मुंबई के हज़ारों गरीब बारिश के मौसम में सड़क पर उतर कर आंदोलन कर रहे हैं। वे रहने के लिए घर और जीने का अधिकार का चाहते हैं| इनकी शिकायत है एक अच्छी खासी तादाद में लोगों के घरों को उजाड़कर माहूल जैसे पूर्णतः प्रदूषित क्षेत्र में बसाया गया जहां उन्हें बीमारी और मौत के कगार पर धकेलने जैसे हालात मिले हैं। 29 जून को जुलूस में शामिल हज़ारों लोगों में भीमछाया और मंडाला जैसे बस्तियों वे लोग थे जिनके घर उजाड़े गए है और माहूल से महिलाओं ने भी बड़ी संख्या में इस प्रदर्शन में हिस्सा लिया।

कर्नाक बन्दर से निकला हुआ जुलूस जब आज़ाद मैदान पहुंचा तो भारी बरसता के बावजूद भी लोग वहां डेट रहे | लोगों ने पूरे दिन भर अपनी कहानी, दर्द और समस्याएं सुनाई। टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज की अध्यापिका स्वाति बैनर्जी ने अनुभवों की सुनवाई करती रहीं | मुख्यमंत्री और महाराष्ट्र के शिक्षा मंत्री एवं मुंबई के डीपीसी के चेयरमैन विनोद तावड़े एवं मुंबईमहानगरपालिका के आयक्त अजय मेहता के साथ मेधा पाटकर के साथ १२ प्रतिनिधियों के समूह ने इन सभी मसलों पर बातचीत की। प्रतिनिधियों के समूह ने कहा कि निम्न मांगों पर तत्काल कार्रवाई की जानी चाहिए।

मुंबई की तान्सा पाईपलाइन के इर्द गिर्द की बस्तियों को, पाईपलाइन के लिए निवासियों से ख़तरा बताकर जिन्हें माहुल गाँव के पास बसाया गया है ,ऐसे करीबन 5000 परिवार आज मौत की कगार पर धकेले गए हैं | यहाँ कोई सुविधा नहीं हैं तो इसे पुनर्वास 'कहाँ' और कैसे माना जा सकता है ? वहाँ एचपीसीएल, बीपीसीएल तेलशोधक जैसी सरकारी कंपनियों के अलावा सीलॉर्ड जैसी निजी कम्पनियों की भरमार से, इस "औद्योगिक क्षेत्र" में पुनर्वास के नाम पर प्रदूषण का खतरा मोल लेकर जिन्हें बसाया गया ,उनकी कीमत पर डीबी रीयलिटी जैसे बिल्डर को करोड़ों का टैक्स में लाभ मिल गया। यह हकीकत, एसआरए के गैर कानूनी कृत्य के रूप में 2017 के कैग रिपोर्ट में आई है | लेकिन यहाँ पिछले 4 सालों में 100 से अधिक लोगों की मृत्यु हो गयी | हर परिवार में बीमारी छायी हुई है |टी.बी., चर्मरोग, लकवा, श्वसनरोग फैले और और फैलते जा रहे हैं |राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण की सिफारिशों पर अमल नहीं किया गया | डॉक्टर्स की कई रिपोर्ट्स सच्चाई उजागर कर चुकी हैं । इसके बावजूद शर्मनाक तरीके से प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने उच्च न्यायालय में शपथ पत्र द्वारा "सब कुछ ठीक है" बताया है | मेधापाटकर जी और बिलाल खान ने इस हालात को पूरजोर शब्दों में रखा।



तान्सा पाईपलाइन के लिए 16000 परिवारों के विस्थापन पर सवाल उठाते हुएबी.आर. वर्मा जी ने बताया कि बस्ती को झोंपड़पट्टी में परिवर्तित करने की बात बेबुनियादी है |एक तो सालों से भूमि के 6 मीटर नीचे रही पाईपलाइन को भी लोगों से ख़तरा मानना क्या सही है? दूसरा अब टनेल्स का विकल्प ढूंढकर काम जारी है तो यह सब किसलिए ? निजी ज़मीन पर बसे घर या दुकानों का भूअर्जन तक न करते हुए हटाना क्या कानूनी है ? और हज़ारों परिवारों को माहुल में धकेलना तो बिलकुल नामंजूर है | उच्चतम् न्यायालय के आदेश का आधार बनाकर माहुल में पुनर्वास करने की साजिश को लेकर आयुक्त मेहता को प्रतिनिधियों ने जवाब दिया गया कि आप अगर आदेश पढेंगे तो जानेंगे कि न्यायालय ने मरोल, दिंडोशी जैसेस्थानों पर बसाने को कहा था, माहुल में नहीं |इस पर आयुक्त ने कहा कि एक साथ बसाने के लिए माहुल चुना गया उसे भी मेधा पाटकर जी ने नकारकर कहा कि एचपीसीएल जैसे इस क्षेत्र में पुनर्वास का उसी वक़्त असुरक्षा के हालात का बयान करते हुए विरोध किया गया था । दूसरा एक साथ तो बसाने की तैयारी है ही नहीं | रेखा घाडगे और नंदू भाई ने साफ़ कहा हमें तत्काल निर्णय चाहिए | तय हुआ कि शासन माहुल नहीं रहना चाहने वालों को दूसरी जगह बसाने केलिए महानगरपालिका के अलावा, एमएमआरडीए व अन्य शासकीय संस्थाओं के उपलब्ध मकानों के, जो परियोजना प्रभावितों ही लिए बने हैं,खाली हैं ,उन्हें उपलब्ध करने तथा जिन्हें माहुल में रहना नहीं, उन्हें स्थानांतरित करने पर विचार किया जाना चाहिए। 6 जुलाई को उच्च न्यायालय में होने जा रही सुनवाई के दौरान शासन व महानगरपालिका सही भुमिका अदा करे |

