गाय मंत्री और हप्पीनेस मंत्री की हार के मायने
विधानसभा चुनाव – परिणामों के कड़े संकेत
द गार्डियन में प्रकाशित एक समाचार के अनुसार देश में एकलौते गाय मंत्री और खुशी (हैप्पीनेस) मंत्री चुनाव हार गए है. राजस्थान एकलौता ऐसा राज्य था जहाँ गाय मंत्री का पद था और हालिया विधानसभा चुनावों में गाय मंत्री ओटाराम देवासी हार गए. देवासी के कार्यकाल में गायें तो पता नहीं कितनी बचीं, पर विभिन्न गौशालाओं में कभी बाढ़ के कारण तो कभी भूख से या फिर बिजली के झटकों से वे लगातार मरती रहीं. दूसरी तरफ, कई लोगों को गौ - मांस के शक पर भीड़ ने खुलेआम जान से मार डाला. मध्य प्रदेश में देश के एकलौते हैप्पीनेस मंत्री लाल सिंह आर्या थे, वो भी चुनाव हार गए. लाल सिंह पर मर्डर का केस भी चल रहा था. मध्य प्रदेश के लोग कितने हैप्पी (खुश) हुए पता नहीं, पर लाल सिंह खूब फलते - फूलते रहे.
द गार्डियन में छपी एक दूसरी खबर की शरुआत में कहा गया है, प्रधानमंत्री मोदी की पार्टी दो राज्यों में बुरी तरह से हार गयी और तीसरे राज्य में कांटे की टक्कर में पिछड़ गयी. ये परिणाम बताते हैं कि यह पार्टी भी हार सकती है, अजेय नहीं हैं. और ये परिणाम इसलिए और भी गंभीर हैं क्योंकि लोकसभा के चुनाव में 6 महीने से भी कम का समय है. पर, यदि परिणामों की गंभीरता से विवेचना करें तो स्पष्ट है कि इन राज्यों में जीत के बाद भी कांग्रेस का यह अंतिम पड़ाव नहीं है, उसे अभी लम्बा रास्ता तय करना है. उत्तर-पूर्व में कांग्रेस का एकलौता गढ़, मिजोरम, उसके हाथ से फिसल चुका है. कांग्रेस को जल्दी से जल्दी विद्रोह के सुर दबाने पड़ेंगे, जीते हुए राज्यों में चुनावी घोषणाओं को जल्दी ही पूरा करना पड़ेगा, काम के परिणाम दिखाने पड़ेंगे और साथ ही पूरे देश में लोगों के बीच भी जाना होगा.
द गार्डियन के अनुसार, राजस्थान में भाजपा के वोट बैंक में 17 प्रतिशत की कमी हो गयी. मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में यह कमी 12 प्रतिशत रही. प्रधानमंत्री की जीवनी लिखने वाले नीलोत्पल मुखोपाध्याय के अनुसार, वर्ष 2019 के लोक सभा चुनाओं में मोदी को असली चुनौती मिलाने वाली है क्योंकि उनकी पार्टी की हार हिन्दी क्षेत्र के केंद्र में हुए है जो चुनावों में हमेशा निर्णायक प्रभाव डालता है. पिछले लोक सभा के चुनावों में इस क्षेत्र की कुल 65 सीटों में से 62 पर भाजपा विजयी हुई थी. इन राज्यों में भाजपा की हार केवल राज्य सरकारों के निकम्मेपन के कारण नहीं हुए है, बल्कि लोगों का गुस्सा केंद्र सरकार के प्रति भी है.
इंडिपेंडेंट में प्रकाशित एक खबर में भाजपा की हार के चार प्रमुख कारण बताये गए हैं. पहला कारण हिन्दू अतिवादी संगठनों की बढ़ती भूमिका है, जो अपनी मर्जी से किसी की हत्या भी सरेआम कर सकते हैं और सरकार आंखें बंद करके रखती है. सरकार की नीतियों के विरुद्ध आवाज उठाने वाले पत्रकारों और सामाजिक संगठनों को खुलेआम धमकियां देना, उन्हें देशद्रोही जैसा दंड देना और कई बार सरेआम उन्हें मार डालना भी हार के बड़े कारण हैं. इसके अतिरिक्त, केंद्र और भाजपा शासित राज्यों द्वारा तमाम बड़े दावों के बाद भी बेरोजगारी की समस्या का विकराल होना और किसानों की बेहतरी के लिए जमीनी स्तर पर कुछ नहीं करना हार के बड़े कारणों में रहे.
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में ग्रामीण आबादी अधिक है और जानकारों के अनुसार राज्य और केंद्र सरकारों की किसी भी योजना का लाभ गांवों तक नहीं पहुंच रहा है. इन क्षेत्रों में बेरोजगारी की समस्या विकराल स्वरुप धारण कर चुकी है और किसान बेबस एवं लाचार हैं. केंद्र और राज्य सरकारें जनता के बीच जाकर बड़ी घोषणाएं तो करती रही हैं, पर नतीजा कहीं दिख नहीं रहा है. देश की 1.25 अरब आबादी में से 55 प्रतिशत से अधिक कृषि से प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर जुडी है. यह आबादी इस समय देश की सबसे प्रताड़ित आबादी है. पिछले दो वर्षों में जितने भी बड़े आन्दोलन किये गए हैं, सभी किसानों ने ही किये हैं.
राज्य सरकारों पर लोगों का गुस्सा, बेरोजगारी और किसानों की समस्या के बाद भी कांग्रेस की जीत बहुत महान नहीं है. ऐसे में, निश्चित तौर पर कांग्रेस को बहुत मेह्नत करनी पड़ेगी, पर वह मेहनत जमीनी स्तर पर कोई करतब नहीं दिखा रही है. विपक्ष की एकता भी अभी तक मंत्रणा के दौर से बाहर नहीं निकल पायी है. यह भले ही आनेवाला समय बतायेगा कि राहुल गांधी अकेले अपने बूते पर लोकसभा चुनावों में बहुत अच्छा प्रदर्शन दिखा पायेंगे या नहीं, पर आज की हालत निराशाजनक है. दूसरी तरफ, भाजपा कैडर - आधारित पार्टी है और सोशल मीडिया को अपने पक्ष में इस्तेमाल करने में सिद्धहस्त है. इसीलिए इस पार्टी को चुका हुआ समझाना भारी भूल होगी. द गार्डियन, बीबीसी और इंडिपेंडेंट, तीनों ने अपनी खबरों में बताया है कि भाजपा भले ही हार गयी हो, पर नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आयी है.