मतदान से पहले चुनाव प्रचार के विज्ञापनों के छापने पर रोक
मतदान से पहले चुनाव प्रचार के विज्ञापनों के छापने पर रोक
चुनाव आयोग ने यह निर्देश जारी किया है कि मतदान से अड़तालीस घंटे पहले समाचार पत्रों में राजनीतिक पार्टियों के विज्ञापन नहीं छापे जा सकते हैं। चुनाव आयोग ने तत्कालिक तौर पर यह फैसला कर्नाटक विधानसभा चुनाव के मद्देनजर किया है। लेकिन इस फैसले को भविष्य में होने वाले लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनावों पर भी लागू किया जाएगा।
चुनाव आयोग ने 4 मई 2018 को सभी राजनीतिक पार्टियों के अध्यक्षों को पत्र लिखा है कि 11 और 12मई को किसी भी समाचार पत्र में चुनाव प्रचार के इरादे से विज्ञापन जारी नहीं किए जा सकते हैं। कर्नाटक में 12 मई को मतदान होगा।
चुनाव आयोग ने राजनीतिक पार्टियों के साथ चुनाव में उम्मीदवारों और मीडिया संस्थानों को भी यह निर्देश दिया है कि मतदान के ठीक पहले जिस तरह से समाचार पत्रों में राजनीतिक पार्टियां अपना विज्ञापन देती है उसे अब नहीं दोहराया जा सकता है।
चुनाव के अड़तालीस घंटे पहले राजनीतिक पार्टियों द्वारा अपना चुनाव प्रचार बंद कर देने के सख्त नियम बने हुए हैं। लेकिन राजनीतिक पार्टियां इन अड़तालीस घंटों के दौरान मतदाताओं को प्रभावित करने की तमाम तिकड़में करती है। राजनीतिक पार्टियों का यह मानना है कि आखिरी चरण के चुनाव प्रचार का सबसे ज्यादा असर मतदाताओं पर होता है। इसी इरादे से राजनीतिक पार्टियां चुनाव आयोग के प्रावधानों को चूना लगाने की जुगत भिड़ाती रहती है। इन तरीकों में एक तरीका मतदान के दिन समाचार पत्रों के पन्नों को विज्ञापनों से भर देना है। 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने सभी प्रमुख समाचार पत्रों के लिए पहले पूरे पेज के विज्ञापन जारी किए थे। ये विज्ञापन जिस दिन के लिए जारी किए गए उस दिन 10 अप्रैल को देश के कुल 92 संसदीय क्षेत्रों में मत डाले जा रहे थे। आमतौर पर मतदाताओं को मतदान केन्द्रों पर उन विज्ञापनों को पढ़ने व निहारते हुए देखा गया था। 10 अप्रैल को जहां मतदान हो रहे थे उनमें दिल्ली के सभी सात लोकसभा क्षेत्र भी शामिल थे और उन सभी क्षेत्रों में भारतीय जनता पार्टी की जीत हुई थी। दिल्ली से निकलने वाले अमूमन सभी अखबारों का पहले पन्ने पर नरेन्द्र मोदी की तस्वारें और भाजपा का चुनाव चिन्ह् कमल था। इसके बाद से मतदान की तिथि पर विज्ञापनों को प्रकाशित करने की एक नई प्रवृति देखी गई जिसे पेड न्यूज का एक और नया रुप माना जाता है।
समाचार पत्रों में विज्ञापनों के अलावा टेलीविजन चैनलों पर ओपिनियन पोल के नाम पर भी राजनीतिक पार्टियों के पक्ष में चुनाव प्रचार करते देखा गया है। हालांकि चुनाव आयोग ने मतदान से पहले इस तरह के ओपिनियन पोल के प्रसारण पर रोक लगा दी है लेकिन टेलीविजन चैनल किसी न किसी बहाने ‘ओपिनियन पोल’ जारी करने से बाज नहीं आते हैं। 17 अप्रैल 2014 को लोकसभा के लिए मतदान के छठवें दौर में सबसे ज्यादा 122 संसदीय क्षेत्रों में मतदान से दो दिन पहले पूर्व एनडीटीवी ने एक ओपनियन पोल के नतीजों को जारी किया।दूसरे दिन द टाइम्स ऑफ इंडिया व दूसरे समाचार पत्रों ने हेड लाइन छापी कि पहली बार किसी ओपिनियन पोल ने भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन एनडीए को लोकसभा के चुनाव में बहुमत दिया गया है। सर्वे के नतीजे के अनुसार 543 सीटों में एनडीए को 275 सीटें मिलेगी। अकेले भाजपा को 226 सीटें मिलेगी। निर्वाचन आयोग ने 14 अप्रैल को टीवी चैनल द्वारा प्रसारित ओपिनियन पोल के बारे में कहा कि उसमें उन 111 लोकसभा क्षेत्रों के संभावित नतीजे शामिल थे जहां मतदान हुआ और एक तरह से उक्त निर्वाचन क्षेत्रों के संदर्भ में एग्जिट पोल के नतीजे का प्रसार करता है।यह जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा 126 का उल्लंघन है।
अमीर राजनीतिक पार्टियां समाचार पत्रों में विज्ञापनों पर पैसा बहाकर मतदाताओं को अंतिम समय तक प्रभावित करने में सफल हो जाती है। चुनाव आयोग ने 4 मई 2018 को राजनीतिक पार्टियों को भेजे गए अपने निर्देश पत्र में कहा है कि अंतिम दौर में चुनाव प्रचार के इरादे से विज्ञापनों को छापने की कार्रवाई पूरे चुनाव प्रक्रिया को दूषित कर देती है। अंतिम समय में राजनीतिक पार्टियां अपने प्रतिद्दंदी पार्टियों व नेताओं के खिलाफ आरोप लगा देती है या अपने दावे को बढ़ा चढ़ाकर पेश करती है जिसका जवाब देने का भी समय नहीं मिल पाता है। यहां तक कि धृणा फैलाने वाले विज्ञापन भी जारी किए जाते हैं। लेकिन राजनीतिक पार्टियां मतदान के वक्त चुनाव प्रचार के लिए तरह तरह के तरीके ढूंढने में कामयाब हो जाती है।