मीडिया की बेरुखी के बीच भारी तादाद में महिलाओं ने दिल्ली में किया मार्च
23 राज्यों की महिलाओं ने लगाई अपने अधिकारों के लिए आवाज़
देशभर से आई हजारों महिलाओं ने दिल्ली की सडकों को पाट दिया. अपने – अपने इलाकों से बसों, रेलगाड़ियों और पैदल सफ़र तय करके पहुचीं ये महिलाएं भारी बारिश के बीच राष्ट्रीय राजधानी की सडकों पर बहुत ही धैर्य और दृढ़निश्चय के साथ चलीं. अपने कंधों पर छोटे बच्चों और कुछ कपड़े एवं खाने के समान से भरा एक थैला लटकाये और पैरों में टूटी – फटी चप्पलें पहने देश के 23 राज्यों की महिलाएं सरकार से लैंगिक, खाद्य एवं रोजगार की सुरक्षा मांगने आयीं थीं.
“हाथ में काम दो, काम का पूरा दाम दो” का नारा लगतीं ये महिलाएं अपने दिल्ली आने के मकसद से पूरी तरह अवगत थीं. उन्हें मालूम था कि उनके इस मार्च का मतलब क्या है. उनके जेहन में कहीं कोई असमंजस नहीं था. पूरे अनुशासन के साथ कतारबद्ध होकर चलती इन महिलाओं, जिनमें से अधिकांश गरीब और भूमिहीन मजदूर थीं और हरेक के पास सुनाने के लिए एक दारुण कहानी थी, की राजनीतिक इच्छाशक्ति को देखकर द सिटिज़न संवाददाता समेत हर कोई हैरान था. इनकी कहानियां बढ़ती महंगाई से कठिन होती ज़िन्दगी और राशनकार्ड को आधारकार्ड से जोड़ने की बाध्यता की वजह से सस्ते राशन से महरूम होने से जुड़ी थीं.
आल इंडिया डेमोक्रेटिक वीमेंस एसोसिएशन की अध्यक्ष मालिनी भट्टाचार्य ने द सिटिज़न को बताया कि इन महिलाओं की तीन प्रमुख मांगें हैं:
- महिलाओं और बच्चों के साथ बढ़ती हिंसा के जिम्मेदार लोगों को खुला छोड़ने के बजाय गिरफ्तार किया जाये. इनमें देश के विभिन्न हिस्सों में लोगों को पीट – पीटकर मार देने वाले अपराधियों को भी शामिल किया जाये. पीट – पीटकर मार देने की घटनाओं पर अविलंब रोक लगाई जाये और पीड़ितों को उचित मुआवजा दिया जाये.
- राशनकार्ड को आधारकार्ड से जोड़ने की बाध्यता समाप्त की जाये. इस बाध्यता से गरीबों के जीवन पर गहरा असर पड़ा है और आधारकार्ड न होने की वजह से बड़ी संख्या में गरीब लोगों को कुपोषण और भुखमरी का शिकार होना पड़ा है और जान गवांनी पड़ी है. इसलिए आवश्यक रूप से राशन का सार्वभौमिकरण किया जाये.
- महिलाओं की पहुंच सम्मानजनक श्रम तक आसान बनायीं जाये. और मजदूरी को काम का समानुपाती बनाया जाये. वर्तमान में रोजगार के बाज़ार में महिलाओं की स्थिति सबसे दयनीय है, लिहाज़ा उनके लिए रोजगार की सुरक्षा सुनिश्चित की जाये.
हैरानी की बात यह रही (शायद ऐसा न भी हो) कि भारी तादाद में गरीब, मजलूम और जरूरतमंद लेकिन दृढनिश्चयी महिलाओं ने अपने अधिकारों के लिए राजधानी दिल्ली के केंद्र में स्थित संसद मार्ग पर मार्च किया, लेकिन बड़े टेलीविज़न चैनलों और मीडिया समूहों ने इससे अपनी आंखें मूंद लीं. दो – चार अपवादों को छोड़कर सबों ने इस मार्च और महिलाओं की मांगों को नजरअंदाज करते हुए वाजिब ख़बरों को दबाने का ताज़ा उदहारण पेश किया.