स्टैच्यु की स्टूपिड राजनीति
सुनील कुमार
भोजपुरी में एक कहावत है ‘पिढा चढ़ कर ऊंच होना’ इस मुहावरे को आज केन्द्र सरकार और अन्य राज्य सरकारें चरितार्थ करने में लगी हुई है। भारत में बड़ी बड़ी मूर्तियां लगाने की होड़ लगी हुई है. भारत का शासक वर्ग आम जनता को जाति, धर्म के बाद मूर्ति के राजनीति में पिरोना चाहती है. वह दिखाना चाहती है कि हमारे पास विश्व की सबसे ऊची-ऊंची मूर्तियां है, हम विश्व में सबसे आगे हो गये हैं. इस तरह की मूर्खता का काम विश्व की कोई भी सरकारें नहीं कर रही है, इसलिए इसे ‘स्टूपिड स्टैच्यु’ (stupid statue ) कहा जा रहा है. भारत सरकार ऊंची-ऊंची मूर्तियों के द्वारा ही लोगों के अन्दर श्रेष्ठ होने की भावना भड़का रही है जिसके लिए भोजपुरी का यह मुहावरा सटीक बैठता है.
31 अक्टूबर, 2013 को गुजरात के मुख्यमंत्री (वर्तमान प्रधानमंत्री) नरेन्द्र मोदी ने ‘स्टैच्यु ऑफ यूनिटी’ का शिलान्यास रखते हुए कहा कि भारत को श्रेष्ठ बनाने के लिए एकता की शक्ति से जोड़ने का यह अभियान एक नई ऐतिहासिक घटना है. मोदी ने कहा था कि इस मूर्ति को बनाने के लिए वह देश भर के किसानों से उनके लोहे के औजारों एक टुकड़ा चाहते हैं क्योंकि सरदार पटेल सिर्फ लौह-पुरुष ही नही बल्कि किसान पुत्र भी थे.
‘स्टैच्यु ऑफ यूनिटी’ के अनावरण के दिन नर्मदा के 72 गांव के 75000 लोगों के घर में चूल्हे नहीं जलाए गए, लोगों ने विरोध किया और ‘मोदी गो बैक के नारे लगे’. जिसके घर में ‘स्टैच्यु ऑफ यूनिटी’ लग रही है वह इससे खुश नही है, तो मोदी जी यह कैसी यूनिटी की बात कर रहे हैं? भारत के लोगों को भूखे रख कर भारत को श्रेष्ठ बनाने का सपना है? पटेल अगर किसान पुत्र थे तो इन किसान पुत्रों की अनदेखी क्यों की जा रही है? जिन किसानों की जमीन सरदार सरोवर बांध में चली गई उसमे से एक केवड़िया कॉलोनी के उकाभाई पटेल बताते हैं कि आठ एकड़ जमीन सरदार सरोवर परियोजना में चली गई लेकिन 70 साल बाद भी मुआवाज नहीं मिला है. उकाभाई पटेल को उजाड़ कर जिस कॉलोनी में बसा गया है वहां पर 10 साल बाद बिजली के खंभे गड़ गए लेकिन अभी तक पीने का साफ पानी विस्थापित कॉलोनीवासियों को नहीं मिल रहा है. क्या आज पटेल होते तो वह भी इसी तरह के भारत की कल्पना करते?
नर्मदा जिले में पटेल की मूर्ति लगाने में लगभग 3000 करोड़ रू. का खर्च किया गया है. उसी जिले की लगभग छह लाख की जनसंख्या पर 27 हायर सेकेंड्री स्कूल और दो अस्पताल है. अगर इन पैसों को उस जिले के लोगों पर ही खर्च कर दिया जाता, तो सचमुच शिक्षा, स्वास्थ्य के मामले में दुनिया के बेहतरीन जगहों में इस जिले का नाम हो सकता था. इस मूर्ति को बनाने के लिए सरकारी नवरत्नों कम्पनियों के सी.एस.आर. का पैसा लगाया गया है जो कि कहीं से यह सामाजिक उत्तरदायित्व की श्रेणी में नहीं आता है.
