भारत को चाहिए प्रजातांत्रिक शासन ना कि मजबूत नेतृत्व
भारत को चाहिए प्रजातांत्रिक शासन ना कि मजबूत नेतृत्व
भारतीय वायुसेना द्वारा 26 फरवरी 2019 को पाकिस्तान के बालाकोट पर हमले के बाद से, ऐसा लगता है कि भाजपा, मजबूत नेता और शक्तिशाली भारत को चुनाव में अपना मुख्य मुद्दा बनाने की कोशिश कर रही है. मई 2014 में हुए आमचुनाव में भी मोदी ने अपने 56 इंच के सीने का बार-बार बखान किया था और बताया था कि किस तरह वे कमजोर और धीरे बोलने वाले मनमोहन सिंह से अलग हैं. वायुसेना हमले पर टिप्पणी करते हुए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा, “इस कार्यवाही से जाहिर हुआ है कि भारत, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मजबूत और निर्णायक नेतृत्व में सुरक्षित और निरापद है”. मोदी ने स्वयं विपक्ष पर आरोप लगाया कि वह अपने निहित स्वार्थों के चलते न तो शक्तिशाली भारत चाहता है और ना ही एक मजबूत सेना. ऐसा लगता है कि इस आमचुनाव में भाजपा यह प्रचार जमकर करेगी कि अगर विपक्षी पार्टियों के हाथों में सत्ता गई तो भारत एक कमजोर और असुरक्षित राष्ट्र बन जाएगा और केवल भाजपा और मोदी ही एक शक्तिशाली भारत का निर्माण सुनिश्चित कर सकते हैं.
यद्यपि भाजपा के नेतृत्व वाला एनडीए गठबंधन स्वयं कई पार्टियों का भानुमति का पिटारा है परंतु मोदी, विपक्षी पार्टियों के महागठबंधन बनाने के प्रयासों का मखौल बनाते नहीं थकते. विपक्ष यह सुनिश्चित करना चाहता है कि जहां तक संभव हो, भाजपा-विरोधी मत न बंटें. बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा को महागठबंधन के हाथों मुंह की खानी पड़ी थी. गोरखपुर व कैराना लोकसभा उपचुनाव में सपा, बसपा व रालोद के अनौपचारिक गठबंधन ने भाजपा को पछाड़कर ये दोनों सीटें उससे छीन ली थीं. इसके बाद, भाजपा पांच राज्यों - राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम - में विधानसभा चुनावों में पराजित हुई. इससे गैर-भाजपा पार्टियों को लगा कि अगर वे एक हो जाएं तो भाजपा को हराया जा सकता है. विपक्षी पार्टियों ने देश का विकास करने के मोदी के वायदे के पूरा न होने के साथ-साथ बेरोजगारी, कृषि संकट, किसानों की आत्महत्याएं, रफाल खरीदी में घोटाला, हिन्दुत्ववादी गुंडों की मनमानी, प्रजातांत्रिक संस्थाओं को कमजोर करने के प्रयास, जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद पर नियंत्रण पाने में असफलता और देश की बहुवादी और विविधवर्णी संस्कृति के खतरे में पड़ जाने जैसे मुद्दे उठाए, जो लोगों के रोजमर्रा के जीवन और रोजीरोटी की समस्याओं से जुड़े हुए थे.
बालाकोट में वायुसेना की कार्यवाही के पूर्व तक प्रधानमंत्री अपने “करिश्माई” व्यक्तित्व को चुनावी मुद्दा बना रहे थे. वे स्वयं को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत कर रहे थे जिसे नामदार वंश के लोग नीच, चायवाला इत्यादि कहकर अपमानित करते हैं. वे उन पार्टियों द्वारा महागठबंधन बनाने के प्रयासों का मजाक भी उड़ा रहे थे, जो भारत को एक बहुवादी, प्रजातांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष देश बनाना चाहती हैं, जो समानता, सामाजिक न्याय और नागरिकों के मूलाधिकारों की रक्षा के सिद्धांतों पर आधारित होगा. दूसरे शब्दों में, मुकाबला, मोदी के करिश्माई और लोकलुभावन नेतृत्व और संविधान, संवैधानिक मूल्यों और प्रजातांत्रिक मूल्यों की रक्षा के बीच होता दिख रहा था. संसद में प्रधानमंत्री ने महागठबंधन को महामिलावट बताते हुए कहा कि उसका एकमात्र एजेंडा उन्हें पद से हटाना है क्यांकि वे भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं. परंतु जैसा कि पहले कहा जा चुका है, बालाकोट हमले के बाद, भाजपा ने अपनी चुनावी रणनीति में परिवर्तन कर उसे मजबूत नेता और शक्तिशाली भारत पर केन्द्रित कर दिया है.
