मन्दसौर गोलीकांड के पक्ष वाली जैन आयोग की रिपोर्ट का विरोध
न्याय की नई परिभाषा तैयार करने का प्रयास
जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय व किसान संघर्ष समिति जैन आयोग द्वारा गोलीचालन को न्याय संगत और नितांत आवश्यक ठहराने पर कड़ी आपत्ति व्यक्त की है। दिन दहाड़े 6 निर्दोष किसानों की हत्या को न्यायसंगत कहना न्याय की विकृत पूर्ण नई परिभाषा तैयार करने का प्रयास है जिसे कोई भी सभ्य समाज और देश स्वीकार और बर्दास्त नहीं करेगा। मंदसौर गोलीचालन को लेकर जैन आयोग की रिपोर्ट असल में किसानों के हत्यारों को बचाने और गोलीचालन को जायज ठहराने के लिए तैयार की गई रिपोर्ट है।
जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय व किसान संघर्ष समिति ने कहा है कि रिपोर्ट ने यदि कलेक्टर ,एस पी , प्रशासन ,पुलिस,सी आर पी एफ सभी को क्लीन चिट दे दी है तो हत्याओं के लिए कौन जिम्मेदार है? इस रिपोर्ट में आयोग ने न तो किसानों के उचित दाम या कर्ज़ा मुक्ति की मांग को किसानों के आंदोलन का मूल कारण माना गया है न ही इन दोनों मांगों को स्वीकार करने की सरकार से कोई सिफारिश की गई है। गोलीचालन की पुनरावृत्ति रोकने के लिए पुलिस गोलीचालन पर कांनूनी प्रतिबंध की सिफारिश भी नहीं की गई है।जबकि इन्ही बिंदुओं पर जांच करने के लिए आयोग बनाया गया था।
रिपोर्ट के अऩुसार आयोग के पास इस बात के साफ सबूत थे, कि पुलिस और सीआरपीएफ ने निहत्थे किसानों पर गोलियां चलाई हैं, यहां तक कि रिपोर्ट में विजय कुमार नामक एक सिपाही का नाम तक गोली चलाने के लिए लिया गया है, जिसकी गोली से कन्हैया लाल पाटीदार और पूनम चंद ( बबलू) मारे गए ,फिर भी सभी आरोपियों को क्लीनचिट दे दी गई।
रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया गया है कि भीड़ के पास किसी तरह का हथियार नहीं था। सी आर पी एफ के किसी की सिपाही या अफसर को चोट नहीं लगी है। फिर भी कहा गया है, कि पुलिस ने खुद को बचाने के लिए आत्मरक्षा में गोलियां चलाई है, अगर 2000 असमाजिक तत्वों की भीड़ होती तो कोई पुलिस वाला दोनो स्थानों से जीवित नहीं बच सकता था। गोलीचालान के समय से ही राज्य सरकार के अधिकारी और मंत्री इस घटना के पीछे असामाजिक तत्वों का हाथ बता रहे थे, इस रिपोर्ट में भी उसकी पुष्टि करने की कोशिश की गई है, जबकि सभी जानते हैं, कि मारे गए सभी शहीद किसान थे, जिनका कोई पुराना अपराधिक रिकार्ड नहीं था। रिपोर्ट के अनुसार साफ है, कि किसान सही कीमत न मिलने के कारण आंदोलन कर रहे थे । लेकिन अधिकारियों ने किसानों की समस्या समझने की कोशिश करना तो दूर संवाद करने की जरूरत नहीं समझी। प्रशासन और पुलिस के बीच भी संवादहीनता सामने आई है। इतना ही नहीं पुलिस मैन्युअल का भी यहां पालन नहीं किया गया।गोलियां घुटनो के ऊपर चलाई गई हैं। अर्थात षडयंत्र पूर्वक हत्याएं की गई हैं। इससे स्पष्ट होता है कि रिपोर्ट पूर्वाग्रह से प्रेरित है, जिसमें सभी फर्जी मुकदमों से पीड़ित परिवारों या 6 जून 2017 को उपस्थित 2000 किसानो को गवाह नहीं बनाया गया, पूरी रिपोर्ट 211 गवाहों के आधार पर बनाई गई है। जबकि आयोग ने 3 महीने की जगह 4 बार कार्यकाल बढ़ाकर 1 साल बाद रिपोर्ट दी।
इस रिपोर्ट में यह भी साफ नहीं है, कि किन किन किसानों पर कितने फर्जी मुकदमे दर्ज किए गए हैं तथा पुलिस पर हत्या के मुकदमे क्यों दर्ज नहीं किये गए है । विधानसभा चुनाव हो जाने के बाद मध्यप्रदेश पुलिस की इन आंदोलनकारी किसानों को प्रताड़ित करने की मंशा साफ़ है। यह स्पष्ट हो गया है कि पिछले 10 साल में 9 से अधिक जांच आयोग बने हैं, वे सभी लोगों को न्याय देने के लिए नहीं बल्कि लोगों की आंखों में धूल झौंकने के लिए बनाए गए आयोग साबित हुए हैं।जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय समिति ने मांग की है कि सरकार दोषी अधिकारियों पर हत्या के मुकदमे दर्ज करें, मृतक किसानों के परिजनो को स्थाई नौकरी दें, आयोग की रिपोर्ट तत्काल सार्वजनिक की जाये और शहीद स्मारक बनाने, किसानों पर लादे गए फर्जी मुकदमे वापस लेने और किसानों का सम्पूर्ण कर्ज़ा माफ करने और लाभकारी मूल्य की गारन्टी देने की किसानों की मांगें पूरी की जाये
समिति ने विधानसभा सत्र के पहले दिन इस मुद्दे पर बहस कराने की भी सरकार से मांग की है। सरकार ने किसान आंदोलन को तस्करों तथा कांग्रेसियों का आंदोलन बताया था लेकिन जांच रिपोर्ट में ऐसे लोगों को नामजद नहीं किया गया है जिससे सरकार के झूठ का पर्दाफाश हो गया है।