विलेज रॉकस्टार्स : ऑस्कर की दौड़ में शामिल असमिया फिल्म
प्रचार के लिए सरकार से आर्थिक समर्थन की दरकार
ऑस्कर के लिए भारत की आधिकारिक प्रविष्टि, विलेज रॉकस्टार्स, का विदेशी भाषा की सर्वश्रेष्ठ फिल्म श्रेणी में जीतने की प्रबल संभावना है, बशर्ते सही तरीके से उसे प्रचारित किया जाये. इसके लिए पर्याप्त संसाधन की जरुरत है. लेकिन एक स्वतंत्र फ़िल्मकार के तौर पर रीमा दास के लिए इसकी व्यवस्था करना आसन नहीं, बशर्ते सरकार इसके लिए पहल करे.
हालांकि, लोगों के अपार समर्थन और प्यार को देखते हुए रीमा दास का मानना है कि उनकी जीत हो चुकी है.
रीमा दास ने द सिटिज़न को बताया, “पिछले कुछ दिन बेहद खुशगवार रहे हैं और हर तरफ से लोगों की प्रतिक्रिया पाकर अभिभूत हूं. मेरे पास लोगों के लगातार फोन आ रहे हैं. देश के विभिन्न हिस्सों से लोग ट्वीट कर रहे हैं और शुभकामनाएं दे रहे हैं. ऐसे कई लोग हैं जिन्होंने मुझे वास्तव में कहा कि इस फिल्म के प्रचार के खर्च में योगदान करके उन्हें खुशी होगी. ये सब बेहद सुकून देने वाला है.” विलेज रॉकस्टार्स, खुद से सीखकर आगे बढ़ने वाली इस प्रतिभाशाली फ़िल्मकार का लगभग अकेले का प्रयास है. आधिकारिक रूप से चुनकर ऑस्कर के लिए भेजी जाने वाली यह असम या पूर्वोत्तर भारत की पहली फिल्म है.
इसका 70 से अधिक देशों की फिल्मों के साथ मुकाबला होगा. एक जूरी द्वारा विदेशी भाषा की सिर्फ पांच फिल्मों का नामांकन अकादमी पुरस्कार के लिए किया जायेगा.
रीमा दास ने कहा, “असली यात्रा अब शुरू हुई है. मुझे इस बारे में कुछ ज्यादा जानकारी नहीं है, क्योंकि इस किस्म की परिस्थितियों के लिए मैं बिल्कुल नयी हूं. लेकिन मुझे बताया गया है कि अलग – अलग जगहों पर इस फिल्म के प्रचार के लिए कम – से – कम तीन करोड़ रूपए की जरुरत होगी. मैं 50 लाख रूपए का सहयोग देने के लिए असम सरकार की आभारी हूं. यहां मैं यह कहना चाहूंगी कि भले ही कई लोगों एवं संस्थाओं ने मुझसे संपर्क कर आर्थिक मदद की पेशकश की है, लेकिन केंद्र सरकार से आर्थिक सहयोग पाकर मुझे खुशी होगी.”
यह एक अलग बात है कि ऑस्कर की दौड़ में उनकी फिल्म के प्रचार के बारे में अबतक केंद्र सरकार या फिल्म फेडरेशन ऑफ़ इंडिया की ओर से उन्हें कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है.
रीमा दास ने आगे बताया, “मैं यह देखकर हैरान हूं कि कैसे जिनलोगों को मैं जानती नहीं, उन्होंने भी सोशल मीडिया में मेरी फिल्म का बढ़ – चढ़कर प्रचार किया है. हमारे पास इस किस्म के प्रचार के लिए कोई बजट नहीं था, लेकिन लोगों ने शुरू से ही फेसबुक एवं ट्विटर पर असाधारण प्यार दिखाया है. मैं उन सबकी आभारी हूं.”
अबतक, ऑस्कर के लिए सर्वश्रेष्ठ विदेशी फिल्म की श्रेणी में सिर्फ तीन भारतीय फ़िल्में नामित हुई हैं – मदर इंडिया (1957), सलाम बॉम्बे (1988) एवं लगान (2001).
इस साल ऑस्कर में भेजे जाने के लिए जिन अन्य फिल्मों के नाम पर विचार हुआ, उनमें मेघना गुलज़ार की राज़ी, सिद्धार्थ मल्होत्रा की हिचकी, संजय लीला भंसाली की पदमावात, तबरेज़ नूरानी की लव सोनिया, अश्विन नाग की महानती, चेज्हियान की टू – लेट, राही बर्वे की तुम्ब्बाद, सुकुमार की रंगस्थलम, राहुल भोले एवं विनीत कनोजिया की रेवा और देब मेढेकर की बाइस्कोपवाला शामिल थीं.
विलेज रॉकस्टार्स को पीवीआर नयी दिल्ली, पुणे, मुंबई, बंगलोर और कोलकाता में रिलीज करेगी.
व्यावसायिक रूप से इस फिल्म को असम एवं अन्य महानगरों में 28 अक्टूबर को रिलीज किया जा रहा है. इस फिल्म को अबतक 80 फिल्म समारोहों में प्रदर्शित किया जा चुका है और इसे 44 पुरस्कार मिल चुके हैं.
इस फिल्म का निर्माण लगभग 30 लाख रूपए के बजट से हुआ है. इसके निर्माण में रीमा दास के अपने डीएसएलआर कैमरे का इस्तेमाल हुआ है. इसमें गांव के अप्रशिक्षित बच्चों ने काम किया. अबतक यह फिल्म हर किसी का दिल जीतने में कामयाब रही है. राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में, इस फिल्म ने सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का स्वर्ण कमल पुरस्कार जीता है. इसके अलावा इसे तीन और पुरस्कार मिले हैं, जोकि किसी असमिया फिल्म के लिए दुर्लभ है.
रीमा ने बताया, “कई लोग संदेश भेजकर मुझसे इस फिल्म के रिलीज होने के बारे में पूछ रहे हैं. आखिरकार अपने घर के दर्शकों के सामने इस फिल्म को लाकर मैं बेहद रोमांचित हूं. इसमें कोई शक नहीं कि यह फिल्म दुनियाभर में घूम चुकी है, लेकिन अपने घर के दर्शकों की प्रतिक्रिया जानना मेरे लिए बेहद महत्वपूर्ण है. जिस कदर हमें लोगों का अपार प्यार मिला है और जिस तरह से उन्होंने धैर्य के साथ अपने स्थानीय थिएटर में इस फिल्म के पहुंचने का इंतजार किया है, उसके लिए मैं उनका सिर्फ शुक्रिया अदा कर सकती हूं.”
एक घंटा 27 मिनट की अवधि वाली इस फिल्म में धूनु नाम की 10 साल की एक लड़की के संघर्ष और प्रतिकूल परिस्थितियों में लक्ष्य हासिल करने की उसकी जिजीविषा की कहानी है. इस फिल्म की शूटिंग गुवाहाटी से 50 किलोमीटर दूर फ़िल्मकार के पुश्तैनी गांव, कलारदिया, में हुई है.
इस फिल्म के मुख्य कलाकार, भानिता दास, समेत किसी भी कलाकार ने पहले कभी कैमरे का सामना नहीं किया था.