इस मूर्ति को बनाने में भारत के किसानों से जो लोहे इक्ट्ठे किए गए थे, उसकी सरकार ने कोई चर्चा नहीं की. पटेल को‘किसान पुत्र’ से सीधे कारपोरेट पुत्र बनाते हुए चाइनिज कम्पनी को ठेका दे दिया जो कि मोदी के ‘मेक इन इंडिया’ को मुंह चिढ़ाने जैसा है. मोदी जी का सपना टूरिस्ट स्थल बना कर राजस्व प्राप्त करने का है, जो कि विकृत पूंजीवाद का एक रूप है. जहां पर टूरिज्म होता है हम सभी जानते हैं कि वहां पर ‘वेश्यावृति’ बढ़ जाती है क्योंकि टूरिज्म का मतलब ही होता है कि खाओ-पीओ मौज करो; क्या आर.एस.एस. की यही भारतीय संस्कृति है?
पटेल की मूर्ति के अलावा भारत में और भी कई मूर्तिया, मंदिर बन रहे हैं जिसका मकसद है विश्व में ऊंचा और बड़ा होने का रिकॉर्ड कायम करना. यूपी के कुशीनगर में 660 एकड़ में 500 फूट ऊंचे बुद्ध की कांस्य प्रतिमा लगाने के लिए मैत्रेय ट्रस्ट और यूपी सांस्कृतिक विभाग से 2003 में करार हुआ था. भूमि अधिग्रहण के विरोध के कारण इसे 200 फीट उंची और 250 एकड़ में बनाने का फैसला किया गया है.
महाराष्ट्र में 212 मीटर (695.53 फूट) ऊंची शिवाजी की मूर्ति बनने जा रही है जिस पर 3600 करोड़ रू. खर्च होने का अनुमान है, इसका निर्माण का भी ठेका चाइनिज कम्पनी को मिला है. इस मूर्ति के लिए 13 हैक्टेयर जमीन का अधिग्रहण किया जाना है.
अयोध्या में राम की मूर्ति को विश्व हिन्दू परिषद ने 151 मीटर ऊंचा रखने के लिए कहा था. लेकिन अब चर्चा चल रही है कि इस मूर्ति की ऊंचाई 201 मीटर (659.5 फूट) कर दिया जाए जिस पर 3000 करोड़ रू. खर्च होगा.
बिहार के चम्पारण जिले के जानकी नगर में राम की 405 फूट ऊंची मूर्ति (दुनिया का सबसे ऊंचा हिन्दु मन्दिर), 200 एकड़ में बनाया जा रहा है, जिसमें 50 मुसलमानों ने भी जमीन दान में दिया है.
हमने दुनिया के सबसे ऊंचे ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ 182 मीटर (597.113 फूट) खड़ा कर दिया हैं जो कि ‘स्टैच्यु ऑफ लिबर्टी 93 मीटर से करीब दुगनी ऊंची है. क्या हम अमेरिका से दोगुना शक्तिशाली बन गये हैं? चिन के स्प्रिंग टेम्पल बुद्धा 153 मीटर (501.969 फूट) और जापान में बुद्ध की प्रतिमा 120 मीटर (393.701 फूट) से ऊंची प्रतिमा बनाकर हम उनसे आगे निकल गये हैं!
