संगीनों के साए में पुनर्वास की जनसुनवाई
ताकि लोग इकट्ठे होकर अपनी आवाज न उठा सके
उत्तराखंड के मोरी ब्लॉक में 28 अक्टूबर को इस तरह का हथियारबंद पुलिस के दस्तों का बंदोबस्त किया गया था जैसे कोई बड़ा आतंकवादी हमला होने वाला है।नजारा डरावना था।हथियार बंद पुलिस का इतना बड़ा इंतजाम जन सुनवाई के लिए किया गया था।
उत्तरकाशी जिले के इस छोटे से ब्लॉक में सुपिन नदी पर, गोविंद पशु विहार में बनने वाली जखोल साकरी बांध परियोजना ( 44 मेगावाट) की पुनर्वास संबंधी जन सुनवाई थी। सरकारी आंकड़ों के अनुसार पाव तल्ला, मल्ला, सुनकुंडी, धारा व जखोल आदि मात्र 5 गांव प्रभावित हो रहे हैं ।
किसी भी गांव में लोगों की मांग के अनुसार उनको कागजात न दिए गए ना समझाएं गए। 12 जून 2018 को लोगों के कड़े विरोध के चलते पर्यावरणीय जनसुनवाई रद्द हुई थी।
लोगों की मांग थी कि पर्यावरणीय प्रभाव आकलन रिपोर्ट, पर्यावरण प्रबंध योजना व सामाजिक समाघात आकलन रिपोर्ट उन्हें हिंदी में दिया जाए और व्यवस्थित, निष्पक्ष संस्था , व्यक्तियों द्वारा समझाया जाए। प्रभावित क्षेत्र में मात्र चंद लोग के अलावा तमाम लोग इस बांध परियोजना का विरोध कर रहे हैं।प्रशासन व सतलुज जल विद्युत निगम कंपनी जब पर्यावरणीय जनसुनवाई कराने में सफल नहीं हुए तो उन्होंने सामाजिक समाधान पर आकलन रिपोर्ट पर होने वाली जनसुनवाई का मोरी ब्लॉक में एक केंद्रित आयोजन किया ताकि वे यह दिखा सके की बांध का काम चालू है।
बहुत टालमटोल के बाद सूचना के अधिकार के तहत मिले कागजातों से यह मालूम पड़ता है कि गांव की अशिक्षित महिला प्रधानों को बिना रिपोर्ट पढ़ाये व बिना कोई प्रक्रिया समझाए, कागजों पर हस्ताक्षर ले लिए गए।
सामाजिक समाघात आकलन प्रक्रिया में आवश्यक है कि ग्रामीण स्तर की समितियां बने जो कि नहीं बनाई गई । परियोजना स्तर की जो विशेषज्ञ समिति बनाई गई उसमें टिहरी बांध परियोजना के बड़े अधिकारियों को लिया गया। यह सर्वविदित है कि टिहरी बांध परियोजना में अभी तक पुनर्वास नहीं हो पाया है। टिहरी बांध पुनर्वास निदेशालय के आंकड़ों के अनुसार भी 415 लोग अभी भूमि आधारित पुनर्वास के लिए कतार में खड़े हैं।
पुनर्वास के लिए बनाई गई समिति के ग्रामीण सदस्यों ने यह रिपोर्ट नहीं पढ़ी है। आज की जनसुनवाई किसी तरह संभव हो इसलिए सरकारी स्तर पर लोगों को भ्रमित रखने के प्रयास किए गए। जनसुनवाई प्रभावित गांवों से 40 किलोमीटर दूर मोरी ब्लॉक में रखी गई, जिसके 1 किलोमीटर आगे पीछे पुलिस बैरिकेड था। जिनकी भूमि जा रही है उनकी लिस्ट के अनुसार उनके पास बना करके भेजा गया। इसके अलावा यदि कोई आवश्यक रूप से जीप या कार सड़क से निकल रही थी तो उसमें एक पुलिस वाले को बिठाया गया।
भू अर्जन पुनर्वास और पुनः व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम 2013 का खुले रूप से उल्लंघन किया गया । पहले यह जनसुनवाई 25 अक्टूबर को आयोजित की गई थी किंतु चुनाव के चलते रद्द की गई और 28 नवंबर को पुन: घोषित की गई। प्रशासन ने मात्र जिनकी जमीन जा रही है उनको ही जनसुनवाई में आना है, ऐसा झूठ प्रचारित किया। माटू जन संगठन व अन्य लोगों ने भी पर्यावरण मंत्रालय, जिलाधिकारी व मुख्यमंत्री को पत्र भेजकर अपना विरोध जताया था । किंतु सरकार ने इस पर कोई ध्यान ना देकर पुनर्वास संबंधी जनसुनवाई किसी तरह पूरी की। जन सुनवाई के दौरान भी पाव तल्ला, मल्ला, सुनकुंडी, धारा व जखोल आदि के प्रभावितों ने विरोध पत्र जनसुनवाई में देकर, अपना विरोध दर्ज कराया। 12 जून को स्थगित हुई जनसुनवाई से डरे हुए प्रशासन ने ढेर सारी पुलिस शायद इसीलिए लगाई थी ताकि लोग इकट्ठे होकर अपनी आवाज न उठा सके । सरकार ने कागजों की भरपाई तो कर ली। साथ ही यह बता दिया गया कि बांध का मतलब जबरदस्ती, गैर जरूरी तरह से, लोगों पर सरकारी योजना थोपना है। जिसमें ठेकेदार और सरकारी नुमाइंदे का भला होगा। प्रभावितों की कोई चिंता नहीं, पर्यावरण का कोई सोच नहीं।
अन्य गावों से लोग ना जा पाए इसलिए उत्तराखंड के मुख्य वन संरक्षक का दौरा भी आज ही जखोल में रखा गया। जहां पर लोगों ने उनसे सवाल किया कि हमें एक पेड़ काटने की इजाजत नहीं और आपने कैसे बांध कंपनी को खुलेआम जंगल की जमीन देदी? लोगों ने कहा कि बांध के लिए वन अनापत्ति धोखे से ली गई है। उन्हें रद्द किया जाना चाहिए।
बंदूक और संगीनों से पहाड़ खोदकर बनाए जा रहे इस छोटे से बांध के लिए पूरी सरकार कमर कस के तैयार खड़ी है। बांध कंपनी को हर तरह का संरक्षण है। लोग संरक्षित गोविंद पशु विहार में असुरक्षित बंदूकों के साए में कैद कर दिए गए।