महाराष्ट्र शासन से घोषित हुई स्लम सुरक्षा के लिए कट ऑफ डेट पहले 2000 और अब अगर 2011 हुई है तो उसके अमल के लिए क्या तैयारी है? 2000 पहले के घर भी भीमछाया नगर, विक्रोली में कैसे तोड़े गए हैं ? इन सवालों पर जवाब मंत्री महोदय के पास नहीं था |तेवर के जंगल के नाम पर बस्तियांउजाड़ी जाती हैं तो बड़ी बिल्डिंग्स क्यों नहीं ? बांद्रा कुर्ला कोम्प्लेक्स भी 750 एकड़ तेवर के जंगल काटकर खड़ा किया है और वही जिलाधिकारी, झोंपड़पट्टीपुनर्वसन प्राधिकरण, मुंबई महानगर विकास प्राधिकरण इत्यादि के कार्यालय हैं | भीमछाया नगर में हुई कार्यवाही वनविभाग ने भी गुंडों का साथ देकर तथानोटिस में सर्वेक्षण की गलती होकर की है | इसके प्रति, रोष जगाकर पहले सर्वेक्षण, पात्र लोगों का पुनर्वास, फिर विस्थापन ,आखिर तय हुआ कि डी.पी.सी.मीटिंग के लिए 30 जून याने आज मंत्री महोदय वनविभाग के अधिकारियों सहित बातचीत करवाकर रास्ता निकालेंगे |

चान्द्विली के महेन्द्र और सोमैय्या क्वारी की जनता को, बिना कोई सहकारी सोसायटी, बिना बिल्डर को सहमती, सुमेर कन्स्ट्रकशंस अपनी योजना में खींच रहा है | वहां के गरीब परिवारों के घर भी तोड़े गए थे । इनके प्रकरणों पर अतिरिक्त जिलाधिकारी से मंत्री की बात बात करवाएंगे | तेवर के पेड़ बचानेहैं तो छेडा नगर(चेम्बूर) के पास के क्षेत्र बचाइये, वनविभाग को हस्तान्तरित करे लेकिन जहाँ 2005 से भी पहले की बस्तियां हैं वहां न्यायालय के आदेश से भी नहीं हटाना है | वनविभाग और लोग मिलकर ज़रूर तेवर बचायेंगे, यह बात प्रतिनिधिमंडल वनमंत्री से बातचीत का आश्वासन भी शिक्षामंत्री ने दिया है |

आम्बुजवाड़ी सहित अनेक गरीब बस्तियां पानी के लिए तरस रही हैं, जबकि इस सम्बन्धी, उच्च न्यायालय ने हर बस्ती को पानी देने का आदेश भी दिया हुआ है | गरीब बस्तियों का पुनर्वास नहीं, विकास चाहते हैं | 52% मुंबई की जनता जबकि 9% ज़मीन पर बसी है तो उनकी ज़मीन बिल्डर को न देते हुए,ज़रूरी है कि वहीँ उनके लिए नया गृहनिर्माण हो | भूतपूर्व आयुक्त (महानगरपालिका) सुकथनकर , आर्किटेक्ट शिरीष पटेल, आदि विशेषज्ञों के समूह से औरहमारे संगठन से विशेष संगोष्ठी इस मुद्दे पर होना और प्रधानमंत्री आवास योजना, हर बस्ती को महानगरपालिका से हर सुविधा, राज्य मानव अधिकारआयोग के आदेश अनुसार होना ज़रूरी है, इस पर भी चर्चा हुई |

मंडाला बस्ती की ओर से ये प्रस्ताव जो पहले राजीव आवास और फिर प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत महाराष्ट्र शासन के समक्षरखा गया है , उसे विचार में लेकर ज़रूरत हो तो कोई संशोधन के साथ मंज़ूर किया जाए |इन तमाम मुद्दों पर 7 दिन में कोई ठोस निर्णय के लिए मुख्यमंत्री से चर्चा करना मंत्री तावड़े ने मंज़ूर किया है |