गंगा की लड़ाई लड़ने वाले मारे जायेंगे
गडकरी ने बयान दिया था कि स्वामी सानंद की 80 प्रतिशत मांगें पूरी कर दी गई हैं
राहुल गांधी ने हाल के एक ट्वीट में संत गोपाल दास के बिगड़ते स्वास्थ्य पर चिंता प्रकट की थी.16 अक्टूबर को संत गोपाल दास ने प्रेस कांफ्रेंस कर अपील की थी कि उन्हें प्रशासन फुटबॉल न बनाए, वे गंगा के लिए उपवास ही नहीं, बल्कि तपस्या कर रहे हैं. 11 अक्टूबर को स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद (डॉ जी डी अग्रवाल) की मौत की खबर के साथ साथ स्वामी गोपाल दास की खबर भी आ रही थी. स्वामी गोपाल दास, जो गंगा बचाने के लिए 24 जून से बद्रीनाथ से उपवास आरम्भ कर ऋषिकेश के त्रिवेणी घाट पर अनशन कर रहे हैं, को भी ऋषिकेश के एम्स में जबरन भर्ती करा दिया गया था, और वहाँ वे अपने को असुरक्षित महसूस कर रहे थे. 16 अक्टूबर को स्वामी गोपाल दास को अस्पताल से हरिद्वार के कनखल स्थित मातरीसदन आश्रम में पहुंचा दिया गया. वहीँ पर आश्रम के मुख्य संचालक स्वामी शिवानन्द और स्वामी गोपाल दास ने शाम को तीन बजे एक प्रेस कांफ्रेंस की, जिसमें ऋषिकेश के एम्स के मेडिकल सुपरीटेंडेंट पर गंभीर आरोप लगाए गए और आशंका प्रकट की गयी कि स्वामी सानंद की मृत्यु प्राकृतिक नहीं थी.
जैसा कि लगातार होता रहा है, प्रेस कांफ्रेंस के बाद प्रशासन ने फिर से अपनी ताकत दिखाते हुए स्वामी गोपाल दास को अगले ही दिन यानी 17 अक्टूबर को फिर से ऋषिकेश के एम्स में भर्ती कर दिया. कई लोगों का अनुमान है कि स्थानीय प्रशासन उनके भी वही हाल करने की तैयारी कर चुका है, जैसा स्वामी सानंद के साथ किया गया. पूरी स्थिति के जानकारों के अनुसार यह सब केंद्र के इशारे पर किया जा रहा है. चुनावों के मौसम में बीजेपी विरोध कैसे भी नहीं पचा पाती है और किसी भी विरोध को कुचलने में लग जाती है.
वर्त्तमान में केंद्र सरकार की सबसे बड़ी विफलताओं में नमामि गंगा शामिल है. सरकार जितना इसका प्रचार करती है, गंगा की हालत और भी खराब हो जाती है. समस्या यह है कि प्रधानमंत्री, नितिन गडकरी और उमा भारती को लगता रहा है कि गंगा के बारे सारा ज्ञान उन्ही के पास हैं, और गंगा की सफाई के बारे में झूठ बोलकर गंगा को साफ़ किया जा सकता है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण गंगा के प्रवाह से सम्बंधित अधिसूचना है, जिसका खूब प्रचार किया गया. इस अधिसूचना को बनाने वालों को इतना भी नहीं पता था कि किसी भी नदी के लिए महत्वपूर्ण इकोलॉजिकल फ्लो होता है, जबकि अधिसूचना में लगातार वर्णित एनवायर्नमेंटल फ्लो का कोई मतलब ही नहीं होता है. इकोलॉजिकल फ्लो पानी का वह बहाव और मात्रा होती है, जिसमें नदी में पनपने वाले सभी जीव जंतु बिना किसी तनाव के पनप सकें. यह अधिसूचना भी केवल उन्नाव तक के लिए है, इसके आगे क्या बहाव होगा यह अभी नहीं पता है.
यहाँ यह जानना आवश्यक है कि केवल इस व्यर्थ की अधिसूचना को जारी कर नितिन गडकरी ने बयान दे डाला था कि हमने स्वामी सानंद की 80 प्रतिशत मांगें पूरी कर दी हैं. स्वामी सानंद कोई आम जनता नहीं थे, वे पर्यावरण के विशेषज्ञ थे, और उन्होंने अधिसूचना को देखकर डस्टबिन में फेंक दिया था. इस 80प्रतिशत मांग को मानने वाले वक्तव्य का विरोध केवल स्वामी सानंद ने ही नहीं बल्कि जल पुरुष राजेन्द्र सिंह समेत अनेक पर्यावरणविदों ने किया था.
जिस गंगा पर सरकार अपने काम पर इतना इतराती है, उसकी कलई एक आरटीआई के जवाब में केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने खोल कर रख दिया है. इसमें बताया गया है कि वर्ष 2013 से 2017 के बीच किसी भी स्थान पर गंगा का पानी पहले से साफ़ नहीं हुआ है, अलबत्ता अनेक महत्वपूर्ण स्थानों, जिसमें वाराणसी और इलाहाबाद (प्रयाग) भी शामिल है, में प्रदूषण का स्तर पहले से बढ़ गया है. गंगा में प्रदूषण बढ़ गया है, यह जानने के लिए किसी भी आंकड़े की जरूरत नहीं है, सब इसे महसूस कर रहे हैं.
सरकार का रवैया पर्यावरण के क्षेत्र में बिलकुल स्पष्ट है – आवाज उठाने वाले हर व्यक्ति मारा जाएगा. स्टरलाईट कौपर के मामले को सभी जानते हैं, स्वामी सानंद का हाल भी देख चुके. स्वामी गोपाल दास भी उसी रास्ते पर हैं. उनके बाद कोई और होगा. स्वामी गोपाल दास ने अपने प्रेस कांफ्रेंस में स्पष्ट बताया है कि किस तरह के व्यवहार उनके साथ ऋषिकेश के एम्स में किया जाता है, जिसमें बड़े अधिकारी से लेकर निचले स्तर तक के कर्मचारी सम्मिलित रहते हैः पुलिस का रवैया भी दमनकारी से अधिक कुछ नहीं होता. स्वामी गोपाल दास के अनुसार उन्हें एम्स में उनके साथ जिस तरह व्यवहार किया जाता है, उसे देखकर पक्का यकीन है कि स्वामी सानंद को मारा गया है. स्वामी शिवानन्द ने भी अपने प्रेस कांफ्रेंस में सबूतों के साथ बताया कि क्यों स्वामी सानंद की मौत सामान्य नहीं है.
गंगा के साथ समस्या यह है, स्वामी या संत एक-एक कर गंगा के लिए अपनी जान देने पर तुले हैं, इन मामलों के विशेषज्ञ जो हैं वे वातानुकूलित कमरों में सेमीनार और कांफ्रेंस में उलझे हैं और आम जनता उदासीन दिखती है. स्वामी सानंद के समय प्रेस और मीडिया को एक-दो दिनों के लिए गंगा की याद आये, फिर सब कुछ शांत हो गया.
आलेख, चित्र महेंद्र पाण्डेय