नोटबंदी और रफाल सौदे पर सीएजी को पूर्व नौकरशाहों की खुली चिट्ठी
सीएजी को पूर्व नौकरशाहों की खुली चिट्ठी
देश के शीर्ष पदों पर रहे पूर्व नौकरशाहों ने नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) को खुली चिट्ठी लिखी लिखकर उनसे नोटबंदी एवं रफाल सौदे से जुड़ी अंकेक्षण (ऑडिट) रिपोर्ट को पूरा करने में तेजी लाने का आग्रह किया है. इस चिट्ठी की एक प्रति राष्ट्रपति को भी भेजी गयी है.
रिज़र्व बैंक के पूर्व डिप्टी – गवर्नर रवि वीरा गुप्ता, योजना आयोग के पूर्व सचिव एन. सी. सक्सेना, अंतर्राज्यीय परिषद के पूर्व सचिव अमिताभ पांडे, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के पूर्व महासचिव पी. एस. एस. थामस, उत्तराखंड के पूर्व मुख्य सचिव सुरजीत. के. दास, पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्य सचिव अर्धेन्दु सेन, कर्मचारी चयन आयोग के पूर्व अध्यक्ष एन. के. रघुपति, पंजाब के राज्यपाल के पूर्व सलाहकार एवं रोमानिया के पूर्व राजदूत जे. एफ. रिबेरो, प्रसार भारती के पूर्व सीईओ एवं पूर्व संस्कृति सचिव जवाहर सरकार समेत 60 पूर्व नौकरशाहों के हस्ताक्षर वाली इस चिट्ठी में इस तथ्य को रेखांकित किया गया है कि उक्त अंकेक्षण (ऑडिट) के बारे में स्थिति “साफ़” नहीं है और इसकी रिपोर्ट की प्रति राष्ट्रपति को उपलब्ध करायी जाये.
चिट्ठी में आगे कहा गया है कि “यह धारणा मजबूत होती जा रही है कि मई 2019 में होने वाले आम चुनावों के मद्देनजर सीएजी की ओर से नोटबंदी एवं रफाल सौदे से जुड़ी अंकेक्षण (ऑडिट) रिपोर्ट को जानबूझकर लटकाया जा रहा है ताकि सरकार को इससे होने वाली किरकिरी से बचाया जा सके.”
पेश है पूरी चिट्ठी :
हम अखिल भारतीय एवं केन्द्रीय सेवाओं के पूर्व अधिकारियों का एक समूह हैं. हमलोगों ने अपने कार्यकाल के दौरान दशकों तक केंद्र एवं विभिन्न राज्य सरकारों को अपनी सेवाएं दी हैं. एक समूह के तौर पर, हम यह साफ कर देना चाहते हैं कि हमारा किसी भी राजनीति दल से कोई लेनादेना नहीं है. लेकिन हम वस्तुनिष्ठता, निष्पक्षता और भारतीय संविधान के प्रति निष्ठा रखते हैं. हम देश की विभिन्न संवैधानिक एवं वैधानिक संस्थाओं की स्वतंत्रता एवं विश्वसनीयता को सुरक्षित रखने और उसे आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं.
संविधान सभा में बहस के दौरान, डॉ. बी. आर. अम्बेडकर ने नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक को संविधान की एक अहम कड़ी बताया था. यहां तक कि उन्होंने इसे न्यायपालिका से भी अधिक महत्वपूर्ण माना था. उनका नजरिया सही था क्योंकि सीएजी सार्वजानिक कोष के प्रहरी के तौर पर कार्य करता है और यह सुनिश्चित करना उसका दायित्व है कि प्रत्येक वित्तीय लेनदेन नियम, मंजूरी, प्रावधान और स्वामित्व के अनुरूप हो, और अर्थव्यवस्था, दक्षता और प्रभावशीलता के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित हो. संविधान के अनुच्छेद 148 – 151 और सीएजी (दायित्व, शक्ति एवं सेवा – शर्तें) अधिनियम, 1971 सम्मिलित रूप से उसे कार्यपालिका से स्वतंत्र रखते हैं.
हम नोटबंदी (नवम्बर 2016) और रफाल सौदे (अप्रैल 2015) से जुड़ी अंकेक्षण (ऑडिट) रिपोर्ट को पूरा करने में हो रही अस्वीकार्य एवं अनावश्यक देरी के बारे में अपनी चिंताओं से सीएजी को अवगत कराना चाहते हैं. “द हिन्दू” अखबार में दिनांक 3 मार्च 2017 को छपी “नोटबंदी के प्रभाव का आकलन करेगा सीएजी” शीर्षक ख़बर में पिछले नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के हवाले से कहा गया था कि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक को नोटबंदी के राजकोषीय प्रभाव, खासकर कर राजस्व पर पड़े इसके असर, का आकलन करने का पूरा अधिकार है. पिछले नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने यह भी इंगित किया था कि उक्त अंकेक्षण (ऑडिट) में नोटों की छपाई, भारत की समेकित निधि में रिज़र्व बैंक के लाभांश, बैंकों द्वारा बड़ी मात्रा में निकाले गये आंकड़ों और आयकर विभाग द्वारा संभावित कर चोरी करने वालों की पहचान एवं उनके खिलाफ अनुवर्ती कार्रवाई करने और इस तरह की अनुवर्ती कार्रवाई की प्रभावशीलता पर हुए व्यय को भी शामिल किया जायेगा. उनके इस बयान के बाद लगभग 20 महीने से अधिक का समय बीत चुका है, लेकिन नोटबंदी से जुड़ी अंकेक्षण (ऑडिट) रिपोर्ट का अभी भी इंतजार जारी है.