शक्तिशाली देश
मजबूत नेता और शक्तिशाली देश का अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग अर्थ हो सकता है. उदारवादियों और वामपंथियों के लिए शक्तिशाली देश वह है जिसके नागरिक स्वस्थ, शिक्षित, अपने कार्य में कुशल और उत्पादक हों, जहां राज्य, हर नागरिक के मूलाधिकारों की रक्षा करे और यह सुनिश्चित करे कि उनकी सभी मूल आवश्यकताएं पूरी हों.
हमारे संविधान की दृष्टि से एक आदर्श राज्य कैसा होना चाहिए, इसका विवरण राज्य के नीति निदेशक तत्वों संबंधी अध्याय में दिया गया है.
गांधीजी के अनुसार एक शक्तिशाली देश वह है जिसमें असली सत्ता लोगों के हाथों में हो और जहां सत्ताधारी, विभिन्न संस्थाओं के जरिए लोगों के प्रति जवाबदेह हों.
दक्षिणपंथियों, जिनमें साम्प्रदायिक राष्ट्रवादी, नस्लवादी और नवउदारवादी शामिल हैं, के लिए शक्तिशाली देश का अर्थ है एक केन्द्रीयकृत, एकाधिकारवादी राज्य, जो देश की सुरक्षा सुनिश्चित करने के बहाने नागरिकों की स्वतंत्रताओं को कुचले और जनता के एक हिस्से के विशेषाधिकारों, संस्कृति, विरासत, भाषा, परंपराओं, प्रथाओं या धर्म की रक्षा करे. वे चाहते हैं कि शक्तिशाली राज्य, नागरिकों की स्वतंत्रताओं को सीमित करे, विशेषकर उन नागरिकों की, जो विशेषाधिकार प्राप्त वर्गों से अलग हैं. उनके अनुसार, एक शक्तिशाली देश वह है जिसमें राज्य को नागरिकों को मनमाने ढ़ंग से गिरफ्तार करने, सजा देने और आतंकित करने की शक्ति हो; जहां राज्य, लोगों के सांस्कृतिक विकल्पों को सीमित करे; जहां राज्य यह तय करे कि कौन-से धार्मिक आचरण जायज हैं और कौन-से नहीं; क्या पहनना और क्या खाना उचित है और क्या नहीं और यह भी कि लोग किससे शादी करें, अपनी आजीविका के लिए क्या करें और यहां तक कि उनकी सांस्कृतिक अभिव्यक्ति कैसी हो. राज्य, संस्कृति की शुद्धता की रक्षा करेगा और देश की संस्कृति को एकसार बनाने का प्रयास करेगा. वह असंतुष्टों और विरोधियां पर तरह-तरह के प्रतिबंध लगाएगा और अतीत व प्राचीन इतिहास का महिमामंडन करेगा.
दक्षिणपंथियों के लिए शक्तिशाली देश वह है जहां समाज के निचले तबके पर ज्यादा से ज्यादा कर लादे जाएं और बड़े उद्योगपतियों और कारपोरेटों पर कम से कम टैक्स हो ताकि वे भारी मुनाफा कमा सकें और संपत्ति उनके हाथों में केन्द्रित हो सके. “रोटी या बंदूक” में से दक्षिणपंथी हमेशा बंदूक को चुनते हैं. उनके लिए आम लोगों की ज़रूरतों से ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं हथियार और सेना का आधुनिकीकरण. कुल मिलाकर, वे एक कल्याणकारी राज्य के विरोधी होते हैं.
नागरिकों के लिए सांस्कृतिक एकाधिकारवादी राज्य को स्वीकार्य बनाने के लिए तीन रणनीतियां अपनाई जाती हैं. पहली है सांस्कृतिक दृष्टि से ‘दूसरे’ समुदाय या देश का डर पैदा करना और यह कहना कि ‘दूसरा’ उनकी श्रेष्ठ व महान संस्कृति के अस्तित्व के लिए खतरा है.
दूसरी रणनीति है ‘दूसरे’ को बदनाम करने के लिए उसे राष्ट्रद्रोही, हिंसक, आतंकवादी, विदेशी, अवैध प्रवासी, गंदा इत्यादि बताना. ‘दूसरे’ के लिए जो शब्द प्रयुक्त किए जाते हैं उनमें म्लेच्छ, हब्शी, पाकिस्तानी, काकरोच, नाली का कीड़ा इत्यादि शामिल हैं. तीसरी रणनीति है, सांप्रदायिक और नस्लवादी राष्ट्रवाद, नस्लवाद, धरती पुत्र आदि के सिद्धांत का अवलंबन, जो किसी राष्ट्र, नस्ल, भाषाई समूह या धार्मिक समुदाय के विशेषाधिकारों को औचित्यपूर्ण बताते हैं.
