मणिपुर : देशद्रोह के आरोप में बंद पत्रकार कोर्ट से रिहा
चार महीने से जेल में थे किशोरचंद्र वांगखेम
देशद्रोह के आरोप में चार महीने से भी अधिक समय तक इंफाल के एक जेल में बंद मणिपुर के पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेम को कोर्ट ने रिहा कर दिया.
श्री वांगखेम को पिछले साल छह महीने की अवधि में तीन बार गिरफ्तार किया गया. तीसरी बार उन्हें नवम्बर महीने में अपने फेसबुक अकाउंट में वीडियो पोस्ट करने पर गिरफ्तार किया गया था. उक्त वीडियो में उन्होंने एक समारोह के दौरान झांसी की रानी की प्रशंसा करने और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भूमिका को महत्वपूर्ण बताने के लिए राज्य के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह की आलोचना की थी.
उस वीडियो में श्री वांगखेम ने कड़ी भाषा का उपयोग करते हुए कहा था कि मुख्यमंत्री श्री सिंह ने “मणिपुर के स्वतंत्रता सेनानियों के साथ दगाबाजी की और उनका अपमान किया”. उन्होंने मुख्यमंत्री को “हिंदुत्व की एक ऐसी कठपुतली करार दिया, जिसका नियंत्रण केंद्र से रिमोट के जरिए एक चाय वाले द्वारा किया जाता है”. उन्होंने श्री सिंह को उन्हें गिरफ्तार करने की चुनौती दी थी. उसके बाद इस पत्रकार को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था. लेकिन उन्हें जल्द ही रिहा कर दिया गया जब इंफाल पश्चिम जिला के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने कहा कि “आरोपी द्वारा इस्तेमाल किये गये शब्द, शब्दावली और इशारे और जिस संदर्भ में उनका उपयोग किया गया और अभियुक्त द्वारा की गई टिप्पणी को भारतीय दंड संहिता की धारा 124 - A के तहत देशद्रोह का अपराध नहीं कहा जा सकता है”.
हालांकि, जमानत पर बाहर आये वांगखेम को 27 नवम्बर को एक बार फिर पुलिस हिरासत में ले लिया गया और निरोध का आदेश उसी अदालत द्वारा पारित किया गया. उन्हें तब से सजीवा स्थित मणिपुर सेंट्रल जेल में रखा गया.
रिहाई की उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए मणिपुर उच्च न्यायालय ने कहा कि राज्य के अटॉर्नी जनरल द्वारा प्रस्तुत रिकॉर्ड "यह नहीं दर्शाता है कि याचिकाकर्ता को चार वीडियो क्लिप वाले कॉम्पैक्ट डिस्क की आपूर्ति की गई थी".
मणिपुर सरकार के अटॉर्नी जनरल ने न्यायालय को बताया था कि “सलाहकार (एडवाइजरी) बोर्ड द्वारा कॉम्पैक्ट डिस्क को याचिकाकर्ता के सामने चलाया गया था". लेकिन अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता को हिरासत में रखने के आधार के तौर पर पेश यह तर्क "किसी भी तरह से" यह संकेत देने में प्रतिवादियों की मदद नहीं करता कि याचिकाकर्ता को कॉम्पैक्ट डिस्क की आपूर्ति की गई थी ”.
अदालत ने कहा, “दिनांक 1 दिसम्बर 2018 को हिरासत में रखने का आधार पेश करते समय हमारे समक्ष यह संकेत करने वाला ऐसा कोई अकाट्य तथ्य नहीं लाया गया कि याचिकाकर्ता को चार वीडियो क्लिप वाले कॉम्पैक्ट डिस्क की आपूर्ति की गयी थी.”
अदालत ने कहा कि उसके पास “यह मानने के सिवाय और कोई विकल्प नहीं है कि याचिकाकर्ता को चार वीडियो क्लिप वाले कॉम्पैक्ट डिस्क की आपूर्ति नहीं की गयी थी” और “इसलिए इस निष्कर्ष पर पहुंचने में कोई संकोच नहीं है कि उन तस्वीरों और उनकी प्रतियों, जिन्हें याचिकाकर्ता द्वारा अपने फेसबुक वाल पर दिनांक 7 अगस्त 2018 को लगाये जाने का आरोप है, तथा चार वीडियो क्लिप वाले कॉम्पैक्ट डिस्क को याचिकाकर्ता को प्रस्तुत न करना ही दिनांक 27 नवंबर 2018 के निरोध आदेश को रद्द कर देता है.”
उच्च न्यायालय ने 27 नवंबर के आदेश को अमान्य करते हुए उसे रद्द कर दिया.
इंफाल से द सिटिज़न से बात करते हुए वांगखेम की पत्नी एलान्गबम रंजीता ने कहा कि भले ही न्याय मिलने में देरी हुई और उनके परिवार को काफी कुछ झेलना पड़ा, पर वो बेहद खुश हैं. उन्होंने भारतीय लोकतंत्र का शुक्रिया अदा किया.
उन्होंने बताया कि वो अपने पति से आखिरी बार 26 मार्च को मिली थीं और उनके स्वास्थ्य में सुधार था.
इस साल मार्च में वांगखेम बीमार हो गये थे और उन्हें एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था.
उन्होंने बताया, “उनका ब्लड शुगर लेवल अब बेहतर है.”
अपने पति की रिहाई से रंजीता राहत जरुर महसूस कर रहीं हैं, लेकिन वो पूरी तरह संतुष्ट नहीं हैं.
उन्होंने कहा, “हमारे कई दिन बर्बाद हुए. मैं इसका मुआवजा चाहती हूं. हमारे तीन – चार महीने कौन लौटायेगा.”
उन्होंने आगे कहा, “हमें हमारा खोया हुआ सम्मान वापस चाहिए.”
उन्होंने माना कि उनके पति की भाषा कठोर थी, लेकिन उनपर रासुका लगाना “ज्यादती” थी. वो नहीं चाहती कि ऐसी घटना किसी और के साथ दोहरायी जाये.
रंजीता ने कहा, “मैं इसके लिए आवाज़ उठाना चाहती हूं. मैं नहीं चाहती कि किसी और को ये सब झेलना पड़े.”