संदर्भ सबरीमाला : औरत अछूत कैसे?
संदर्भ सबरीमाला : औरत अछूत कैसे?
‘औरत’ एक ऐसा शब्द जिससे हम रोज रु-ब-रु होते हैं| औरत को देवी, शक्ति, शान्ति, सुरक्षा, प्रेम का प्रतीक माना जाता है| सच यह भी है कि औरत इस देश में सबसे ज्यादा प्रताड़ित होती है| यह प्रताड़ना घर से लेकर समाज में कहीं भी देखी जा सकती है| औरत और पुरुष एक समान होते हैं यह हम अपने जीवन में कितनी बार सुनते हैं पर शायद ही इसपर कभी अमल किया गया हो| ऐसा क्या है जो औरत को पुरुष से अलग करता है? औरत जन्म देने और पुरुष उस जन्म में सहयोग देने का काम करता है| औरत वह है जो अपनी किशोरावस्था से जन्म देने की इस मानसिक, शारीरिक पीड़ा को सहन करती है| महिना शुरू होने से लेकर हर महीने वह शारीरिक, मानसिक, आर्थिक(क्योंकि उसे इन कष्टकर दिनों में भी अपने काम पर जाना पड़ता है), सामाजिक तनावों को झेलती है| 45-55 के बीच जब महावरी ख़त्म होती है (मोनोपोज) तब और उसके बाद उसे कई तनाव झेलने पड़ते हैं| चिड़चिड़ापन, थकान, कमर, पेट, पैरों में दर्द, रक्त की कमी, असंतुलित भोजन के कारण कमजोरी, वमन यह सभी शारीरिक परेशानियां हैं जो प्राय: हर स्त्री झेलती है|
औरत इस समाज में दोयम दर्जे का स्थान रखती है| जो हैसियत इस देश में दलितों की है उसके बराबर औरत को भी देखे तो कोई विशेष अंतर नहीं दिखाई देगा| बस फर्क सिर्फ इतना है कि कि दलित किसी विशेष स्थान पर नहीं जा सकते और आपको औरत हर घर में मिल जाएगी| दलित समाज में अस्पर्शनियता झेल रहे हैं तो स्त्री घर और बाहर दोनों में इस दंश को झेलती है| महावरी के दिनों में स्त्री को घर में पूजा पाठ करने की मनाही होती है| मंदिर में रखी मूर्तियों को वह खाना नहीं दे सकती| कोई भी धार्मिक काम नहीं कर सकती|मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकती, पूजा पाठ के किसी काम में नहीं जा सकती| बच्चा पैदा होने के कुछ समय तक वह अछूत रहती है| महावरी के दिनों में उससे विशेष सावधानी बरती जाती है| मानो महावरी न हुई कोई घृणा की चीज हो गई जिससे अछूत रहने की जरूरत है| भारत देश में कुछ मंदिर ऐसे भी है जहाँ स्त्री का प्रवेश वर्जित है| शनि मंदिर में पंडितों व पूजा करने आने वाले पुरुषों के लिए एक विशेष परिधान का प्रचलन है जिसमें पुरुष कमर से नीचे एक कपड़ा लपेटते हैं| स्त्री ऐसा करने में असमर्थ है इसलिए वहां पूजा करने का अधिकार सिर्फ पुरुष वर्ग के पास है| नियम ऐसे बना दो कि किसी के कहने की जरूरत नहीं स्त्री अपने आप उन चीजों से दूर हो जाए| ऐसा ही एक मंदिर है सबरीमाला जिसमें प्रवेश पाने की जदोजहद स्त्रियाँ कुछ समय से कर रही हैं| बाबा साहब आंबेडकर ने अछूतों के मंदिर प्रवेश के लिए एक पूरा आन्दोलन चलाया था| बात यह नहीं है कि एक दलित / स्त्री को भगवान की पूजा करनी चाहिए या नहीं बल्कि प्रश्न यह है कि सार्वजनिक कहलाए जाने वाले यह स्थान विशेष वर्ग से परहेज क्यों रखते हैं? क्या वह स्त्री या दलित समुदाय, जिनका आपकी नजर में कोई मूल्य नहीं है, जिनपर आपने आज तक शासन किया है, इतने शाक्तिशाली हैं कि उनके जाने से आपका सर्वशक्तिमान ईश्वर अछूत हो जाएगा? यदि स्त्री के प्रवेश मात्र से कोई मंदिर अपवित्र हो सकता है तो सारे मंदिर अपवित्र पहले से ही हैं| सभी मंदिरों में कोई न कोई देवी जरुर होती है| देवी महिला है इसलिए वह भी महीने की प्रक्रिया से गुजरती होगी| स्त्री यदि मंदिर में प्रवेश नहीं पा सकती तो उन देवियों की मूर्तियों को मंदिरों में रखे जाने का क्या औचित्य है? स्त्रियों से मंदिरों की पवित्रता को बचाना है तो देवियों को भी मंदिरों से बाहर निकाल देना चाहिए।
कितनी अजीब मानसिकता है स्त्री क्योंकि उसको महावरी जैसे प्राकृतिक घटना से गुजरना पड़ता है अपवित्र है| और उसी स्त्री के गर्भ से निकले सभी पुरुष पवित्र हैं| यदि यह रक्त अपवित्र है तो सभी पुरुषों का सृजन अपवित्रता से ही हुआ है और इस तर्क के आधार पर कोई भी पुरुष मदिर में जाने योग्य नहीं हैं| मंदिर को बनाने के लिए स्त्री मजदूर भी लगी होगीतो यह अपवित्रता मंदिर की ईटों में बसी है। तब तो सभी मंदिरों को तोड़ देना चाहिए| पुरुष समाज द्वारा ही उनका पुन:निर्माण हो| यदि मंदिर में पुरुष देवता की मूर्ति है तो वह भी तोड़ने योग्य है क्योंकि पुरुष ने स्त्री के गर्भ से जन्म लिया है।स्त्री अपवित्र है तो पुरुष देवता कैसे पवित्र रह सकता है? यदि देवता अपवित्र है तो उसकी पूजा करने वाला पुरुष भक्त भी अपवित्र हुआ| जब सभी अपवित्र हैं तो यह मंदिर प्रवेश पर इतना बवाल क्यों? लेकिन पुरुष कभी स्वयं को अछूत नहीं कहता, यह पद सिर्फ स्त्री के लिए है| इसका कारण है समाज में व्याप्त पितृसत्ता|
वास्तव में पवित्र-अपवित्र की यह मानसिकता एक मानसिक बीमारी के अलावा कुछ और नहीं है| किसी को सार्वजनिक रूप से इतना जलील कर दो कि वह अपने आत्मविश्वास को खो दे| यह शोषण दलित और स्त्री के साथ लगातार चल रहा है| हम पढ़ लिख कर आगे आये हैं| ब्राहमणवादी पुरुष सत्तात्मक समाज इस बात को सह नहीं पा रहा है| इसलिए बार-बार इस तरह की सोच से इन दोनों वर्गों का मनोबल कम करने पर लगा है|
सबरीमाला में कोर्ट के आदेश के बाद भी महिलाओं का प्रवेश वर्जित बना हुआ है| पिछले दिनों दो महिलाओं ने इस मंदिर में प्रवेश पाने की कोशिश की जिसका परिणाम एक स्त्री की हत्या में हुआ| केरल में आई बाढ़ को सबरीमाला में महिला प्रवेश से जोड़ा गया| मंदिर, पाठशाला, अस्पताल, अदालत यह सभी जगह सार्वजनिक हैं| किसी वर्ग विशेष को इनसे वंचित करना न मानवीय है, न सवैधानिक|