भाजपा ने उत्तर प्रदेश में फूंका चुनावी बिगुल
2019 के लिए रस्साकसी शुरू
लोकसभा की 80 सीटें यह सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बीच आम चुनावों के बाद तक कोई मतभेद पैदा न हो. जो लोग इन दोनों नेताओं के बीच मनमुटाव देखना चाहते थे, वे निराश हैं. बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के बीच हुई ताज़ा एकता की पृष्ठभूमि में अब ये दोनों नेता भाजपा समर्थक मतदाताओं को गोलबंद करने के लिए एकजुट गये हैं.
हाल के उपचुनावों, खासकर कैराना और फूलपुर, में मिली हार ने भाजपा के लिए खतरे की घंटी बजा दी है. भाजपा अब साफ़ तौर से विपक्षी दलों की एकता से चिंतित नजर आ रही है. अस्तित्व बचाने के संकट ने बसपा, सपा और अजित सिंह के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय लोकदल जैसे धुर प्रतिद्वंदियों को एक साथ ला खड़ा किया है. इस एकता के शिल्पकार अखिलेश यादव ने एलान किया है कि विपक्षी गठबंधन आगामी लोकसभा चुनाव भी साथ मिलकर लड़ेगा.
इस चुनौती को भांपते हुए योगी आदित्यनाथ इन दिनों अपने गृह क्षेत्र गोरखपुर में एक नियंत्रण कक्ष, जिसे स्थानीय मीडिया ‘लघु सचिवालय’ बता रहा है, स्थापित करने में व्यस्त हैं. प्रधानमंत्री मोदी भी इस महीने के आखिरी में गौतम अडानी और मुकेश अंबानी जैसे मित्र उद्योगपतियों के साथ लखनऊ पहुंचकर तकरीबन 800 करोड़ रुपए की लागत वाली परियोजनाओं की शुरुआत करने की तैयारी में हैं.
‘कोई विकास नहीं होने’ की विपक्षी आलोचनाओं का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए भाजपा और सरकार की ओर से अपने तुरुप के पत्ते, प्रधानमंत्री मोदी, के साथ व्यापक तैयारी की जा रही है. पूर्वांचल में समाजवादी पार्टी का गढ़ माने जाने वाले जिलों से गुजरने वाली एक एक्सप्रेसवे की घोषणा इस महीने के अंत में प्रधानमंत्री के दौरे के दौरान की जायेगी.
राज्य सरकार ने पहले ही धान के न्यूनतम समर्थन में बढ़ोतरी का एलान कर दिया है. यह अलग बात है कि सरकार का यह कदम पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट किसानों, जिन्होंने हाल में कैराना में भाजपा की हार सुनिश्चित की थी, की नाराजगी दूर करने में कामयाब नहीं हो सका. हालांकि, इन किसानों को वापस अपने पाले में लाने के लिए प्रधानमंत्री शाहजहांपुर में एक जनसभा को संबोधित करने वाले हैं. 2014 में, जाटों ने एकजुट होकर भाजपा के पक्ष में मतदान किया था. लेकिन कैराना उपचुनाव में मिली जीत के साथ राष्ट्रीय लोकदल, जिसका परंपरागत आधार जाटों के बीच रहा है, की एक किस्म से वापसी हो गयी है.
इस साल के शुरू में योगी आदित्यनाथ ने निवेशकों का एक सम्मेलन बुलाया था. और अब निवेश संबंधी वादों के आगे बढ़ाने के लिए अडानी और अंबानी समेत तमाम निवेशक प्रधानमंत्री के साथ राज्य के दौरे पर होंगे. विकास के प्रति प्रधानमंत्री की प्रतिबद्धता को साबित करने के लिए उत्तर प्रदेश को एक नजीर के रूप में पेश करने की जुगत की जा रही है. कम से कम उत्तर प्रदेश में, साम्प्रदायिकता कार्ड के अलावा विकास भाजपा के चुनावी अभियान का एक अहम हिस्सा रहने वाला है.
भाजपा की ओर से तुरुप के पत्ते के रूप में मोदी तो रहेंगे ही, लेकिन उपचुनावों में मिली करारी हार ने आदित्यनाथ को ‘अकेला चलने’ और ‘उत्तर प्रदेश का एकछत्र नेता बनने’ का प्रयास छोड़ने और प्रधानमंत्री एवं अमित शाह के साथ मिलकर काम करने की सीख दी है. अमित शाह के साथ उनकी कई बैठकें हो चुकी हैं और उन दोनों के बीच ठीकठाक कामकाजी रिश्ते बन जाने की ख़बरें हैं. यहां याद रखने लायक बात यह है कि मुख्यमंत्री के तौर पर आदित्यनाथ की नियुक्ति राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पसंद मानी जाती है और संघ के इस निर्णय ने मोदी और शाह, दोनों को बुरी तरह चौंका दिया था क्योंकि दोनों नेता इस पद के लिए किसी अन्य उम्मीदवार की तरफदारी कर रहे थे. उसके बाद से दोनों पक्षों के बीच रिश्ते ठंडे चले आ रहे थे.
2014 के संसदीय चुनावों में भाजपा ने राज्य में जोरदार जीत दर्ज की थी. मुज़फ्फरनगर की हिंसा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने और भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने में मददगार साबित हुई थी. विपक्षी दलों के आपसी टकराव ने भी उनकी करारी हार सुनिश्चित की. आदित्यनाथ ने बढ़ – चढ़कर हिन्दुत्व कार्ड खेला है और राम – मंदिर मुद्दे को जिंदा रखा है. उनके ‘मुठभेड़ राज’ में राज्य पुलिस ने मुसलमानों, दलितों और यादवों को जमकर निशाना बनाया है. सवर्णों साफ़ तौर पर मजबूत हुए हैं. चन्द्रशेखर जैसे क्षमतावान युवा दलित नेता को लगातार जेल में बंद रखा गया है. हालांकि, सूत्रों का दावा है कि आदित्यनाथ को इन मामलों में धीमे चलने और विकास का संदेश देने के साथ – साथ मोदी के ब्रांड को ज्यादा से ज्यादा प्रचारित करने को कहा गया है.
इस तरह, 2019 के लिए फिलहाल विकास ही भाजपा का नारा रहने वाला है और सभी शीर्ष नेता मिलकर इस महीने चुनावी बिगुल फूंकने वाले हैं. और जैसा कि कई राजनेता अनुमान लगा रहे हैं, संभव है कि यह कहीं 2018 का लोकसभा चुनाव बन जाये,.