स्टरलाइट ही नहीं, 17 बड़ी भारतीय कंपनियों को नॉर्वे ने किया ब्लैकलिस्ट
पर्यावरण एवं मानवाधिकारों के उल्लंघन के आधार पर
“वर्तमान एवं भविष्य में पर्यावरण की गंभीर क्षति और मानवाधिकारों के व्यवस्थित उल्लंघन के अस्वीकार्य खतरों की वजह से” कुछ वर्ष पहले नोर्गेस बैंक (एनबी) द्वारा तमिलनाडु की विवादास्पद कंपनी स्टरलाइट में नॉर्वे के गवर्नमेंट पेंशन फंड ग्लोबल (जीपीएफजी) से धन का निवेश न करने के फैसले के बारे में द वायर में हाल में एक ख़बर छपी थी. इसके बाद इस दिशा में आगे खोजबीन किये जाने पर यह खुलासा हुआ है कि स्टरलाइट एकमात्र भारतीय कंपनी नहीं थी जिसे ब्लैकलिस्ट किया गया था.
काउंटरव्यू में छपी एक ख़बर के मुताबिक, कामनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव (सीएचआरआई) के वरिष्ठ कार्यकर्ता वेंकटेश नायक द्वारा की गयी एक तहकीकात से पता चला है कि “भारत के सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के 275 कंपनियों में” (जीपीएफजी) से धन का निवेश किया गया था. लेकिन सार्वजानिक क्षेत्र के चार उपक्रम और निजी क्षेत्र की 13 कम्पनियां इसकी अपवाद थीं. और इनके अपवाद होने के कारणों में पर्यावरण के नुकसान से लेकर मानवाधिकारों के उल्लंघन की बात शामिल थी.
श्री नायक द्वारा जीपीएफजी की वेबसाइट से खंगाले गये आंकड़ों के मुताबिक, ब्लैकलिस्ट किये गए सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड और नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन शामिल हैं. इन दोनों उपक्रमों को “गंभीर पर्यावरणीय क्षति” की वजह से ब्लैकलिस्ट किया गया. जबकि गुजरात मिनरल डेवलपमेंट कारपोरेशन और कोल इंडिया को उनकी 30% से अधिक गतिविधियां “तापीय कोयले” से जुड़ी होने की वजह से ब्लैकलिस्ट किया गया.
ब्लैकलिस्ट किये गये निजी कंपनियों में रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर, रिलायंस पावर और टाटा पावर का नाम प्रमुख है. इन कंपनियों की “30% से अधिक गतिविधियां तापीय कोयले से जुड़ी” होने की वजह से उन्हें ब्लैकलिस्ट किया गया. जबकि पोस्को को “गंभीर पर्यावरणीय क्षति” के कारण ब्लैकलिस्ट होने वाली निजी कंपनियों की सूची में डाला गया.
वेदांता रिसोर्सेज को “मानवाधिकारों के व्यवस्थित उल्लंघन” और “गंभीर पर्यावरणीय क्षति” की वजह से ब्लैकलिस्ट किया गया.
इम्पीरियल ब्रांड्स और आईटीसी को तम्बाकू के उत्पादन, जुआरी एग्रो केमिकल्स को “बाल श्रम के उपयोग”, और केयर्न एनर्जी को “मौलिक नैतिक मानदंडों के गंभीर उल्लंघन” के कारण ब्लैकलिस्ट कंपनियों की श्रेणी में रखा गया.
श्री नायक ने यह तहकीकात विगत 22 मई को तमिलनाडु के ठूथुकुदी (तूतीकोरिन) में हुई घटना की पृष्ठभूमि में की. इस घटना में पुलिस की गोलीबारी में 13 प्रदर्शनकारियों की घटनास्थल पर ही मौत हो गयी थी. ये प्रदर्शनकारी स्टरलाइट कॉपर के औद्योगिक उत्पादन की वजह से पड़ने वाले गंभीर पर्यावरणीय असर के खिलाफ विरोध जता रहे थे.स्टरलाइट कॉपर इस इलाके में तांबा गलाने का एक संयंत्र चलाता है.