भाजपा का शक्तिशाली भारत
भाजपा और उसके नेता, इन तीनों ही रणनीतियों का उपयोग करते हैं – अर्थात, विचारधारा, आतंकित करना और बदनाम करना. हिन्दू राष्ट्र की विचारधारा, हिन्दू समुदाय के विशेषाधिकारों की हामी है और गैर-हिन्दुओं से अपेक्षा करती है कि वे हिन्दू धर्म और संस्कृति की महिमा को स्वीकार करें या फिर दूसरे दर्जे के नागरिक के रूप में रहने के लिए तैयार रहें (गोलवलकर). लव जिहाद को मुद्दा बनाया जाना, मुसलमानों की जबरन नसबंदी करने की मांग और हिन्दू महिलाओं से कम से कम चार पुत्रों को जन्म देने का आव्हान, डर पैदा करने के अभियान का हिस्सा हैं. जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब, सन 2002 की अपनी गौरव यात्रा के दौरान, उन्होंने मुसलमानों पर खरगोशों की तरह बच्चे जनने और चार बीवियां रखने और 25 बच्चे पैदा करने का आरोप लगाया था. उनके अनुसार, हिन्दू हम-दो-हमारे-दो आकार के परिवार पसंद करते हैं.
भाजपा के अनुसार, नागरिकों में देशभक्ति का भाव जगाकर हिन्दू राष्ट्र को मज़बूत किया जा सकता है. पार्टी का मानना है कि बार-बार राष्ट्रीय ध्वज को देखने और राष्ट्रगान व राष्ट्रगीत गाने और सुनने से लोग देशभक्त बनेंगे. इसलिए, भाजपा ने थियेटरों में फिल्म के प्रदर्शन से पहले, राष्ट्रगान का गायन अनिवार्य करने के उच्चतम न्यायालय के निर्णय का स्वागत किया था. न्यायालय ने बाद में अपना यह निर्णय वापस ले लिया. स्मृति ईरानी के मानव संसाधन मंत्री के रूप में कार्यकाल के दौरान, केंद्रीय विश्वविद्यालयों को निर्देश दिया गया था कि वे अपने प्रांगण में 210 फीट ऊँचा खम्बा लगाकर, उस पर राष्ट्रध्वज फहराएं. स्पष्टतः, झंडे को देखकर विद्यार्थी देशभक्त बनते! जेएनयू के कुलपति ने तो विश्वविद्यालय में एक टैंक ही खड़ा करवा लिया!
देश के हर कोने में राष्ट्रगीत गाने, राष्ट्रीय ध्वज फहराने और टैंक खड़े करने में कोई समस्या नहीं है. समस्या तो लोगों में देशभक्ति का भाव विकसित करने में भी नहीं है, बशर्ते उसका अर्थ यह हो कि देश का हर नागरिक, अपने साथी नागरिकों की बेहतरी और भलाई के लिए अपना जीवन कुर्बान करने के लिए तैयार हो. राष्ट्रीय ध्वज को निहारने, राष्ट्रगान गाने और सेना के टैंकों का दर्शन करने से लोग, ज़रूरतमंदों, वंचितों और दमितों के प्रति संवेदनशील बनेंगे या नहीं, यह कहना मुश्किल है. परन्तु भाजपा को उम्मीद है कि सेना के टैंकों को देख कर लोग डरेंगे, विशेषकर वे लोग जो वंचित, दमित और ज़रुरतमंद हैं. वे चुपचाप और बिना कोई प्रश्न उठाये, सत्ता के सामने अपना सिर झुका देंगे और अपनी स्थिति को अपनी किस्मत मानकर संतोष कर लेंगे. समस्या भाजपा-मार्का देशभक्ति है, जो मांग करती है कि हर नागरिक को सत्ताधारियों के निर्णय को स्वीकार करना चाहिए, चाहे वे कितने ही मनमाने, भेदभावपूर्ण और संवैधानिक प्रावधानों और प्रजातान्त्रिक सिद्धांतों के खिलाफ क्यों न हों.
