महिला आरक्षण की सुगबुगाहट
राजस्थान में मुस्लिम महिलाओं से भी सियासत की तरफ देखने की अपेक्षा
महिला आरक्षण की सुगबुगाहट के साथ ही मुस्लिम समुदाय के बीच यह सवाल उठ रहे हैं कि उनके बीच आत्म निर्भर महिलाओं की राजनीति में बेहद अभाव है। महिलाओं को सक्रिय करने के लिए मुस्लिम युवा पीढ़ी विचार करने लगी है। राजस्थान मेंपंचायत राज , सहकारी समिति, मंडी व स्थानीय निकाय के चुनाव सहित राजस्थान के अन्य विभागीय चुनावों मे महिलाओ का आरक्षण है और विधायिका में भी महिलाओं के लिए आरक्षण होने की सम्भावना के बावजूद मुस्लिम समुदाय की स्वयं पोषित शिक्षित महिलाओं का सियासत मे आने का सिलसिला बदस्तूर अभी बना नही है। अधिकांशतः महिला आरक्षण पर चुनी गई मुस्लिम महिला प्रतिनिधि भी डमी जन प्रतिनिधि के तौर पर काम करती महसूस की जाती है। असल काम उनके पति या फिर घर के दूसरे पुरुष प्रतिनिधि ही अंजाम देते है।
हालांकि विधानसभा मे बतौर सदस्य पहुंचने के लिये महिला आरक्षण नही होने के बावजूद कभी कभार मुस्लिम महिलाऐ विधानसभा की सदस्य बनती रही है। जिनमे से जकीया इनाम, हमीदा बेगम व नसीम अख्तर तो प्रदेश में मंत्री भी रह चुकी है। यह तीनो कांग्रेस की टिकट पर विधायक बनी एवं कमोबेश आज भी सियासत की पटरी पर दौड़ लगा कर फिर से टिकट पाने की जूगाड़ मे संघर्ष करती नजर आती है। इनके अलावा भाजपा सरकार की दया से मदरसा बोर्ड चेयरमेन मेहरुन निशा भी बनी हुई है। उक्त मुस्लिम सियासी महिलाओं के अलावा प्रदेश के उपक्रमों मे महिला आरक्षण होने पर भी अनेक मुस्लिम महिलाओं का जनप्रतिनिधि बनकर उभरना हर समय रहता आ रहा है। महिला आरक्षण का लाभ लेकर सीकर जिले के बेसवा गावं की सरपंच बनी जरीना खान शायद प्रदेश की एक मात्र स्वयं पोषित जनप्रतिनिधी होगी जो पंचायत का सारा काम स्वयं के विवेक से पंचायत क्षेत्र के विकास के लिये घर से लेकर सभी सरकारी कार्यालय तक खूद दौड़ लगाकर करती है। उच्च शिक्षित व व्यवहारिक तौर पर परिपक्व होने के कारण सरपंच जरीना खान ने प्रदेश व केन्द्र सरकार की प्रत्येक योजनाओ का लाभ के अलावा विधायक व सांसद निधि कोश का लाभ पंचायत को दिलवाकर उसे गा्ंव की बजाय कस्बे का रुप दे डाला है।
मुस्लिम पुरुषों को भी रुढिवादी सोच को छोड़कर बडा दिल करते हुये बीना नाकारात्मक सोच के कम से कम जरीना खान जैसी प्रदेश मे हजारों शिक्षित व व्यवहारिक ज्ञान से परिपूर्ण महिलाओं को सियासत मे आगे बढने के अवसर देने मे पूरा सहयोग देना ही चाहिये। अन्यथा विधायिका मे जल्द आरक्षण मिलने के जो असार नजर आ रहे है। वो अगर सच हुये तो मुसलमानों के हाथ मे क्या होगा?