बाबा भलखू के झाझा गांव तक की लेखकीय यात्राएं
ब्रिटिश प्रशासन ने इस अनपढ़ मजदूर को ओवरशीयर की उपाधि दी थी
बाबा भलखू हिमाचल के विश्वविख्यात पर्यटन स्थल चायल स्थित झाझा गांव के अनपढ मजदूर थे जिन्होंने अंग्रेजी राज में शिमला कालका रेल का सर्वे किया था और इस रेल मार्ग की सबसे बड़ी बड़ोग सुरंग का निर्माण करवाया था। उनकी सूझबूझ से ही अंग्रेज हिन्दुस्तान तिब्बत रोड़ के निर्माण के वक्त सतलुज नदी पर कई पुल लगा पाए थे। ब्रिटिश प्रशासन ने इस अनपढ़ मजदूर को ओवरशीयर की उपाधि दी थी और अनपढ़ इंजीनीयर से नवाजा था। उनकी स्मृति में रेलवे विभाग ने शिमला बस स्टेशन पर एक खूबसूरत संग्रहालय बनाया है. इस अनूठी यात्रा से प्रेरित होकर रेलवे विभाग भी हरकत में आ गया है और अब शिमला रेलवे स्टेशन से आगे इस संग्रहालय तक शिकला-कालका रेल आएगी। ये यात्राएं उन्हीं दिव्यात्मा भलखू की स्मृति को समर्पित थीं जिन्हें हिमाचल प्रदेश की चर्चित साहित्य एवं संस्कृति को समर्पित हिमालय मंच ने शिमला की एक अन्य संस्था नवल प्रयास के साथ आयोजित किया।
एस आर हरनोट हिमाचल में ही नहीं, देश और विदेशों तक साहित्य में चर्चित नाम है लेकिन हिमालय साहित्य संस्कृति मंच के बैनरों में बिना सरकारी सहायता के अपने साधनों और लेखकों के सहयोग से विविध साहित्यिक आयोजनों के लिए भी जाने जाते हैं। हरनोट ने शिमला की संस्था नवल प्रयास के साथ मिल कर दो बड़े आयोजन किए । हिमालय मंच ने नवल प्रयास के साथ कंडा जेल में नेलसन मंडेला दिवस पर साहित्यिक गोष्ठी में लगभग पांच सौ कैदियों ने भाग लिया और शिमला से 15 लेखक शामिल हुए। कैदियों ने भी कविता पाठ किए। इसके बाद हरनोट के एक अनूठे कन्सैप्ट के तहत्शिमला-कालका विश्व धरोहर रेलवे में इस रेल के सर्वेक्षक अनपढ़ इंजीनियर बाबा भलखू की स्मृति में 19 अगस्त को 30 लेखकों के साथ आयोजित साहित्य यात्रा अभूतपूर्व थी जिसकी पूरे देश में चर्चा हुई है और उसके बाद बाबा भलखू के पुश्तैनी गांव झाझा(चायल) की साहित्य सृजन यात्रा भी.
शिमला-कालका रेल में इस अनूठे साहित्यिक संवाद का उस वक्त व्यापक स्वागत हुआ जब हरनोट ने अपनी फेसबुक वाल पर 24 जुलाई, 2018 को देर रात 11 बजकर 42 मिनट पर एक पोस्ट लगाई जिसका टाइटल था --शिमला कालका रेलवे में साहित्य गोष्ठी--सादर आमंत्रण। इस अनूठी गोष्ठी को बाबा भलखू साहित्य संवाद रेल यात्रा का नाम दिया गया । महज आठ-आठ सौ रूपए प्रति लेखक लेकर इस यात्रा की सहभागिता रही। इसके अतिरिक्त पुलिस महा निदेशक व लेखक सोमेश गोयल का भी लेखकों को पूरा सहयोग मिला। देश भर के लेखकों ने सहर्ष इस यात्रा में आने की इच्छा जाहिर की लेकिन स्थानाभव के कारण केवल 30 स्थानीय लेखकों का ही आरक्षण हो पाया।
यात्रा 19 अगस्त, 2018 को शिमला रेलवे स्टेशन से 10.25 पर प्रारम्भ हुई। इस यात्रा में साहित्य के सत्र शिमला से बड़ोग तक रेलवे स्टेशनों के नाम से तय किए गए थे। 30 लेखक जब बड़ोग स्टेशन पर पहुंचे तो यह देखकर अचम्भित थे कि वहां असंख्य लोग हाथ में फूल मालाएं लेकर लेखकों का स्वागत कर रहे थे। कैथलीघाट रेलवे स्टेशन के स्टेशन मास्टर संजय गेरा तो पूरी यात्रा में साथ रहे। जेल ट्रैक की सम्पूर्ण जानकारी सुमित राज देते रहे।लेखकों ने बड़ोग में रेलवे कण्टीन में दोपहर का भोजन लेकर फिर शिमला के लिए कालका-शिमला रेल में यात्रा शुरू की और पुनः कहानियों, कविताओं, संस्मरणों और गजलों का दौर चला। आखरी सत्र महिला लेखिकाओं के लिए विशेषतौर पर उनके रचनापाठ के लिए समर्पित किया गया।