मज़बूत नेता ने अचानक तय किया कि देश की 86 प्रतिशत मुद्रा को कागज़ के टुकड़ों में बदल दिया जाए. उससे जनता को क्या परेशानी होगी, इससे नेता जी को कोई मतलब नहीं था. अब हमें पता चल रहा है कि भारतीय रिज़र्व बैंक को कतई यह भरोसा नहीं था कि नोटबंदी के घोषित उद्देश्य पूरे होंगे; अर्थात भ्रष्टाचार, काला धन और आतंकवाद कम होगा. भाजपा-मार्का देशभक्ति की यह दरकार थी कि लोग बिना चूंचपड़ किये, मज़बूत नेता के मनमानीपूर्ण निर्णयों से उन्हें होने वाली परेशानियों को सहें. मज़बूत नेता ने उच्च दरों के साथ, जीएसटी देश पर लाद दिया. मज़बूत नेता ने हमें बताया कि तक्षशिला, बिहार में है और सिकंदर महान, अपनी सेना के साथ, बिहार तक पहुँच गया था. जाहिर है कि हमें यह मान लेना चाहिए. मज़बूत नेता ने हमें जानकारी दी कि भारत में 5,000 साल पहले प्लास्टिक सर्जरी होती थी और भगवान गणेश इसका प्रमाण हैं. हमारी भला क्या जुर्रत कि हम इस पर शक करें. मज़बूत नेता ने यह भी बताया कि प्राचीन काल में हिन्दुओं को आधुनिकतम तकनीकों का ज्ञान था और वे मिसाइलों का इस्तेमाल करते थे. अगर नेता जी यह कहते हैं, तो यह सच ही होगा. अगर हम इस पर बहस करेंगे, तो हमारी देशभक्ति संदेह के घेरे में आ जाएगी! रफाल खरीदी पर कोई प्रश्न नहीं उठाये जाने चाहिए और बालाकोट के हमले की सफलता पर किसी तरह का संदेह करने की कोई गुंजाईश ही नहीं है.
एक मज़बूत और शक्तिशाली नेतृत्व का अर्थ है, प्रजातान्त्रिक प्रक्रियाओं को दरकिनार करते हुए, निर्णय लेने के अधिकार का केन्द्रीयकरण. निर्णय लेने की केन्द्रीयकृत प्रक्रिया अपेक्षाकृत तेज हो सकती है परन्तु वह मनमानीपूर्ण और नुकसानदेह भी हो सकती है. और जब कोई निर्णय गलत साबित होता है तो मज़बूत नेता और उनके दरबारी, जनता को यह समझाने में काफी संसाधन और समय खर्च करते हैं कि वह निर्णय कितना क्रान्तिकारी और शानदार था. नोटबंदी के बाद, कई महीनों तक देश को यह बताया जाता रहा कि यह निर्णय कितना उचित था और कैसे इससे काले धन, भ्रष्टाचार और नकली नोटों की समस्या से निजात पाने में मदद मिली है. इसी तरह, जीएसटी को स्वतंत्रता के बाद का सबसे बड़ा आर्थिक सुधार बताया गया और उसके महत्व को रेखांकित करने के लिए, आधी रात को संसद का सत्र आयोजित किया गया. मज़बूत नेता के मज़बूत सिपहसालार ने घोषणा की कि बालाकोट हमले में 250 आतंकवादी मारे गए. भारतीय वायुसेना के प्रमुख ने एक प्रेस कांफ्रेंस को बताया कि उनका काम शवों की गिनती करना नहीं है और वे केवल यह कह सकते हैं कि निर्धारित ठिकानों पर अचूक निशाना लगाया गया. इसी तरह, आधार को देश पर लाद दिया गया और इस बात की चिंता ही नहीं की गयी कि इससे नागरिकों के निजता के अधिकार का कितना उल्लंघन होगा और करोड़ों नागरिकों की निजी जानकारियां कितनी सुरक्षित रहेंगीं.
प्रजातान्त्रिक भारत
मज़बूत नेतृत्व का भ्रम फैला कर भोले-भाले नागरिकों को यह समझाया जा सकता है कि भारत अब दुनिया के सबसे शक्तिशाली देशों में से एक है और ‘ईज ऑफ़ डूइंग बिज़नेस’ में उसका कोई जवाब ही नहीं है, फिर भले ही बच्चे भूख से मरते रहें और कर्ज़ के बोझ तले दबे किसान आत्महत्या करते रहें.
हमें मज़बूत नेता की कोई ज़रूरत नहीं है. हमें प्रजातान्त्रिक शासन की ज़रुरत है, जहाँ पारदर्शिता हो, राज्य के विभिन्न अंगों की मनमानी पर रोक हो और निर्णय लेने से पहले, नागरिकों, और विशेषकर उन लोगों, जिन पर उसका प्रभाव पड़ने वाले है, से परामर्श किया जाये. व्यापक विचार-विनिमय से निश्चित रूप से निर्णय लेने की प्रक्रिया धीमी होगी परन्तु उससे यह सुनिश्चित होगा कि निर्णय मनमानीपूर्ण न हों और ना ही वे किसी विशेष तबके को लाभ पहुँचाने के लिए हों. प्रजातान्त्रिक व्यवस्था में सबसे कमज़ोर और सबसे गरीब व्यक्ति की भी निर्णय प्रक्रिया में हिस्सेदारी होनी चाहिए.