कश्मीर में फारूक अब्दुल्ला के खिलाफ नारेबाजी
हजरतबल मस्जिद में ईद की नमाज के दौरान हुई घटना
हतप्रभ कर देने वाली एक घटना में, ऐतिहासिक हजरतबल मस्जिद में ईद – उल – अजहा की नमाज़ अदा करने गये नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ. फारूक अब्दुल्ला के खिलाफ नारेबाजी की गयी.
घटना से जुड़े एक वीडियो में पहली पंक्ति में प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठे डॉ. फारूक जाहिर तौर पर परेशान और आज़ादी - समर्थक नारों के शोरगुल के बीच वीडियो बनाने वाले व्यक्ति को भगाते नजर आ रहे हैं. इससे पहले, डॉ. अब्दुल्ला के कुछ हट्ठे – कट्ठे सुरक्षाकर्मी उन्हें अपने घेरे में लेते नजर आते हैं. वीडियो एकाएक समाप्त होता है.
इस घटना के एक अन्य वीडियो में पिछली पंक्ति में बैठा नमाजियों का एक समूह उठकर आज़ादी – समर्थक नारे लगानेवालों के साथ शामिल होता दिखाई देता है. पृष्ठभूमि में अल – कायदा के घटक अंसार - घजवत – उल – हिन्द के प्रमुख ज़ाकिर मूसा के समर्थन में नारे भी सुनाई देते हैं.
एक स्थानीय समाचार पोर्टल ने बताया कि मस्जिद समिति के हस्तक्षेप के बाद डॉ. अब्दुल्ला को ईद की नमाज अदा करने की इजाज़त मिली थी, “लेकिन वे खुतबा (उपदेश), इस्लामिक ग्रंथों के हिसाब से इबादत को पूरा करने के लिए अनिवार्य माना जाने वाली एक रीति, तक नहीं रुके.”
उस ख़बर के मुताबिक, “ज्योंहि नमाज ख़त्म हुआ, डॉ. अब्दुल्ला जाने के लिए उठ खड़े हुए. कुछ प्रदर्शनकारी अपने जूते हाथों में लेकर ‘शर्म करो, शर्म करो’ के नारे लगाने लगे.”
एक अन्य ख़बर में बताया गया, “इससे पहले कि हजरतबल मस्जिद में नमाज की अगुवाई करने वाले इमाम ईद का उपदेश शुरू करते, आज़ादी – समर्थक और दहशतगर्द – समर्थक नारों के बीच डॉ. अब्दुल्ला के साथ धक्कामुक्की की गयी.”
घाटी में मुख्यधारा की राजनीति का एक केंद्र और नेशनल कांफ्रेंस का गढ़ माने जाने वाले हजरतबल मस्जिद में डॉ. अब्दुल्ला के खिलाफ नाराजगी का इजहार उस वीडियो की पृष्ठभूमि में हुआ जिसमें जम्मू – कश्मीर के भूतपूर्व मुख्यमंत्री को “भारतमाता की जय” का नारा लगाते हुए सुना गया.
सोशल मीडिया पर मौजूद घाटी के लोगों को यह वीडियो, जिसे जाहिर तौर पर नई दिल्ली में भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की एक श्रद्धांजलि सभा के दौरान बनाया गया था, नागवार गुजरा.
श्रीनगर के पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक गौहर गिलानी ने इस पर टिप्पणी करते हुए फेसबुक पर लिखा, “धोखाधड़ी की राजनीति और राजनीतिक दोमुहांपन उनकी पहचान रही है. मरहूम मुफ्ती अपने दृढ़ विश्वास की वजह से भारतीय थे. लेकिन डॉ फारुक समय देखकर भारतीय बनते हैं. जो लोग रॉबर्ट डी नीरो को एक अच्छा अभिनेता मानते हैं, वे शायद फारूक से मिले नहीं हैं.”