एक और गंगा सपूत की मौत
स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद गंगा को लेकर दिखावे और वोटों की राजनीति से दुखी थे
पिछले २२ जून से गंगा नदी से संबंधित कुछ मांगों को लेकर लगातार अनशन पर बैठे स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद की मृत्यु ११ अक्टूबर को हो गयी. इस खबर के मेनस्ट्रीम मीडिया में प्रमुखता से दिखाए जाने के बाद प्रधानमंत्री ने उनके निधन पर दुख जताया और ट्वीट कर कहा कि “शिक्षा और पर्यावरण संरक्षण, विशेषकर गंगा स्वच्छता के प्रति उनका जूनून हमेशा याद रखा जाएगा. मेरी श्रद्धांजलि”.
पूरे ११३ दिनों के अनशन के दौरान और उसके पहले भी स्वामी सानंद ने लगभग १० पत्र प्रधानमंत्री को लिखे थे, पर किसी का जवाब देना तो दूर किसी पत्र की पावती भी नहीं भेजी गयी और न ही प्रधानमंत्री की तरफ से कोई कदम गंगा की सफाई के लिए उठाया गया.
बात-बात पर ट्वीट करने वाले प्रधानमंत्री ने कभी इस संबंध में एक ट्वीट भी नहीं किया. वही प्रधानमंत्री उनके प्राण त्यागने के चाँद घंटों के अन्दर ही दुखी होकर ट्वीट कर रहे हैं. संवेदनहीनता की चरम सीमा शायद ऐसी ही होती है.
स्वामी सानंद शायद इन स्थितियों को पहले ही भांप चुके थे, तभी अपने उपवास के १०१वें दिन यानि ३० सितम्बर को प्रधानमंत्री को भेजे अपने पत्र में उन्होंने लिखा था, “प्रभु राम जी मेरा संकल्प शीघ्र पूरा करें, जिससे मैं शीघ्र उनके दरबार में पहुँच कर गंगा जी की अवहेलना करने और उनके हितों को हानि पंहुचाने वालों को समुचित दंड दिला सकूं. उनकी अदालत में मैं अपनी हत्या का आरोप भी व्यक्तिगत रूप से आप पर लगाऊंगा”.
2011 में संन्यास लेने के पहले, स्वामी ज्ञान स्वरुप सानंद का नाम डॉ जी डी अग्रवाल था और वर्त्तमान में नदियों की समस्याओं और उनके समाधान का उनसे बड़ा विशेषज्ञ देश में शायद ही कोई दूसरा हो. डॉ अग्रवाल आईआईटी कानपुर में प्रोफेसर थे, फिर केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के शुरुआती दिनों में लम्बे समय तक उसके सदस्य सचिव रहे. इसके बाद ग्रामोदय विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे. इस सरकार के पहले तक डॉ अग्रवाल नदियों से और पर्यावरण से संबंधित लगभग हरेक उच्च-स्तरीय कमिटी का हिस्सा रहे. पिछले कुछ वर्षों से, विशेष तौर पर संन्यास लेने के बाद उन्होंने अपना पूरा जीवन गंगा के लिए समर्पित कर दिया.
स्वामी सानंद को गंगा को लेकर सरकारी दिखावा और वोटों की राजनीति कि अच्छी जानकारी थी. ३० सितम्बर को प्रधानमंत्री को भेजे गए पत्र में, जो उनका आख़िरी पत्र भी था, उन्होंने लिखा, “आपने 2014 के चुनाव के लिए वाराणसी में उम्मीदवारी भाषण में कहा था – मुझे तो गंगा माँ ने बुलाया है, अब गंगा जी से कुछ लेना नहीं बल्कि देना ही देना है. मैंने समझा आप भी ह्रदय से गंगा जी को माँ मानते हैं (जैसा कि मैं स्वयं मानता हूँ). माँ गंगा के नाते आप मेरे लिए छोटे भाई हुए. जुलाई के अंत में ध्यान आया कि भले ही माँ गंगा जी ने बड़े प्यार से आपको बुलाया, जिताया और प्रधानमंत्री पद दिलाया पर सत्ता की जद्दोजहद (और शायद मद भी) में माँ किसे याद रहेगी, और आपको माँ की याद नहीं आयी”.
गंगा के बारे में जुमले को छोड़कर कुछ भी नहीं किया गया है, यह डॉ अग्रवाल के पत्रों से स्पष्ट होता है. 6 अगस्त को प्रधानमंत्री मोदी को लिखे गए पत्र में उन्होंने कहा है, “इन चार सालों में आपकी सरकार द्वारा जो कुछ भी हुआ उससे गंगा जी को कोई लाभ नहीं हुआ. उसकी जगह कॉर्पोरेट सेक्टर और व्यापारिक घरानों को ही लाभ दिखाई दे रहे हैं. अभी तक आपने गंगा से मुनाफा कमाने की ही बात सोची है”.
4 जुलाई को नितिन गडकरी को भेजे पत्र में डॉ अग्रवाल ने कहा है, “आप लोगों की गलत नीतियों और आर्थिक विकास लोलुपता से ही यह स्थिति आयी है”. ३० सितम्बर को प्रधानमंत्री को भेजे गए पत्र में भी नितिन गडकरी का उल्लेख है, “पर परिणाम आज तक तो वही धाक के तीन पात. कोई अर्थपूर्ण पहल नहीं. गंगा मंत्री गडकरी जी को न गंगा जी की समझ है और न उनके प्रति आस्था. और, गंगा जी में मालवाहक जहाज भी तो चलाने हैं, चाहे उसके लिए गंगा जी को वाराणसी की खाड़ी में परिवर्तित करने पड़े. नामामे गंगे के हजारों करोड़ रुपये से सैकड़ों सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बन जायेंगे और करोड़ों नगरवासियों के वोट मिलाने का जुगाड़ हो जाएगा. गंगा जी बेचारी क्या देंगी?”
इसी पत्र में उन्होंने अपनी भावी योजना को भी स्पष्ट कर दिया था. स्वामी सानंद ने लिखा था, “यदि सरकार को गंगा जी के विषय में कोई पहल करनी थी तो १०१ दिनों का समय पर्याप्त से भी अधिक था. अतः मैंने निर्णय लिया है कि मैं ९ अक्टूबर २०१८ को मध्याह्न अंतिम गंगा स्नान कर जीवन में अंतिम बार जल और यज्ञशेष लेकर जल भी पूर्णतया लेना छोड़ दूंगा और प्राणांत की प्रतीक्षा करूंगा. ९ अक्टूबर मध्याह्न १२ बजे के बाद यदि कोई मुझे माँ गंगा जी के बारे में मेरी सभी मांगें पूरी करने का प्रमाण भी दे तो मैं उसकी तरफ ध्यान भी नहीं दूंगा.”
ऐसा प्रतीत होता है कि नमामि गंगे और गंगा ने मुझे बुलाया है – महज चुनावी जुमले थे. सरकार को न तो गंगा की और न ही इसे साफ़ करने वाले विशेषज्ञों की चिंता है.