पत्रकारों पर हमले के मामले में जागा मानवाधिकार आयोग
असम और मिज़ोरम के पुलिस महानिदेशकों को चार सप्ताह में रिपोर्ट देने का निर्देश
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने असम और मिज़ोरम के पुलिस महानिदेशकों को नोटिस जारी कर असम पुलिस द्वारा पत्रकारों पर हमला और लाठीचार्ज करने के बारे में विस्तृत रिपोर्ट देने का निर्देश दिया है. यह घटना तब हुई थी जब पिछले 10 मार्च को पत्रकारों का एक दल असम की सीमा से सटे मिज़ोरम के कोलासिब जिले के ज़ोफई बैराबी इलाके में एक प्रदर्शन को कवर करने गया था.
आयोग ने एक शिकायत पर संज्ञान लेते हुए दोनों अफसरों को रिपोर्ट पेश करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया है.
छात्रों की एक रैली को कवर करने के दौरान कम – से – कम दो पत्रकार – न्यूज़ 18 की रिपोर्टर एमी सी. लावबेयी और आल इंडिया रेडियो की संवाददाता कैथरीन सी. संगी – घायल हो गये थे.
‘मिज़ो ज़िरलाई पव्ल’ नाम के मिज़ोरम के एक छात्र संगठन एवं असम पुलिस के बीच चल रहे तनाव के बारे में एक जमीनी रिपोर्ट तैयार करने के मकसद से पत्रकारों का दल ज़ोफई गया था. असम पुलिस द्वारा पत्रकारों पर लाठीचार्ज के बाद स्थिति और तनावपूर्ण हो गयी थी. पुलिस द्वारा गोलियां भी दागी गयी थी.
शिकायत में इस बात को उठाया गया था कि पत्रकारों द्वारा अपना पहचान – पत्र दिखाये जाने के बाद भी पुलिसकर्मियों ने उन्हें नहीं बख्शा और उनकी खूब पिटाई की. कई पत्रकारों, जिनमें महिलाएं भी शामिल थी, को गंभीर चोटें आई.
आइजोल प्रेस क्लब में 12 मार्च को आम सभा की एक बैठक बुलाकर मिज़ोरम जर्नलिस्ट एसोसिएशन ने इस हमले की पुरजोर निंदा की थी. अगले दिन, 13 मार्च को एक धरने का भी आयोजन किया गया था.
नयी दिल्ली स्थित विभिन्न पत्रकार संगठनों ने भी असम के मुख्यमंत्री सर्वानन्द सोनोवाल को चिट्ठी लिखकर दोषियो के खिलाफ़ सख्त कार्रवाई की मांग की थी. लेकिन इस दिशा में कोई भी कदम नहीं उठाया गया.
प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया के गौतम लाहिड़ी, इंडियन वीमेंस प्रेस कॉर्प्स की शोभना जैन एवं फेडरेशन ऑफ़ प्रेस क्लब्स इन इंडिया के नदीम काज़मी ने एक संयुक्त बयान जारी कर असम के मुख्यमंत्री से एक समयबद्ध कार्रवाई की मांग की थी.
इस घटना में बुरी तरह घायल एमी सी. लावबेयी ने बाद में फेसबुक पर अपनी तस्वीरें जारी की थीं. उन्होंने लिखा था, “हम पत्रकार जमीनी रिपोर्टिंग के लिए आये थे. हम निहत्थे थे. हमारा एकमात्र हथियार कैमरा, कलम और नोटपैड था. फिर भी आपने हमें बुरी तरह पीटा और हम पर गोलियां दागीं. मैं आपकी नासमझी और हमारे प्रति आक्रामक व्यवहार से हतप्रभ हूं. प्रेस पर हमला करना बंद कीजिए.”
उत्तर – पूर्व के पत्रकार हमेशा निशाने पर रहे हैं. पिछले 30 सालों में असम में कुल 32 पत्रकारों की हत्या हुई है. लेकिन, एक भी हमलावर को आजतक न तो सज़ा मिली है और न ही उनपर कोई कार्रवाई हुई है.
इसके अलावा, पिछले साल त्रिपुरा में मारे गए दो पत्रकारों को आजतक न्याय नहीं मिल सका है. त्रिपुरा की नयी सरकार ने मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी है.