चिट्ठी लिखेंगे.
मीडिया से बात करते हुए आसू के सलाहकार समुज्जल कुमार भट्टाचार्य ने बताया, “हमारे मकसद के लिए नीतीश कुमार का समर्थन एक अहम उपलब्धि है. हमारे लिए यह जरुरी है कि राष्ट्रीय स्तर के नेता इस मुद्दे को उठायें और हमारे नजरिये का समर्थन करें. श्री कुमार असम में छात्र आंदोलनों के इतिहास और सीमा – पार से घुसपैठ की समस्या से अच्छी तरह अवगत हैं. उन्होंने हमें आश्वस्त किया है कि वे इस बारे में प्रधानमंत्री को लिखेंगे.”
आसू, जिसके अध्यक्ष दीपंका कुमार नाथ और महासचिव लूरिन ज्योति गोगोई हैं, ने इस विधेयक के खिलाफ एक सर्वसम्मति बनाने के लिए राष्ट्रीय स्तर के अन्य नेताओं से मिलने की योजना बनायीं है.
नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2016 को संसद में अगस्त, 2016 में पेश किया गया था. इस विधेयक में बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफ़गानिस्तान के धार्मिक अल्पसंख्यकों को भारत में नागरिकता देने का प्रावधान है. हालांकि, विपक्ष द्वारा विरोध जताये जाने पर इस विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति के पास विचार के लिए भेज दिया गया.
श्री भट्टाचार्य ने आगे जोड़ा, “श्री नीतीश कुमार ने हमें यह भी बताया कि भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में धर्म के आधार पर नागरिकता नहीं प्रदान की जा सकती.”
नीतीश कुमार के साथ मुलाकात के दौरान बिहार से सांसद एवं संयुक्त संसदीय समिति के सदस्य हरिवंश नारायण सिंह भी मौजूद थे.
असम समझौते के तहत आसू समेत अधिकांश संगठनों ने अवैध नागरिकों की पहचान के लिए 25 मार्च 1971 को अंतिम तारीख या कट ऑफ़ डेट के तौर पर स्वीकार किया है. छह साल के लंबे आंदोलन के बाद 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के काल में असम समझौता संपन्न हुआ. इस समझौते में जाति और पंथ के आधार पर भेदभाव नहीं बरता गया है.
इस विधेयक का पुरजोर विरोध करने के लिए आल असम स्टूडेंट्स यूनियन ने पूर्वोत्तर क्षेत्र के सात राज्यों के छात्र संगठनों के साथ हाथ मिला लिया है. छात्र संगठनों के एक समूह, नार्थ ईस्ट स्टूडेंट्स एसोसिएशन (एनईएसओ), ने क्षेत्र में प्रदर्शनों का सिलसिला शुरू भी कर दिया है.
एनईएसओ में खासी स्टूडेंट यूनियन (केएसयू), नगा स्टूडेंट्स फेडरेशन (एनएसएफ), गारो स्टूडेंट्स यूनियन (जीएसओ), आल मणिपुर स्टूडेंट्स यूनियन (एएमएसयू), त्रिपुरा स्टूडेंट फेडरेशन (टीएसएफ), आल अरुणाचल प्रदेश स्टूडेंट्स यूनियन (आपसू), मिज़ो स्टूडेंट्स एसोसिएशन (एमएसए) और आल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) शामिल हैं.
अवैध निवासियों को अलग करने के लिए एनईएसओ भी पूर्वोत्तर क्षेत्र के सभी सात राज्यों में राष्ट्रीय नागरिक पंजी (नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीज़न) की मांग कर रहा है. छात्रों के इस संगठन ने इन सभी राज्यों में इनर लाइन परमिट (आईपीएल) की अपनी मांग को भी दोहराया है.
आईपीएल एक ऐसा दस्तावेज है जिसे सरकार द्वारा भारतीय नागरिकों एवं विदेशी लोगों को अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम और नागालैंड में यात्रा करने के लिए जारी किया जाता है.
हाल में गुवाहाटी में एक धरना के दौरान एनईएसओ के चेयरमैन समुएल बी ज्यरवा ने कहा, “अब बहुत हो चुका. हम, पूर्वोत्तर क्षेत्र के लोगों, ने केंद्र सरकार के हाथो काफी कुछ भुगता है. हम यहां शांत नहीं बैठने वाले. हमें विशेष संवैधानिक सुरक्षा चाहिए और हम पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीज़न को लागू करने की मांग करते हैं. हम अवैध नागरिकों का बोझ पहले से ही ढो रहे हैं और अब ऐसा नहीं चाहते. अब हम किसी भी कीमत पर किसी भी अवैध नागरिक को स्वीकार नहीं कर सकते. हम सरकार से सभी पूर्वोत्तर राज्यों में इनर लाइन परमिट (आईपीएल) लागू करने की मांग करते हैं ताकि यहां के मूल निवासियों के हितों की सुरक्षा हो सके.”
छात्र संगठन इस विधेयक के खिलाफ प्रदर्शन करने के लिए नई दिल्ली भी जायेंगे.