आख़िरकार नागालैंड सरकार का महिला आरक्षण पर विचार करने का निर्णय
राज्य के पुरुष वर्चस्व वाले मंत्रीमंडल का फैसला
शहरी स्थानीय निकायों में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण दिये जाने के मुद्दे पर कथित रूप से नागालैंड के विभिन्न हिस्सों में भड़की हिंसा के डेढ़ साल बाद राज्य के पुरुष वर्चस्व वाले मंत्रीमंडल ने इस प्रस्ताव की व्यावहारिकता का पता लगाने के लिए एक उप – समिति गठित करने का फैसला किया है.
कृषि मंत्री जी. कैटो अये के नेतृत्व वाली यह उप – समिति दो महीने में अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपेगी.
पिछले साल फरवरी में, शहरी स्थानीय निकायों में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण दिये जाने के ऐलान के बाद कथित रूप से राज्य के विभिन्न हिस्सों में भड़की हिंसा की पृष्ठभूमि में तत्कालीन मुख्यमंत्री टी.आर. जेलिंग को इस्तीफा देना पड़ा था. इस ऐलान के बाद मची राजनीतिक उथल – पुथल में दो लोगों की जानें गयीं थीं और बड़े पैमाने पर तोड़फोड़ हुई थी. यहीं नहीं, लोकसभा के पूर्व सदस्य एन. रियो द्वारा इस साल के शुरू में हुए विधानसभा चुनावों के बाद मुख्यमंत्री पद संभालने के पहले राज्य को नेतृत्व परिवर्तन से भी रूबरू होना पड़ा था.
हालिया विधानसभा चुनावों में केवल 5 महिला उम्मीदवारों, जोकि कुल 195 उम्मीदवारों का मात्र दो फीसदी थीं, ने 60 - सीटों वाली विधानसभा की सदस्यता के लिए अपनी किस्मत आजमायी थी. हालांकि, इनमें से किसी को भी जीत हासिल नहीं हुई.
नागालैंड में पहली विधानसभा का गठन फरवरी, 1964 में हुआ था. तब से लेकार आजतक कोई भी महिला विधानसभा में नहीं पहुंच सकी है. एकमात्र बार, 1977 में, रानो एम. शैज़ा के रूप में एक महिला लोकसभा में पहुंची थी. वर्ष 1963 में राज्य के गठन के बाद से अबतक महज 30 महिलाओं ने ही विधानसभा चुनावों में जोर आजमाइश की है, लेकिन किसी को भी सफलता हाथ नहीं लगी.
इस साल चुनाव - मैदान में असफल रहने वाली पांच महिलाओं में से एक, अवान कोन्याक, को नागालैंड के परंपरागत कानूनों का उल्लंघन किये बगैर सकारात्मक बदलाव की उम्मीद है.
पिछले साल महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण दिये जाने के प्रस्ताव के विरोध का बुनियाद कारण यह था कि इस किस्म से किसी भी कदम से नागालैंड के जनजातियों के परंपरागत कानूनों में दखल पड़ने का खतरा था.
अवान कोन्याक का कहना है, “हमारी परंपरागत संरचनाएं और मूल्य बेहद मजबूत हैं. यह कहना कठिन होगा कि इतने कम समय में शत – प्रतिशत बदलाव होगा या नहीं. लेकिन मुझे आशा है कि जिस महत्वपूर्ण बदलाव से हम अभी गुजर कर रहे हैं, उसमें से बीच का रास्ता जरुर निकलेगा.”
महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित करने का सबसे मुखर विरोध नगा जनजातियों के परिषद, जिसे नगा होहो के नाम से जाना जाता है, की ओर से इस आधार पर किया जा रहा है कि इससे संविधान के अनुच्छेद 371 A के तहत संरक्षित नगा रीति – रिवाजों का उल्लंघन होगा.
नगा होहो के अध्यक्ष पी. चुबा ओज़ुकूम का कहना है कि उप – समिति का गठन तो “ठीक” है, लेकिन सारा कुछ “इस समिति के कौशल पर निर्भर है कि वह इस उलझन को कैसे सुलझाती है”. उन्होंने यह भी कहा कि होहो की ओर से आरक्षण का समर्थन करने का आश्वासन अभी नहीं दिया जा सकता.
हालांकि, अवान कोन्याक नाउम्मीद नहीं हैं.
उन्होंने कहा, “समाज में अपने वाजिब स्थान को लेकर महिलाएं पहले के मुकाबले काफी जागरूक और मुखर हैं. समाज में स्थिति और पिता की संपत्ति में हिस्से के मसले पर हम महिलाओं का नजरिया और व्यापक हुआ है.”
उन्होंने यह भी कहा कि चुनावों में महिलाओं की भागीदारी ने लोगों को राज्य के नीति – निर्धारक निकायों में महिलाओं की हिस्सेदारी की संभावना तलाशने की ओर सोचने को मजबूर किया है.