पीएनबी महाघोटाला सरकार और बड़ी पूंजी की सांठगांठ का सबूत
अरविन्द सेन
करीब बीस दिन पहले का समाचार है। उत्तरप्रदेश के सीतापुर जिले में ज्ञानचंद नाम के किसान को बैंक के कर्ज उगाही एजेंटों ने उसी के खेत में ट्रैक्टर से कुचल कर मार डाला। इस किसान पर 90,000 रूपए का कर्ज बकाया था। इसे पृष्ठभूमि में रखते हुए दूसरे समाचार पर निगाह डालिए। पंजाब नेशनल बैंक ने शेयर बाजार को दिए गए नियामकीय दाखिले में स्वीकारा है कि दक्षिण मुंबई स्थित उसकी एक शाखा में 11,500 करोड़ रूपए का फर्जीवाड़ा हुआ है। आग में सबकुछ स्वाहा होने के बाद पानी की बौछारे डालने की तर्ज पर सरकार ने मामले की जांच प्रवर्तन निदेशालय, केंद्रीय जांच ब्यूरो और केंद्रीय सतर्कता आयोग को सौंप दी है। बलि के बकरे के रूप में एक जूनियर क्लर्क और रिटायर्ड उप-शाखा प्रबंधक को हलाल किया गया है। घोटाले को अंजाम देने वाले नीरव मोदी सपरिवार विदेश प्रस्थान कर चुके हैं।
कैसे हुए यह घोटाला
सबसे पहले यह जानते हैं कि इस घोटाले को किस तरह से अंजाम दिया गया। आयात-निर्यात के कारोबार में लगे लोगों कई देशों की अलग-अलग मुद्राओं (करंसी) में लेनदेन करना होता है। एक कारोबारी के लिए सभी मुद्राओं में नकदी रख पाना संभव नहीं है। इस दिक्कत का समाधान वचन-पत्र (लैटर ऑफ अंडरटैकिंग) से किया जाता है। यह एक तरह की गारंटी है जो जारी करने वाला बैंक देता है और इसे विदेश में किसी तयशुदा बैंक की शाखा में जमा करवाकर उसी देश की मुद्रा में ऋण प्राप्त किया जा सकता है। मसलन नीरव मोदी का उदाहरण लीजिए। पंजाब नेशनल बैंक की मुंबई स्थित एक शाखा नीरव मोदी के नाम वचन-पत्र जारी करती थी। नीरव मोदी इन वचन-पत्रों को हांगकांग स्थित एक्सिस बैंक और इलाहाबाद बैंक की शाखाओं में जमा करवाकर विदेशी मुद्रा में रकम ले लेता था।
कायदे से यह लेनदेन पीएनबी के नोस्ट्रो अकाउंट में झलकना चाहिए था। किसी घरेलू बैंक का विदेशी में उसी देश की मुद्रा में रखा जाने वाला बैंक खाता नोस्ट्रो अकाउंट कहलाता है। अचरज की बात यह है कि यह सब लेनदेन पीएनबी के नोस्ट्रो अकाउंट में दर्ज नहीं था और न ही कथित कोर बैंकिंग सोल्यूशन प्रणाली (भारतीय बैंकों के लेनदेन का डिजीटल रूप में हिसाब रखने वाला सोफ्टवेयर) में इसका विवरण दर्ज था। बड़े वित्तीय लेनदेन का उसी समय साथ-साथ ऑडिट करने का अनिवार्य नियम है लेकिन आंतरिक और बाहरी, किसी भी ऑडिटर ने 2011 से चले आ रहे इस खेल में एक भी बार अनियमितता को नहीं पकड़ा। नीरव मोदी का नाम फोर्ब्स की अमीर भारतीयों की सूची में भी नाम था। बैंकिंग विनियामक भारतीय रिजर्व बैंक बड़े कोरपोरेट के खातों का समय-समय पर नियामकीय परीक्षण के लिए चुनाव करता है। नीरव मोदी का बैंक खाता इस पैमाने पर कभी नहीं परखा गया।
शाखा प्रबंधक सात सालों तक जमा रहा
