विवादों के घेरे में अरुणाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग
उम्मीदवारों के नये आरोपों से आयोग सांसत में
अरुणाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग (एपीपीएससी) इन दिनों गहरी मुसीबत में है. उसे राहत की सांस लेने का मौका नहीं मिल पा रहा है.
राज्य की प्रतिष्ठित सिविल सेवा परीक्षा में पिछले साल बैठने वाले 22 हजार से अधिक उम्मीदवारों की लगातार आलोचना झेल रहे इस स्वायत्त संस्थान पर उम्मीदवारों के एक समूह ने एक नया आरोप जड़ दिया है.
कुल 22, 599 उम्मीदवार पिछले साल नवम्बर में कुल 105 पदों के लिए आयोजित प्रारंभिक परीक्षा में बैठे. लेकिन परीक्षा ख़त्म होने के तत्काल बाद इन उम्मीदवारों ने दावा किया कि सामान्य अध्ययन का प्रश्न – पत्र पाकिस्तान की सिविल सेवा की पिछली परीक्षा के प्रश्न – पत्र का नक़ल था.
इससे मचे बवाल के बाद मामले की छानबीन की गयी और नये सिरे से एक बार परीक्षा लेने का निर्णय किया गया. इस साल 29 जुलाई को बेहद सख्त और नियंत्रित माहौल में पुनर्परीक्षा आयोजित की गयी. परीक्षा की छह घंटे से भी अधिक की अवधि के दौरान पूरे राज्य में मोबाइल इंटरनेट सेवा स्थगित रखी गयी.
राज्य सरकार ने इस परीक्षा में कदाचार रोकने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाये. फिर भी, आयोग इस बारे में पूरी तरह से मुतमईन नहीं है.
परीक्षा में वैकल्पिक विषय के रूप में वाणिज्य (कॉमर्स) का चुनाव करने वाले उम्मीदवारों के एक समूह ने दावा किया कि पूछे गये कुल 125 प्रश्नों में से 64 सवाल “पाठ्यक्रम से बाहर” के थे.
आयोग के समक्ष औपचारिक रूप से शिकायत दर्ज कराने वाले उम्मीदवारों ने बताया कि उक्त 64 सवाल “मुख्य परीक्षा के लिए निर्धारित पाठ्यक्रम” से पूछे गये थे. उनका कहना था कि “प्रारंभिक परीक्षा के लिए निर्धारित पाठ्यक्रम” मुख्य परीक्षा के पाठ्यक्रम से बिल्कुल ही अलग है.
आयोग के नवनियुक्त अध्यक्ष, निपो नबाम ने द सिटिज़न के साथ बातचीत में उम्मीदवारों की तरफ से एक शिकायत मिलने की बात स्वीकार की. उन्होंने यह भी जानकारी दी कि आयोग को इसी किस्म की एक और शिकायत सिविल इंजीनियरिंग विषय का चुनाव करने वाले उम्मीदवारों के एक समूह की ओर से मिली है.
श्री नबाम ने बताया कि परीक्षा का परिणाम घोषित किये जाने से पहले उम्मीदवारों की इन शिकायतों को प्रश्न – पत्र तैयार करने वाले पैनल के पास भेजा गायेगा.
उन्होंने यह भी कहा कि जबतक सिविल सर्विसेज एप्टीच्युड टेस्ट (सीएसएएटी) की प्रणाली लागू नहीं की जाती इस किस्म की समस्याएं सामने आती रहेंगी.
पिछले साल विवाद उठने पर आयोग ने राज्य सरकार से सिविल सर्विसेज एप्टीच्युड टेस्ट (सीएसएएटी) की प्रणाली लागू करने की मांग की थी. लेकिन उम्मीदवारों द्वारा परीक्षा की नयी व्यवस्था को अगली परीक्षा से लागू करने की अपील के बाद इस कदम को टाल दिया गया.
मजेदार तथ्य यह है कि जाने – अनजाने विवादों में फंसने का आयोग का एक लंबा इतिहास है.
वर्ष 2015 में, प्रश्न – पत्र लीक होने के विरोध में उम्मीदवारों को क्रमिक अनशन पर बैठेने पर मजबूर होना पड़ा था. इसकी वजह से परिणाम घोषित करने में काफी देरी हुई थी. सितम्बर 2014 की परीक्षा में बैठने वाले एक छात्र, उजुम पेर्यिंग, को तीन महीने से अधिक अवधि तक जूझने के बाद 72 – घंटे तक भूख – हड़ताल करना पड़ा था.