त्रिपुरा सरकार का दमन : 40 साल पुराने दैनिक ‘देशेर कथा’ को बंद किया
एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया ने जतायी नाराजगी
त्रिपुरा की भाजपा सरकार ने तकनीकी कारणों को बहाना बनाते हुए वामपंथ – समर्थक बंगला दैनिक ‘देशेर कथा’ को बंद कर दिया. राज्य सरकार के इस कदम से मीडिया जगत में भारी नाराजगी है. एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया ने सरकार के इस निर्णय को मीडिया की आज़ादी को कुंद करने वाला कदम बताया है. उसने राज्य सरकार से इस निर्णय को वापस लेने का आग्रह किया है.
दैनिक ‘देशेर कथा’ के संस्थापक एवं सीपीएम के नेता गौतम दास ने इसे एक “राजनीतिक दांव” करार दिया.
भारत के समाचारपत्रों के पंजीयक (आरएनआई) ने “स्वामित्व में अनाधिकृत बदलाव” के आधार पर इस दैनिक का पंजीयन रद्द कर दिया. दैनिक ‘देशेर कथा’ को भेजे गये पत्र में आरएनआई ने कहा कि प्रेस एवं पुस्तक पंजीयन अधिनियम, 1867 के कथित उल्लंघन के संबंध में सब – डिवीज़नल मजिस्ट्रेट की एक रिपोर्ट के आधार पर इस दैनिक का पंजीयन रद्द किया गया.
यह दैनिक त्रिपुरा का दूसरा सबसे ज्यादा प्रसार – संख्या वाला अखबार है और इसका संचालन राज्य के मुख्य विपक्षी दल, सीपीएम, द्वारा किया जाता है.
राज्य सरकार के इस कदम पर कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया ने कहा कि “सिर्फ संपादक, प्रकाशक एवं मुद्रक द्वारा दी गयी सूचना में कोई साम्य नहीं होने के निष्कर्ष के आधार पर किसी प्रकाशन का पंजीयन रद्द करना न सिर्फ एक अतिवादी प्रतिक्रिया है, बल्कि मीडिया की आज़ादी को सीमित करने वाला एक कदम है”. गिल्ड ने मांग की कि “गलत सूचना” के मसले पर आगे जांच पूरी होने तक दैनिक ‘देशेर कथा’ के पंजीयन रद्द करने के आदेश को तत्काल वापस लिया जाये. उसने यह भी मांग की कि सरकार की ओर से इस बात की भी एक स्वतंत्र एवं निष्पक्ष जांच की जाये कि कहीं यह आदेश किसी “राजनीतिक मंशा” से प्रेरित तो नहीं है.
भाजपा सरकार के इस कदम ने मीडिया जगत में खतरे की घंटी बजा दी है. गांधी जयंती के अवसर पर 2 अक्टूबर को एक तकनीकी कारण को आधार बनाकर सरकार द्वारा 40 साल से पाठकों की विश्वसनीयता अर्जित करने वाले एक दैनिक अखबार को बंद कर दिया गया. एक ऐसे माहौल में जब स्वतंत्र मीडिया बुरी तरह आतंकित और डरा हुआ महसूस कर रहा है, सरकार के इस कदम ने वरिष्ठ संपादकों को इस मसले पर अपने वक्तब्यों के माध्यम से अपनी चिंताएं जाहिर करने के लिए प्रेरित किया है.
इससे पूर्व, श्यामल देबनाथ नाम के एक स्थानीय व्यक्ति ने इस अखबार पर 1867 के कानून के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए पश्चिमी त्रिपुरा के जिलाधिकारी के समक्ष शिकायत दर्ज करायी. जिलाधिकारी ने स्थानीय मीडिया को बताया कि शिकायत प्राप्त होने के बाद उनके कार्यालय ने दोनों पक्षों को नोटिस जारी किया और इस मसले पर चार बार सुनवाई की. सुनवाई के दौरान “संपूर्ण उल्लंघन” का खुलासा हुआ.
अपनी प्रतिक्रिया में, दैनिक ‘देशेर कथा’ ने इस प्रतिबंध को “अवैध” करार दिया और कहा कि इस कदम को राजनीतिक आकाओं के निर्देश पर अंजाम दिया गया है.
हरेक राज्य में राजनीतिक प्रतिद्वंदिता होती है और राजनीतिक पार्टियां लंबे समय से अखबारों एवं टेलीविज़न चैनलों को चला और आर्थिक सहयोग मुहैया करा रही हैं. सरकार द्वारा एक अखबार को बंद किया जाना एक गंभीर मसला है और प्रेस की स्वतंत्रता में एक सीधा दखल है. हाल के वर्षों में यह पहला ऐसा उदहारण है जब एक तकनीकी मुद्दे के बहाने की गयी शिकायत को आधार बनाकर किसी प्रकाशन को बाधित करने में सरकार ने सीधा दखल दिया है.
इधर, राजधानी नयी दिल्ली में केरल यूनियन ऑफ़ वर्किंग जर्नलिस्ट्स एवं दिल्ली यूनियन ऑफ़ जर्नलिस्ट्स ने त्रिपुरा भवन के सामने 5 अक्टूबर को राज्य सरकार के इस निर्णय के खिलाफ एक संयुक्त प्रदर्शन का आयोजन किया.