हुर्रियत ने जतायी कश्मीर वार्ता में शामिल होने की इच्छा
नई दिल्ली से “अस्पष्टता” दूर करने को कहा हुर्रियत ने
केंद्र द्वारा वार्ता की पेशकश पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए हुर्रियत कांफ्रेंस ने आज कहा कि वो “उद्देश्यपूर्ण” बातचीत में हिस्सा लेने को इच्छुक है बशर्ते नई दिल्ली “अस्पष्टता” को ख़त्म करे और बातचीत की प्रक्रिया में इस्लामाबाद को भी शामिल करे.
एक संयुक्त वक्तव्य में हुर्रियत कांफ्रेंस ने कहा, “भारत सरकार के (कश्मीर वार्ता के लिए) किसी भी प्रयास को कश्मीर और पाकिस्तान में तवज्जो मिलेगा. भारत सरकार को एक भाषा में बात करने दीजिए और यह स्पष्ट करने दीजिए कि वो किन मसलों पर बात करना चाहती है. हम इस प्रक्रिया में शामिल होने के लिए तैयार हैं.”
हुर्रियत के सैयद अली गिलानी, यासीन मालिक और मीरवाईज़ उमर फारूक की शक्तिशाली तिकड़ी ने श्रीनगर में एक लंबी बैठक कर “सत्ता – शीर्ष पर बैठे अलग – अलग लोगों द्वारा पिछले कुछ दिनों के दौरान वार्ता” के बारे में दिये गये “अस्पष्ट” वक्तव्यों पर विचार – विमर्श किया.
राष्ट्रीय राजधानी में एक टीवी कार्यक्रम में केन्द्रीय गृहमंत्री ने कहा था कि कश्मीर में उथल – पुथल को समाप्त करने के लिए नई दिल्ली पाकिस्तान और हुर्रियत समेत सभी पक्षों से बातचीत करने को इच्छुक है.
इसके बाद विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का एक बयान आया जिसमें उन्होंने कहा कि नई दिल्ली पाकिस्तान से वार्ता करेगा, लेकिन उसे पहले अपनी जमीन से निकलने वाले “आतंकवाद” को बंद करना होगा.
अपनी प्रतिक्रिया में हुर्रियत ने कहा, “एक तरफ श्री राजनाथ सिंह कहते हैं कि कश्मीर और पाकिस्तान, दोनों, के साथ वार्ता होनी चाहिए, लेकिन कश्मीर और कश्मीरी, दोनों, हमारे हैं. श्रीमती स्वराज एक शर्त जोड़ती हैं कि जबतक ‘आतंक को रोका नहीं जाता’ पाकिस्तान से कोई वार्ता नहीं होगी. दूसरी तरफ, श्री अमित शाह युद्धविराम के बारे में एक मोड़ देते हुए कहते हैं कि यह आतंकवादियों के लिए नहीं बल्कि आम जनता के लिए है. जबकि राज्य के पुलिस महानिदेशक एक बयान में कहते हैं कि यह उग्रवादियों के घर वापस लौटने के लिए है.”
उसने आगे जोड़ा, “ इन तमाम अस्पष्टताओं की वजह से वार्ता की पेशकश पर गंभीरता से सोचने की कोई गुंजाइश नहीं बचती...अब सवाल यह है कि इन ‘वार्ताओं’ का मतलब क्या है जिसकी तरफ श्री सिंह इशारा कर रहे हैं? इन वार्ताओं का एजेंडा क्या है? क्या इसका श्री मोदी के विकास के नारे से कोई ताल्लुक है?”
हुर्रियत ने कहा कि नई दिल्ली को “कश्मीर समस्या की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, इसके अंदरूनी एवं बाहरी आयामों, घाटी में लाखों की संख्या में फ़ौज की मौजूदगी, रोजाना के टकरावों और जमीन एवं नियंत्रण –रेखा के निकट की अस्थिर स्थिति” को स्वीकार करना चाहिए.
हुर्रियत ने कहा, “एक राजनीतिक और मानवीय मुद्दा होने के नाते हमने हमेशा इसका समाधान उसी तरीके से किया जाने पर जोर दिया है, न कि सैन्य तरीके से, जैसाकि भारत सरकार इन दिनों कर रही है. और इस संघर्ष के राजनीतिक समाधान के लिए सभी पक्षों के साथ वार्ता ही सबसे बेहतर तरीका और विकल्प है.”
हुर्रियत के नेताओं ने कहा कि “जम्मू – कश्मीर एक विभाजित क्षेत्र है और इसका आधा हिस्सा पाकिस्तान में है. इस विवाद के तीन पक्ष हैं – भारत, पाकिस्तान और इस क्षेत्र की जनता. स्पष्ट एजेंडे के साथ पूरी प्रतिबद्धता से तीन पक्षों के बीच वार्ता ही इस समस्या के स्थायी और शांतिपूर्ण समाधान का एकमात्र रास्ता है. बातचीत की प्रक्रिया में तीनों पक्षों में से किसी एक की अनुपस्थिति से समाधान निकलना मुश्किल होगा.”