तृप्ति देसाई मसले ने सबरीमाला विवाद और जटिल बनाया
सुश्री देसाई को हवाई अड्डे पर रोके रखा गया
सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के मुताबिक सबरीमाला मंदिर के दरवाजे महिलाओं समेत सभी श्रद्धालुओं के लिए खोले जाने के घंटों पहले, सामाजिक कार्यकर्ता तृप्ति देसाई ने कोच्ची पहुंचकर शनिवार 17 नवम्बर को मंदिर में प्रवेश करने के अपने इरादे की घोषणा की. इससे केरल में हंगामा मच गया है. राज्य की वाम मोर्चा सरकार, जिसपर पहले से ही कानून एवं व्यवस्था बनाये रखने का दबाव है, के सामने कोच्ची हवाई अड्डे पर टकराव का एक नया मोर्चा खुल गया है.
एक जबरदस्त नाटक में, हवाई अड्डे पर मौजूद टैक्सीवालों ने सुश्री देसाई को शहर में ले जाने से इनकार कर दिया. वहां इकठ्ठा हुए प्रदर्शनकारियों ने जोर देकर कहा कि वे उन्हें हवाई अड्डे से बाहर नहीं निकलने देंगे. शांति सुनिश्चित करने और उस सामाजिक कार्यकर्ता को हवाई अड्डे पर ही रोके रखने के लिए बड़ी संख्या में पुलिस बल को वहां तैनात कर दिया गया. स्वाभाविक रूप से मीडिया ने सुश्री देसाई को घेर लिया, जो लगातार सबरीमाला मंदिर जाने की जिद पर अड़ी हुई थीं और अनुमति मिलने तक वहां से टस से मस होने को तैयार नहीं थीं.
इस विवाद को एक नया मोड़ देते हुए, केरल के वाम मोर्चा के नेताओं ने टेलीविज़न पर आकर इस बात पर जोर दिया कि सुश्री देसाई आरएसएस और भाजपा के इशारे पर काम कर रही हैं. सुश्री देसाई ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया और कहा कि उनका किसी भी राजनीतिक संगठन से जुड़ाव नहीं है. वो तो बस लैंगिक समानता में विश्वास करने वाली एक आम महिला हैं. उनका मिशन यह सुनिश्चित करना है कि सभी धार्मिक स्थानों के दरवाजे महिलाओं के लिए खोले जायें और उनके साथ भेदभाव बंद हो.
सबरीमला मंदिर के दरवाजे महिलाओं के लिए बंद रखने के भाजपा / आरएसएस की मांग का समर्थन करने वाली महिलाओं ने संवाददाताओं को बताया कि वे स्रुश्री देसाई को मंदिर के भीतर कदम नहीं रखने देंगी. एक महिला ने तो जोश में आकर कहा, “हम ऐसा नहीं होने देंगे. वे चाहे हम सब को मार दें, लेकिन आखिरी व्यक्ति के जिंदा बचे रहने तक हम तृप्ति देसाई को वहां घुसने नहीं देंगे. वह सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए मंदिर में जाना चाहती है.”
रजस्वला की उम्र वाली महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में जाने की इजाजत नहीं है. लेकिन सर्वोच्च न्यायालय द्वारा महिलाओं के पक्ष में दिए गये निर्णय का जबरदस्त विरोध हो रहा है. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह जैसे वरिष्ठ नेता प्रदर्शनकारियों के पक्ष में पूरी तरह झुके हुए दिखाई दे रहे हैं. कांग्रेस पार्टी ने भी प्रदर्शनकारियों का समर्थन किया है. श्रद्धालुओं के लिए मंदिर के दरवाजे खोले जाने से पहले इस मसले पर राजनीतिक सर्वानुमति बनाने का केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन का प्रयास एकबार फिर बेकार गया. भाजपा और कांग्रेस, दोनों ने ही बैठक का बहिष्कार कर दिया.
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं ने स्पष्ट किया है कि केरल में उनकी सरकार सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों और भारतीय संविधान को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है. श्री विजयन ने इस आशय का बयान कई बार दिया है और यह साफ़ किया है कि इस बारे में न्यायालय को तय करना है, न कि सरकार को, जोकि संवैधानिक संस्थाओं की रक्षा करने के लिए सत्ता में है. केरल के भीतर उपजी भारी नाराजगी के बावजूद राज्य के मुख्यमंत्री ने अपना रवैया दृढ़ रखा है. इस नाराजगी को अब दक्षिणपंथी ताकतों द्वारा हवा दी जा रही है. इन दक्षिणपंथी ताकतों में कांग्रेस भी शामिल है जो भाजपा की भांति इस विवाद में अपने लिए राजीनीतिक अवसर तलाश रही है.
इस बीच, सर्वोच्च न्यायालय ने 28 सितम्बर को दिये गये अपने आदेश पर रोक लगाने से इंकार कर दिया है और इस मसले पर पुनर्विचार के लिए दाखिल की गयी 48 याचिकाओं पर 22 जनवरी को सुनवाई करेगा.
तृप्ति देसाई के समर्थन में कई अन्य कार्यकर्ता हवाई अड्डे पर इकठ्ठा हुए हैं. और वह मंदिर में घुसने के अपने इरादे पर टिकी हुई हैं. हालांकि उन्हें हवाई अड्डे पर रोके रखा गया है, लेकिन खबरों के मुताबिक श्रद्धालुओं को मंदिर लाने और वहां से वापिस ले जाने का काम फिर से शुरू हो गया. शनि शिंगनापुर मदिर, हाजी अली दरगाह, महालक्ष्मी मंदिर समेत अन्य विभिन्न धार्मिक स्थलों में महिलाओं के घुसने को लेकर किये गये उनके आंदोलन के दौरान उन्हें आरएसएस के साथ जोड़ा जाता रहा है. हालांकि, उनका किसी भी राजनीतिक संगठन से अपने जुड़ाव से इंकार करना जारी है.