भारत में आजकल तिरंगे की ऊंचाई भी बढ़ाने में लगे हैं. एक नजर तिरंगों कि ऊंचाई पर :
· कर्नाटक के बेलगाम 360.8 फीट
· अटारी बॉर्डर 360 फीट (3.50 करोड़ खर्च हुआ)
· कोल्हापुर, महाराष्ट्र 303 फीट
· पहाड़ी मंदिर रांची 293 फीट (बार बार फटने के कारण इसे उतार लिया गया है)
· तलीबांधा रायपुर 269 फीट
· भोपाल 237 फीट
· कनॉट प्लेस, दिल्ली 207 फीट
· जयपुर 206 फीट
भारत में मूर्तियां और राष्ट्रीय ध्वज बड़ा होता जा रहा है लेकिन देश छोटा (पिछड़ता) जा रहा है. स्वास्थ्य सेवा में भारत बंग्लादेश, नेपाल और घाना जैसे देशो से भी बदतर हालत में है. 195 देशों में से भारत 154वें स्थान पर है जो कि अपने जीडीपी का मात्र 1.15 प्रतिशत ही खर्च करता है. भारत में 11,082 लोगों पर महज एक एलोपैथिक डाक्टर है. भारत का एक भी विश्वविद्यालय ऐसा नहीं है जो दुनिया के रैंकंग में अपना विशेष स्थान रखता हो. खुशहाली में भारत पाकिस्तान, भूटान, नेपाल, बंग्लादेश, श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों से पीछे हैं. 2018 में 156 देशों में 133 वां स्थान है जबकि 2017 में 122 वें पायदान पर था. 20 करोड़ लोग देश में भूखे सोते हैं, 2018 के हंगर इंडेक्स (भूख-सूचकांक) में 119 देशों में भारत का स्थान 102 पर है जो कि काफी खतरनाक स्थिति है जबकि 2014 में भारत 55 वें स्थान और 2017 में 100 वें स्थान पर था. भारत में दिन प्रति दिन भूखमरी कि स्थिति बढ़ती जा रही है और भारत की बेटी संतोषी भात, भात करते मर जाती है लेकिन भारत देश का तिरंगा और मूर्तियां में ऊंची होती जा रही है.
जिस देश की जनता को अच्छा स्वास्थ्य व शिक्षा नहीं मिल सकती, वह देश पिछड़ता ही जायेगा. लेकिन हमारे देश का शासक वर्ग हमें मूर्ख बनाते हुए हमें ऊंची-ऊंची मूर्तियों, मंदिरों को दिखाते हुए हमें ‘गुड फिल’ कराना चाहती है. ब्रिटेन के सांसद पीटर बोन का कहना है कि यह पागलपन भरा कदम है. हमसे 1.1 बिलियन यूरो की मद्द लेकर स्टैच्यू बनाना बिल्कुल बकवास काम है. भारत का यह कदम साबित करता है कि हमें पैसा नहीं देना चाहिए.
भारत का शासक वर्ग अपने देश को लूटने की इजाजत देकर बाहर से उनके शर्त पर का उनके द्वारा उत्पादित वस्तुओं का आयात करेगी. किसानों से जमीन छिनकर उद्योगों की जगह मूर्तियों की स्थापना की जा रही है और उसके आस पास रेस्टोरेन्ट, होटल, पब, डिस्को इत्यादि का निर्माण किया जा रहा है. टूरिज्म से विदेशी मुद्रा आयेगी उससे उपभोक्तावादी-साम्राज्यवादी, संस्कृति को और बढ़ावा मिलेगा. देश में बलात्कार जैसी घटनाएं बढ़ेंगी जिस पर हम रोज रोज हाय-तौबा मचा रहे हैं. इससे आम लोगों की हालत और बदतर होगी, स्थानीय लोगों की जमीन छीनी जायेगी, उनकी रोजी-रोटी खत्म कर दिये जायेगी. आम लोगों के छोटे ढाबों के जगह होटल आ जायेगें, छोटे व्यापार को खत्म कर पूंजीपतियों के मॉल खुल जायेंगे जिनमें हम-आप काम करने को मजबूर होंगे. महिलाओं-लड़कियों को वेश्यावृति के धंधे में धकेला जायेगा और उसको कहा जायेगा विकास हो रहा है. इसी विकास का नतीजा है कि देश के 1 प्रतिशत आबादी के पास 51.5 प्रतिशत सम्पत्ति है तथा 60 प्रतिशत आबादी के पास मात्र 4.7 प्रतिश है. अगर इसी तरह का विकास होता रहा, तो आने वाले समय में यह खाई और चौड़ी होगी. इस तरह के विकास के खिलाफ देश की आम जनता को एक होना चाहिए. क्या यह मांग नहीं करनी चाहिए कि इन पैसों का अस्पताल, विद्यालय और कॉलेज खोले जाएं?