संवैधानिक संस्थाओं की साख दांव पर !
प्रशासनिक अमले में विश्वसनीयता की जद्दोजहद
“यह दबाव या दमन का मामला नहीं है. यह मामला आतंक का है. प्रशासन में आतंक छाया हुआ है. किसी में बोलने की हिम्मत नहीं है. समूचा प्रशासन कुछ लोगों के आदेश पर चलता है, बाकी सभी लोग केवल अपने स्थान पर बैठे हुए हैं. उनकी चलती नहीं है. किसी में बोलने का हौसला भी नहीं है.” देश के वर्तमान राजनीतिक एवं प्रशासनिक परिदृश्य के बारे में पूछे जाने पर नाम न छापने की शर्त पर एक अवकाश प्राप्त नौकरशाह ने यह जवाब दिया.
उनसे यह पूछा गया था कि क्या कारण है कि दो दिनों के अंतराल में देश की कुछ संवैधानिक संस्थाओं ने ऐसे निर्णय और मत दिये, जो मोदी सरकार की नीतियों के विरोध में है. ये वही संस्थान थे, जो इससे पहले निरंतर सरकार के पक्ष में ही अपने निर्णय दे रहे थे !
मसलन, सुप्रीम कोर्ट ने रफाल मामले में सरकार की दलील को नकारते हुए यह कहा कि जिन दस्तावेजो को सरकार चोरी किया हुआ बता रही है, उन्हें भी सुनवाई के समय कोर्ट संज्ञान में लेगा. सरकार ने खुद भी इन दस्तावेजों के सही होने की तस्दीक की है.
दूसरा मामला चुनाव आयोग का है. आयोग ने नरेंद्र मोदी पर बनी फिल्म को दिखाने से यह कहकर मना किया है कि इससे बराबरी के सिद्धांत का उल्लंघन होगा और एक पक्ष को अनुचित लाभ मिलेगा. इसी कारण नामो टीवी पर चुनावों तक राजनैतिक समाचार देने भी पर रोक लगा दिया गया है. फ़िलहाल केवल वही कार्यक्रम दिखाए जा सकते हैं, जिनकी अनुमति पहले से ले ली गई हो.
चुनाव में चंदा देने वालों के नाम उजागर करने या गुप्त रहने देने के मसले पर चुनाव आयोग और सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक दूसरे के उलट लाइन ली. इस मसले पर बहस के दौरान सरकार इस पक्ष में थी कि चंदा देने वालों के नाम गुप्त रहने चाहिए. जबकि चुनाव आयोग ने साफ कहा कि वोटर को न केवल यह मालूम होना चाहिए कि वह किस पार्टी को वोट दे रहा है, बल्कि उसे यह भी पता होना चाहिए कि उस पार्टी को पैसा कहाँ से आया और किस - किस ने दिया. सुप्रीम कोर्ट को इस पर फैसला देना है.
एक सवाल यह भी था कि अचानक मोदी सरकार के विपरीत जो फैसले आने शुरू हुए हैं, इसका मतलब कहीं यह तो नहीं है कि भारत की असली सत्ता (deep state ) मोदी के विरोध में चली गयी है और उस विरोध की अभिव्यक्ति विभिन्न संस्थानों द्वारा दिये गये फैसलों से हो रही है?
इन पूर्व नौकरशाह महोदय ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कोई फैसला नहीं दिया है, उसने केवल यह कहा कि दस्तावेजो को भी संज्ञान में लिया जायेगा. उन्होंने कहा, “दरअसल सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग, दोनों भारी दबाव में हैं. उनकी साख का सवाल खड़ा हो गया है. उन्हें यह सिद्ध करना है कि वे निष्पक्ष हैं. यदि वे ऐसे ही एकतरफा फैसले देते रहे, तो निस्संदेह एक संस्थान के बतौर वे समाप्त हो जायंगे. अपनी साख बचाने के लिए उन्हें ऐसा करना पड़ रहा है. नहीं तो, ऐसा कोई नहीं है जो इस सरकार के विरोध में अंदर ही कोई मोर्चा शुरू कर दे. इस समय प्रशासन में आतंक व्याप्त है.”
एक अन्य नौकरशाह ने यह तो माना कि हाल के इन फैसलों का आना अनहोनी है, लेकिन यह किसी गहरी साजिश का हिस्सा है जिसका लक्ष्य मोदी को हटाया जाना है. हालांकि यह किसकी साजिश का हिस्सा है, इस पर उन्होंने अनभिज्ञता प्रगट की . यह तो अब आनेवाले दिनों में ही साफ हो पायेगा कि ये फैसले किसी बड़ी योजना के हिस्सा थे या केवल साख बचाने के तरीके थे.