अचंभा हुआ। और सुनिए। वित्तीय विनियमों के मुताबिक विदेशी लेनदेन करने वाली बैंक शाखाओं में किसी कर्मचारी को अधिकतम दो साल तक ही रखा जा सकता है। लेकिन पीएनबी की इस शाखा में नीरव मोदी का खाते संभालने वाला शाखा प्रबंधक सात साल से एक ही जगह पर था। सीबीआई को जिस जूनियर क्लर्क का नाम सौंपा गया है, नियमों के अनुसार वह केवल 25,000 रूपये तक के लेनदेन के लिए अधिकृत है। अब आपके मन में स्वाभाविक सवाल उठेगा कि वह फिर कैसे 11,500 करोड़ रूपए के घोटाले को अंजाम दे सकता है। बैंकों में बड़े कर्ज के फैसले मंडल स्तर से ऊपर के प्रबंधन स्तर पर लिये जाते हैं। किसी बैंक के जारी किये गये वचन-पत्रों को दूसरे बैंक अधिकतम 90 दिनों में ही स्वीकार करके ग्राहक को नकदी दे सकते हैं। मगर नीरव मोदी के मामले में एक्सिस बैंक और इलाहाबाद बैंक की विदेश स्थित भारतीय शाखाओं ने 90 दिनों की अवधि पार होने के बाद भी उसके वचन-पत्रों को स्वीकार किया। पूरे महाघोटाले की जानकारी शेयर बाजार नियमकों को देने की टाइमिंग देखिए। जब पीएनबी केवल नीरव मोदी के सपरिवार विदेश जाने और संबंधित शाखा प्रबंधक के रिटायर होने का ही इंतजार कर रहा था।
घोटाला योजनाबद्ध है
यही वो सब सवाल हैं जो इस निष्कर्ष की पुष्टि करते हैं यह कोई अनायास हुआ घोटाला नहीं है जिसमें दो जूनियर क्लर्कों ने एक अमीर ग्राहक के साथ मिलकर नियमों में मौजूद झोल का फायदा उठाया है बल्कि यह सरकार के वरदहस्त तले बैंकों के उच्च प्रबंधन से लेकर बैंकिंग क्षेत्र विनियामक आरबीआई तक के समूचे वित्तीय तंत्र की जानबूझकर व्यवस्थित तरीके से गले लगाई गई नाकामी का नतीजा है। वित्तीय लेनदेन सोफ्टवेयर कोर बैंकिंग सोल्यूशन अगर स्वत: असफल हुआ था तो यह सरकार के डिजीटल इंडिया अभियान के मुंह पर तमाचा है और अगर इसे जानबूझकर असफल किया गया तो यह मिलीभगत का सबूत भी है। और बैंकिंग तंत्र के उस सिद्धांत का क्या हुआ जिसमें बैंक ऋण देने से पहले आवेदक की वित्तीय स्थिती का आकलन करता है और अधिक जोखिम वाले विदेशी लेनदेन के मामले में अधिक सतर्कता बरतते हुए अधिक राशि की परिसंपत्ती जमानत के रूप में रखती है। अगर नीरव मोदी के मामले में फर्जी कागजों के सहारे इस धोखाधड़ी को रचा गया तो उच्च प्रबंधन, गड़बड़ी रोकने के लिए आंतरिक संसाधन (चैक एंड बैलेंसेज), आंतरिक और बाहरी ऑडिटर, वित्तीय विनियामक और केंद्रीय सरकार द्वारा हालिया गठित बैंक बोर्ड ब्यूरो जैसे सुपरवाईजरी निकाय क्या कर रहे थे।
जो लोग इस महाघोटाले का ठीकरा दो क्लर्कों के सिर पर फोड़ रहे हैं उन्हें जान लेना चाहिए आज बैंकिंग लेनदेन रियल टाइम में अपडेट होता है। अगर नीरव मोदी के मामले में ऐसा नहीं हुआ तो इसकी जांच की जानी चाहिए कि किसके इशारे पर ऐसा नहीं होने दिया गया।
पुनश्च: 2008 की आर्थिक मंदी के बाद से दुनियाभार के बैंक जोखिम को कम करने के लिए बेसल अंतर्राष्ट्रीय मानकों के हिसाब कर्ज दी गई रकम के अनुपात में अपने पास पूंजी रखते हैं। इसे पूंजी पर्याप्तता अनुपात कहा जाता है। फंसे हुए कर्जों (एनपीए) की वजह से पीएनबी का यह अनुपात बिगड़ गया था। इसका समाधान करने के लिए बहुसंख्यक शेयरधारक होने के नाते इसी साल की शुरूआत में बैंक पुनर्पूंजीकरण योजना के तहत सरकार ने पीएनबी को 5,473 करोड़ रूपए देने का ऐलान किया था। अब इस 11,500 करोड़ रूपए के महाघोटाले के बाद सरकारी पैकेज के बावजूद पीएनबी की सेहत पहले से भी खराब हालत में पहुंच गई है। क्या सीतापुर के किसान के साथ अपनाया गया तरीका नीरव मोदी के साथ भी अपनाया जाएगा?