त्रिपुरा के लिए एनआरसी की मांग को सीपीएम का समर्थन
जनहित याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय खंडपीठ द्वारा सुनवाई
राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) को अद्यतन करते हुए उसमें त्रिपुरा को शामिल करने की मांग को लेकर त्रिपुरा पीपुल्स फ्रंट द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया.
सर्वोच्च न्याय के नवनियुक्त मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने इस याचिका पर सुनवाई की.
याचिका में एनआरसी को अद्यतन करते हुए उसमें त्रिपुरा को शामिल करने पर यह कहते हुए जोर दिया गया है कि राज्य में रह रहे अवैध प्रवासियों की पहचान और उनका निर्वासन जरुरी है. याचिका में कहा गया, “अवैध प्रवासियों की मौजूदगी से राज्य के नागरिकों के राजनीतिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है.”
याचिका में इस बात का खास तौर पर उल्लेख किया गया है कि “बांग्लादेश से त्रिपुरा में अवैध प्रवासियों के अनियंत्रित घुसपैठ से राज्य की जनसंख्या के स्वरुप में व्यापक बदलाव आया है”. याचिका में कहा गया, “देशी लोग, जो एक समय बहुमत में थे, अब अपनी ही जमीन पर अल्पमत में आ गये हैं.” संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशनों के प्रति भारत की वचनबद्धता के अनुरूप त्रिपुरा के देशी लोगों के विशिष्ट संस्कृति एवं परम्पराओं के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए न्यायिक हस्तक्षेप जरुरी होने का तर्क भी इस याचिका में दिया गया है.
याचिकाकर्ताओं ने त्रिपुरा में विदेशी लोगों के लिए ट्रिब्यूनल की स्थापना एवं अवैध प्रवासियों के निर्वासन की मांग की है.
त्रिपुरा – पूर्व से सीपीएम के सांसद जितेंद्र चौधरी ने द सिटिज़न को बताया, “त्रिपुरा उन राज्यों में से एक है, जो बंटवारे की वजह से और उसके बाद भी अवैध घुसपैठियों की समस्या से व्यापक रूप से प्रभावित रहा है. अवैध घुसपैठियों की वजह से असम की तुलना में त्रिपुरा की जनसंख्या के स्वरूप में कहीं ज्यादा बदलाव हुआ है.”
उन्होंने आगे कहा कि एक भारतीय नागरिक के तौर पर उन्हें एनआरसी से कोई एतराज नहीं है. उन्होंने कहा, “सिर्फ त्रिपुरा ही क्यों, पूरे भारत में एनआरसी का प्रावधान होना चाहिए.” उनके मुताबिक पूर्वोत्तर क्षेत्र, खासकर त्रिपुरा के लिए, 24 मार्च 1971 तक आने वाले प्रवासियों को ही वैध नागरिक के रूप में मान्य किया जाना चाहिए और गिनती के दौरान किसी भी वास्तविक भारतीय नागरिक को अनावश्यक रूप से परेशान नहीं किया जाना चाहिए, जैसाकि असम में हुआ.