इसी तरह, रफाल सौदे से जुड़ी सीएजी की अंकेक्षण (ऑडिट) रिपोर्ट को पूरा करने में हो रही देरी भी गौर करने लायक है. जबकि अप्रैल 2015 में इस सौदे की घोषणा के बाद से 42 महीने से अधिक का समय बीत चुका है. “टाइम्स ऑफ़ इंडिया” अख़बार में दिनांक 24 जुलाई 2018 को छपी “59,000 रुपये का रफाल सौदा : तय समयसीमा से चूकी सीएजी की ऑडिट रिपोर्ट” शीर्षक खबर में बताया गया कि यह रिपोर्ट अभी मसौदा स्तर पर ही है और इसे “दिसम्बर में शीतकालीन सत्र से पहले अंतिम रूप दिये जाने की संभावना नहीं है”. “द इंडियन एक्सप्रेस” अखबार में दिनांक 19 सितम्बर 2018 को छपी “रफाल सौदा : कांग्रेस का प्रतिनिधिमंडल
सीएजी से मिला, ‘गड़बड़ियों’ के बारे में रिपोर्ट की मांग की” शीर्षक एक अन्य खबर में बताया गया कि सीएजी ने प्रतिनिधिमंडल को आश्वस्त किया है कि वह “सौदे के एक सभी पहलुओं पर गौर कर रहा है”. लेकिन “बिज़नेस स्टैण्डर्ड” में 23 सितम्बर 2018 को छपी “ अरुण जेटली ने कहा, रफाल सौदा रद्द करने का सवाल ही नहीं, सीएजी की रिपोर्ट का इंतजार” शीर्षक खबर में वित्तमंत्री के हवाले से कहा गया कि इस बात की जांच करना सीएजी पर है कि विमान उंचे दामों पर खरीदे गये या नहीं और “सभी तथ्य और ब्योरे सीएजी के सामने विचार के लिए रखे जायेंगे”. वित्तमंत्री के बयान से ऐसा प्रतीत होता है कि सितम्बर 2018 तक सीएजी द्वारा इस सौदे से जुड़ी फाइलों को देखा जाना बाकी था. लिहाजा, अंकेक्षण (ऑडिट) रिपोर्ट के बारे में सही स्थिति स्पष्ट नहीं है.
टू जी घोटाला, कोयला घोटाला, आदर्श घोटाला, राष्ट्रमंडल खेल घोटाला आदि से जुड़ी सीएजी की रिपोर्ट, जिसने तत्कालीन सरकार के कार्यकलापों के बारे में जन – धारणा को प्रभावित किया था, की चौतरफा तारीफ हुई थी. लेकिन अब एक धारणा यह बन रही है कि मई 2019 में होने वाले आम चुनावों के मद्देनजर सीएजी की ओर से नोटबंदी एवं रफाल सौदे से जुड़ी अंकेक्षण (ऑडिट) रिपोर्ट को जानबूझकर लटकाया जा रहा है ताकि सरकार को इससे होने वाली किरकिरी से बचाया जा सके. सीएजी द्वारा नोटबंदी एवं रफाल सौदे से जुड़ी अंकेक्षण (ऑडिट) रिपोर्ट समय पर पेश करने में असफल रहने को एक पक्षपाती रवैये के तौर पर देखा जा सकता है और इससे इस महत्वपूर्ण संस्था की विश्वसनीयता पर आंच आ सकती है. मीडिया एवं अन्य जगहों पर दावों और प्रतिवादों, आरोपों और कीचड़ उछाले जाने के कारण नागरिक को असलियत का पता नहीं है. हमारा मानना है कि नागरिकों को सीएजी पर ऑडिट रिपोर्टों को समय पर पेश करने के लिए जोर देने का अधिकार है ताकि मतदान के दौरान वे समझदारी से अपना एक विकल्प चुन सकें.
अतीत में, एक तरफ सतही और मामूली मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने और दूसरी ओर अंकेक्षण के दौरान अपनी सीमा से अधिक फैलने के लिए सीएजी की आलोचना लिए की गई है. लेकिन ऐसा मौका कभी नहीं आया कि सीएजी पर भारत सरकार द्वारा प्रभावित होने का आरोप लगा हो या उसे अपने संवैधानिक दायित्वों को समय पर पूरा करने के बारे में याद दिलाने की जरुरत पड़ी हो. यो तो हमें विश्वास है कि सीएजी अपने पूर्ववर्ती अधिकारियों द्वारा स्थापित परंपरा को जारी रखेगी, हम उससे नोटबंदी और राफेल सौदे से जुड़ी अंकेक्षण (ऑडिट) रिपोर्ट को पूरा करने और बिना किसी देरी के पेश करने का आग्रह करते हैं ताकि उन्हें दिसम्बर 2018 में संसद के शीतकालीन सत्र में भारत सरकार द्वारा सदन के पटल पर रखा जा सके.
(इस चिट्ठी की एक प्रति महामहिम राष्ट्रपति को भी भेजी जा रही है)