असम में नागरिकता संशोधन विधेयक के खिलाफ सड़कों पर उतरा जनसैलाब
नागरिकता विधेयक के प्रति भड़की व्यापक नाराजगी
नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016 के खिलाफ हजारों लोग शुक्रवार को गुवाहाटी की सडकों पर उतरे. देशी लोगों और छात्रों के 28 से भी ज्यादा संगठनों के प्रतिनिधि आल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) के साथ कदम से कदम मिलाते हुए असम की राज्य सरकार पर इस विधेयक का विरोध करने के लिए दबाव बनाने के उद्देश्य से सडकों पर आये.
मेघालय और मिज़ोरम की राज्य सरकारों द्वारा इस विवादास्पद विधेयक का विरोध करने के फैसले से इस आंदोलन को और अधिक बल मिला है. इस विधेयक को 2016 में संसद में पेश किया गया था और इसमें अफ़गानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी मुल्कों से आये धार्मिक अल्पसंख्यकों (गैर – मुसलमान) को भारत की नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है.
आसू के सलाहकार समुज्जल भट्टाचार्य ने राज्य सरकार को सत्ता से उखाड़ फेंकने की चेतावनी दी.
इस विरोध प्रदर्शन को संबोधित करते हुए समुज्जल भट्टाचार्य ने कहा, “यह एक जनांदोलन है और हम इसे जारी रखेंगे. लेकिन केंद्र और राज्य सरकार से मेरा अनुरोध है कि वे लोगों की धैर्य की परीक्षा न लें. आपने (असम गण परिषद और भाजपा) देशी लोगों के हितों के लिए काम करने का वादा किया था....और लोगों ने आपके पक्ष में मतदान किया. लेकिन अब धोखा मत दीजिए. वरना आपकी भी कांग्रेस जैसी दुर्गति होगी. आपको सत्ता से उखाड़ फेंका जायेगा.”
कांग्रेस शासित मिज़ोरम की विधानसभा ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016 का विरोध करने का निर्णय लिया है. राज्य के गृहमंत्री आर. लाल्ज़िरिलियाना ने कहा कि प्रस्तावित विधेयक धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के खिलाफ है और यह मिज़ोरम के लिए नुकसानदायक है.
मेघालय में सत्तारूढ़ नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी), जो भाजपा की सहयोगी है, ने भी इस साल मई में इस विधेयक का विरोध करने का एलान किया था.
असम में भाजपा की सहयोगी असम गण परिषद इस विधेयक का लगातार विरोध कर रही है और उसने घोषणा की है कि अगर भाजपा इस विधेयक को लेकर आगे बढती है तो उसे इस गठबंधन से बाहर आने से कोई गुरेज नहीं होगा.
आसू के नेताओं ने सर्वानन्द सोनोवाल के नेतृत्व वाली असम सरकार से अपने दो पड़ोसी राज्यों के नक्शेकदम पर चलने को कहा है. श्री भट्टाचार्य ने पूछा, “अगर मेघालय और मिजोरम जैसे राज्य अपने लोगों के हितों के लिए दृढ़ फैसले ले सकते हैं, तो यही काम हमारी सरकार क्यों नहीं कर सकती?”
असम के मुख्यमंत्री सर्वानन्द सोनोवाल 2003 में भाजपा में शामिल होने से पहले आसू और असम आंदोलन का हिस्सा रहे थे.
धेमाजी इलाके से आसू के सदस्य राकेश ने कहा, “एक समय आसू के नेता रहे सर्वानन्द सोनोवाल को भाजपा नेतृत्व के निर्देशों का पालन करने के बजाय राज्य के लोगों के हितों के लिए खड़ा होना चाहिए. हम अपने मुख्यमंत्री के व्यवहार की निंदा करते हैं.”
असम की ब्रह्मपुत्र घाटी के अधिकांश संगठन और लोग असम समझौते के मुताबिक अवैध नागरिकों की पहचान के लिए 25 मार्च 1971 को नियत तारीख के तौर पर स्वीकार करते हैं. छह वर्षों के लंबे खूनी संघर्ष के बाद अवैध नागरिकों को राज्य से बाहर निकालने के लिए 1985 में असम समझौता हुआ था.
राज्य के बंगाली – बहुल बराक घाटी में कई लोग इस विधेयक के पक्ष में हैं.
तकरीबन 300 से भी अधिक संगठनों ने पिछले महीने इस विधेयक विरोध के खिलाफ अपनी याचिकाएं इस विधेयक का पुनरीक्षण करने वाली संयुक्त संसदीय समिति को गुवाहाटी में सौपी.