दूसरा चरण लेखकों ने 2 सितम्बर, 2018 को बाबा भलखू के पैत्रिक गांव झाझा में पूर्ण किया जिसमें 21 लेखक और बहुत से ग्रामीण शामिल हुए। यात्रा का पहला पड़ाव ऐतिहासिक जुनगा गांव था जो क्योंथल रियासत की राजधानी भी रही है। यहां ग्राम पंचायत जुनगा की प्रधान श्रीमती अंजना सेन ने लेखकों के स्वागत और साहित्य सृजन संवाद का पंचायत घर में आयोजन किया जिसमें तकरीबन 90 महिलाएं और पुरूष शामिल हुए। यह पंचायत और महिला मंडल ने संयुक्त रूप से आयोजित किया। उनके सहयोगी रहे बीडीसी की सदस्या सीमा सेन, उप प्रधान मदन लाल शर्मा, हिमाचल पर्यटन निगम के पूर्व सहायक महा प्रबन्धक देवेन्द्र सेनए महिला मंडल की प्रधान आशा कौंडल और अन्य पंचायत के सदस्य। लेखकों ने पंचायत प्रधान और उपस्थित आमजनों से किसान जीवन को लेकर भी संवाद किया। उन्होंने बहुत सी योजनाओं का ब्यौरा लेखकों से सांझा किया।
हिमाचल मंच के अध्यक्ष एस आर हरनोट ने इस यात्रा के प्रयोजन पर कहा कि इसके बाद लेखक इस तहर की साहित्यिक यात्राएं जारी रखेंगे जो दूर दराज के गांव के लिए वहां के स्थानीय लोगों से सीधा संवाद स्थापित करने की दृष्टि से लेखकों की आपसी सहभागिता से ही होगी। इसके बाद जुनगा के राजा विक्रम सेन ने लेखकों का अपने कलात्मक महल जुनगा में स्वागत किया और लम्बी बातचीत हुई। राजा जुनगा की पुश्तैनी लाईब्रेरी पुरानी और नयी पुस्तकों से सम्पन्न है जिसमें कई हजार हस्तलिखित पांडुलिपियां टांकरी और अन्य भाषाओं की मौजूद हैं जहां तक कोई सरकारी विभाग अभी तक नहीं पहुंच पाया। महल में कई कलात्मक और पुरातात्विक वस्तुओं का बड़ा संग्रह है। इतिहास के शोध छात्र यहां अध्ययन के लिए आते रहते हैं।
इस यात्रा का दूसरा पड़ाव चायल स्थित झाझा गांव था। लेखकों के इंतजार में शिमला आकाशवाणी से सेवानिवृति वरिष्ठ लेखक व रंगकर्मी बी.आर.मेहता जी और चायल एकांत रीट्रीट के मालिक व स्थानीय निवासी देवेन्द्र वर्मा व अन्य ग्रामीण पहले से ही मौजूद थे। भलखू परिवार के वरिष्ठ सदस्य पोस्ट आफिस से सेवानिवृत दुर्गादत ने लेखकों को भलखू के चित्र और बहुत से दस्तावेज दिखाए जो अंग्रेजो ने भलखू के सम्मान में दिए थे। झाझा में एक मात्र भलखू का ही घर है जो अपनी प्राचीनता को बरकरार रखे हुए है। धज्जी दीवाल और पत्थर की छत और बरामदे वाले इस दो मंजिला भवन का पुरातन सौन्दर्य देखते ही बनता है। इसकी धरातल मंजिल में गौशाला और भंडार है जबकि दूसरी मंजिल, जहां भलखू खुद रहते थे, अपने रहन सहन के लिए हैं।
केरल बाढ़ आपदा के लिए भी लेखकों ने धन एकत्रित किया। नवल प्रयास के अध्यक्ष डा0 विनोद प्रकाश गुप्ता के प्रस्ताव पर उन्होंने स्वयं 31000/- रूपए की राशि दी जबकि अन्य 11 लेखकों सर्वश्री एस.आर.हरनोट, सुदर्शन वशिष्ट, कुल राजीव पंत, विद्या छाबड़ा, सुमित राज, दिनेश शर्मा, राकेश कुमार सिंह, अश्विनी कुमार, रत्नचंद निर्झर, पौमिला ठाकुर और उमा नधैक ने दो-दो हजार रूपए का योगदान दिया। 53000.00 रूपए की धनराशि ट्रिब्यून के माध्यम् से भेजी गई।