इस कंपनी पर स्थानीय जल संसाधन को प्रदूषित करने से लेकर पर्यावरण संबंधी आवश्यक मंजूरी के बगैर संयंत्र की क्षमता बढ़ाने की योजना बनाने तक का आरोप है.
जीपीएफजी में नॉर्वे की तेल संपदा से होने वाली कमाई शामिल है. इसकी कुल संपत्ति 8,436 अरब नार्वेजियन क्रोनर मानी जाती है जोकि 1,026 अरब डॉलर या 69,285 अरब रुपये के बराबर है. नोर्गेस बैंक ने इस धन को दुनिया भर के 72 देशों के 9, 146 कंपनियों में निवेश किया है. जीपीएफजी का निवेश हासिल करने वाली नामीगिरामी कंपनियों में एप्पल इंक, माइक्रोसॉफ्ट, नेस्ले एवं अमेज़न डॉटकॉम, नोवार्टिस और सैमसंग प्रमुख हैं.
भारत में, जीपीएफजी ने इनफ़ोसिस लिमिटेड में 289 मिलियन डॉलर का निवेश किया है. इसी प्रकार, इसने भारतीय स्टेट बैंक में 227 मिलियन डॉलर, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज में 189 मिलियन डॉलर, टाटा मोटर्स में 170 मिलियन डॉलर, रिलायंस इंडस्ट्रीज में 169 मिलियन डॉलर, इंडस इंड बैंक में 149 मिलियन डॉलर, सिपला में 144 मिलियन डॉलर, अपोलो टायर्स में 130 मिलियन डॉलर, अडानी पोर्ट्स एंड एसईजेड में 89 मिलियन डॉलर और टीवी 18 में 41 मिलियन डॉलर का निवेश किया है.
श्री नायक के मुताबिक, “जीपीएफजी के निवेश संबंधी निर्णयों को निर्देशित करने वाली काउंसिल ऑन एथिक्स के अनुसार, वेदांता को बाहर करने का मामला ठूथुकुदी में उसकी गतिविधियों भर से जुड़ा नहीं है. बल्कि इसका वास्ता तमिलनाडु में मेट्टूर बांध के निकट स्थित रिफाइनरी में इसके ट्रैक रिकॉर्ड, उड़ीसा के नियमगिरि में खनन संबंधी इसकी गतिविधियों, और उड़ीसा के लांजीगढ़ स्थित रिफाइनरी एवं इसकी अन्य गतिविधियों से जुड़ा है. स्टरलाइट एवं इसकी सहयोगी कंपनियों को ब्लैकलिस्ट करने का निर्णय पहली बार 2007 में लिया गया था.”
उन्होंने बताया कि दरअसल काउंसिल ऑन एथिक्स ने एक नोट तैयार किया जिसमें वेदांता / स्टरलाइट को जीपीएफजी के निवेश से अलग रखने की सिफारिश की गयी थी. उन्होंने आगे जोड़ा, “वेदांता ने जीपीएफजी / एनबी के समक्ष उसे अलग करने के इस निर्णय के खिलाफ आवाज़ उठायी. लेकिन काउंसिल ऑन एथिक्स से प्राप्त सिफारिशों के आधार पर उसे बाहर रखने के निर्णय की 2013 में दोबारा पुष्टि की गयी.”
नॉर्वे की सरकार इस बात का एक बेहतरीन उदहारण है कि अगर राजनीतिक इच्छा – शक्ति और नौकरशाही में खुलेपन की संस्कृति हो, तो कोई सरकार और उसकी एजेंसियां किस कदर पारदर्शी हो
सकती है. दक्षिण एशियाई और अफ़्रीकी देशों की सरकारें, जिन्होंने सूचनाओं तक पहुंच की गारंटी देने के लिए कानून बनाया है, नॉर्वे की अच्छी प्रणाली से सबक लेकर आगे बढ़ सकती हैं.