नागरिकता विधेयक के खिलाफ पूर्वोत्तर में पूर्ण बंद
एजीपी ने गठबंधन से नाता तोड़ा, मत्रियों का इस्तीफा जल्द
पूर्वोत्तर भारत 8 जनवरी को पूरी तरह से बंद रहा. क्षेत्र के सभी बड़े छात्र संगठनों के परिसंघ, नार्थ ईस्ट स्टूडेंट्स आर्गेनाईजेशन (एनईएसओ) ने विविदास्पद नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2016 का विरोध करने के लिए 11 घंटे के हड़ताल का आह्वान किया था.
प्रस्तावित विधेयक बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान जैसे पड़ोसी देशों के यहां आये हुए धार्मिक अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का प्रावधान करता है. दिल्ली में, तृणमूल कांग्रेस के सांसदों ने नागरिकता विधेयक के खिलाफ संसद में विरोध प्रदर्शन किया.
भाजपा द्वारा इस विधेयक को संसद में लाने की पुष्टि के बाद असम में उसकी एक अहम सहयोगी, असम गण परिषद (एजीपी), ने उससे नाता तोड़ लिया. दो साल के अस्थिर रिश्ते के बाद एनडीए से बाहर आये एजीपी ने भाजपा के अन्य सहयोगियों से भी ऐसा ही कदम उठाने की अपील की.
एजीपी के महासचिव रमेन्द्र नारायण कलिता ने कहा, “अब हम इस विधेयक का और ज्यादा जोरदार तरीके से विरोध करेंगे. हम सरकार के साथ रहते हुए ऐसा कर रहे थे. हमने बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट से भी राज्य के एक बड़े हित के लिए गठबंधन से बाहर आने की अपील की है.”
एजीपी के अध्यक्ष अतुल बोरा ने कहा कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि केंद्र और भाजपा, दोनों, असम के लोगों की आवाज़ को नहीं सुन रहे हैं.
श्री बोरा ने कहा, “हमने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की, लेकिन कुछ नहीं कर सके. हमने राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री तक हर किसी से मुलाकात की. यहां तक कि हम संयुक्त संसदीय समिति से भी मिले, लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ. हम 7 जनवरी को गृहमंत्री राजनाथ सिंह से भी मिले. वे इस विधेयक को पारित कराने के लिए कटिबद्ध थे. लिहाज़ा, हमने गठबंधन तोड़ने का निर्णय लिया.”
श्री बोरा एवं एजीपी ने यह वादा किया था कि अगर भाजपा विधेयक को आगे बढ़ायेगी, तो वे गठबंधन से बाहर आ जायेंगे. श्री बोरा ने कहा, “हम जनता के साथ दगा नहीं कर सकते. इसलिए, हम अपने वादे पर कायम रहे. असम समझौता ही हमारा बाइबिल, गीता और कुरान है. हम ऐसा कुछ भी नहीं कर सकते, जो समझौते के खिलाफ हो.”
राज्य से अवैध विदेशी नागरिकों को निकाल बाहर करने के लिए छह साल के लंबे एक संघर्ष के बाद 1985 में असम समझौता किया गया था. इस समझौते में जाति, धर्म अथवा संप्रदाय से परे हटकर विदेशी नागरिकों की पहचान करने एवं उन्हें वापस भेजने के लिए 25 मार्च 1971 को अंतिम तारीख के तौर पर नियत किया गया था.
असम की वर्तमान राज्य सरकार में एजीपी के तीन मंत्री हैं. जल्दी ही ये सभी मंत्री अपने पदों से इस्तीफा दे देंगे.
यो तो एजीपी नेतृत्व अपने अगले कदम को लेकर मौन है, लेकिन उनका कहना है कि फ़िलहाल इस विधेयक का विरोध और इसे कानून बनने से रोकना उनका लक्ष्य है.
इस बीच, प्रदर्शनकारियों ने असम के गोलाघाट में भाजपा के कार्यालय में तोड़फोड़ मचाई और पूरे राज्य में टायरों में आग लगाकर सडकों पर फेंका. सडकों पर वाहन नहीं चले और व्यावसायिक प्रतिष्ठान बंद रहे.
एनईएसओ के सलाहकार समुज्जल कुमार भट्टाचार्य ने कहा कि केंद्र और भाजपा ने उन्हें बंद बुलाने पर मजबूर किया.
श्री भट्टाचार्य ने कहा, “हम बंद का समर्थन नहीं करते. इसलिए हमने पिछले 10 सालों में इस किस्म के बंद का आह्वान नहीं किया. लेकिन अब परिस्थितियां विकट हो गयीं है. लिहाज़ा, हमें मजबूरन बंद का आहवान करना पड़ा. यह असम एवं क्षेत्र के स्थानीय लोगों के खिलाफ भाजपा की साजिश है.”
उन्होंने आगे जोड़ा कि वे अपना संघर्ष जारी रखेंगे. इससे पहले 7 जनवरी को विधेयक को संसद के पटल पर रखे जाते समय किसानों के एक प्रभावी संगठन कृषक मुक्ति संग्राम समिति एवं अन्य संगठनों ने दिल्ली में इसके खिलाफ नग्न प्रदर्शन किया.
हाल में, असम के सिलचर में एक चुनावी सभा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा इस विधेयक को पारित कराने का एलान किये जाने के बाद से इसके खिलाफ आंदोलन ने जोर पकड़ा.