केंद्र सरकार के कोस्टल जोन रेगुलेशन नोटिफिकेशन 2018 (तटीय परिक्षेत्र नियमन अधिसूचना, 2018) के मसौदे के खिलाफ देशभर के मछुआरा समुदाय के लोगों के बीच रोष बढ़ता जा रहा है. गुजरात के भरूच समेत देश भर के विभिन्न हिस्सों में नेशनल फिशरवर्कर्स फोरम के बैनर तले मछुआरा समुदाय के लोगों ने 11 जून को राष्ट्रीय विरोध दिवस मनाकर इस मसौदे पर अपने जबरदस्त आक्रोश का इजहार किया.

“हमारी तटरेखा बहाल करो, हमारी आजीविका सुरक्षित करो” के नारे के साथ नेशनल फिशरवर्कर्स फोरम, जिसमें गुजरात, गोवा, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल और पुडुचेरी के मछुआरों के विभिन्न सगठन शामिल हैं, ने नये मसौदे को देश और मछुआरों के आर्थिक हितों के विरुद्ध करार देते हुए इसे सर्वसम्मति से ख़ारिज कर दिया. फोरम के मुताबिक नये मसौदे में तटीय रेखाओं के लिए आवश्यक पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों की अनदेखी की गयी है. फोरम का मानना है कि यह मसौदा पर्यावरण (सुरक्षा) कानून, 1986 की धारा 3 का उल्लंघन करता है.


पर्यावरण (सुरक्षा) कानून, 1986 की धारा 3 में कहा गया है कि केंद्र सरकार “पर्यावरण की गुणवत्ता को संरक्षित एवं उसे बेहतर करने और पर्यावरणीय प्रदूषण को नियंत्रित करने एवं उसे रोकने के उद्देश्य से सभी आवश्यक या उपयुक्त उपाय करेगी”.

फोरम का कहना है कि वर्तमान तटीय परिक्षेत्र नियमन अधिसूचना, 2011 के मुताबिक खतरे वाले क्षेत्रों का निर्धारण, आजीविका का संरक्षण और अनियमित विकास को घटाना जरुरी है. लेकिन प्रस्तावित तटीय परिक्षेत्र नियमन अधिसूचना, 2018 का मसौदा इन सब को उलटते हुए सभी सुरक्षा उपायों को ख़त्म करता है और विकास को प्रोत्साहित करते हुए सागरमाला कार्यक्रम के लिए मार्ग प्रशस्त करता है.


सागरमाला कार्यक्रम भारत सरकार की एक महत्वाकांक्षी परियोजना है जिसके तहत देश में नए मेगा बंदरगाहों की स्थापना, मौजूदा बंदरगाहों के आधुनिकीकरण, 14 तटीय आर्थिक क्षेत्रों (कोस्टल इकोनोमिक जोन) एवं तटीय आर्थिक इकाइयों के विकास, और सड़क, रेल एवं जलमार्गों के माध्यम से बंदरगाहों को

जोड़ने की योजना है. विभिन्न संगठनों ने इस कार्यक्रम से तटीय पर्यावरण और मछुआरों की आजीविका के ध्वस्त होने की आशंका जतायी है.

फोरम ने प्रस्तावित मसौदे को सिर्फ अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित किये जाने पर भी गहरी नाराजगी जाहिर की है. उसका कहना है कि ऐसा करके सरकार ने मछली पकड़ने के व्यावसाय से जुड़े समुदायों के हितों के प्रति अपनी संकीर्णता को प्रदर्शित किया है.

नेशनल फिशरवर्कर्स फोरम के सचिव उस्मानगनी ने कहा, “हम, मछुआरा समुदाय के लोग, पर्यावरण के सबसे बड़े प्राथमिक गैर उपभोग करने वाले हितधारक और तटीय प्राकृतिक संसाधनों के स्वाभाविक संरक्षक हैं. देश के मछुआरे एक ऐसे दस्तावेज पर चुप नहीं रहेंगे, जो उनसे परामर्श किये बगैर तैयार किया गया है.”

केन्द्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने तटीय परिक्षेत्र नियमन अधिसूचना, 2018 के मसौदे को इस वर्ष 18 अप्रैल को जारी किया था.

फोरम की मांग है कि सरकार तटीय परिक्षेत्र नियमन अधिसूचना के नये मसौदे को अविलंब वापस ले और तत्कालीन पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश द्वारा जनवरी, 2011 में किये गये वादे के मुताबिक तटीय परिक्षेत्रों के नियमन के लिए एक व्यापक कानून बनाने के लिए तत्काल कदम उठाये. नया कानून बनाते समय तटीय इलाकों में मछली पकड़ने के व्यावसाय में लगे समुदायों एवं संबंधित निवासियों से खुला और उचित परामर्श किया जाये. नया कानून एक ठोस वैज्ञानिक, पर्यावरणीय सामाजिक सिद्धांतों पर आधारित हो और इसका लक्ष्य तटीय प्राकृतिक संसाधनों एवं उन संसाधनों पर निर्भर आजीविका के टिकाऊ प्रथाओं, दोनों, का संरक्षण हो.

नेशनल फिशरवर्कर्स फोरम की यह भी मांग है कि तटीय परिक्षेत्र नियमन, 2011 के तहत तटरेखाओं, तटीय क्षेत्रों एवं संबंधित योजनाओं के निर्धारण समेत तटीय इलाकों में रहने वाले मछुआरा समुदाय के लोगों के दीर्घकालिक आवासीय जरूरतों को देखते हुए तटीय क्षेत्र प्रबंधन योजना (सीजेडएमपी) को पारदर्शी और उत्तरदायी तरीके से सामुदायिक भागीदारी और पारंपरिक ज्ञान को शामिल कर पूरा किया जाये.