हसेम अली : सांप्रदायिक सदभाव की एक मिसाल
मजबूरी में स्कूली पढ़ाई बीच में ही छोड़ने वाले एक इंसान ने दिखाई राह
मजबूरी में अपनी स्कूली पढ़ाई बीच में ही छोड़ने वाला एक इंसान आज दर्रांग और उदालगुरी जिले में सांप्रदायिक सदभाव की मिसाल बन गया है. दर्रांग जिले के दलगांव के निवासी हसेम अली एक ऐसे कलाकार हैं जो गरीबी की वजह से अपनी स्कूली पढाई तो जारी नहीं रख पाये, लेकिन दुर्गा पूजा के लिए मूर्तियां बनाने में उनकी सबसे अधिक मांग है.
श्री अली, जो एक धार्मिक मुसलमान हैं, पिछले कई सालों से मूर्तियां बनाने और पंडाल सजाने का काम रहे हैं.
मृणाल देव सरमा नाम के एक कलाकार ने द सिटिज़न को बताया, “मूर्तियों को गढ़ने और पुतले बनाने के हसेम दा (अली) के हुनर की हर कोई सराहना करता है. काम करने की उनकी ललक से हम सभी प्रभावित हैं. जब कोई मुसलमान इतने समर्पण के साथ मूर्तियां गढ़ता है, तो इससे अपने – आप में एक मजबूत संदेश जाता है. यही वजह है कि वे हमारे इलाके में सांप्रदायिक सदभाव की एक मिसाल बन गये हैं.”
यो तो श्री अली को कभी औपचारिक प्रशिक्षण नहीं मिला, लेकिन उन्होंने साइनबोर्डों में लिखना और दूसरों को देखकर मूर्तियां बनाना सीखा. वे सिर्फ इतने से ही संतुष्ट और खुश हो जाते है कि लोग उनके काम की तारीफ करते हैं.
शाम की नमाज के बाद अपने आवास से फोन पर बातचीत करते हुए उन्होंने द सिटिज़न को बताया, “मुझे लगता है कि यह खुदा का दिया हुआ एक तोहफा है. मैं एक कलाकार हूं और मेरे लिए सभी धर्म एक हैं, भले ही लोग उन्हें अलग – अलग नामों से पुकारते हों. जब लोग मेरे काम की तारीफ करते हैं, तो मुझे अच्छा लगता है. इससे भी ज्यादा सुकून तब मिलता है, जब लोग मुझे सांप्रदायिक सदभाव की मिसाल मानते हैं. इससे आगे मुझे और कुछ नहीं चाहिए.”
उन्होंने अपनी सफलता का श्रेय एक स्थानीय कलाकार कालूमोनी डे को दिया. उन्होंने कालूमोनी डे से यह कला सीखी. श्री अली ने बताया, “मुझे कभी औपचारिक प्रशिक्षण नहीं मिला. मैं कालूमोनी दा के बगल में खड़ा रहता था और उन्हें चित्रकारी करते हुए देखा करता था. धीरे – धीरे मैं भी हाथ आजमाने लगा. मेरे बढ़े हुए आत्मविश्वास को देखकर और मुझे अच्छा काम करता पाकर वे बेहद प्रभावित हुए. मैं आज जो कुछ भी हूं, उनकी बदौलत हूं.”
वर्ष 2016 में, खरुपेटिया में रास महोत्सव के दौरान उन्होंने पहली बार रावण का पुतला बनाने का प्रयास किया. दर्शकों एवं आयोजकों की सराहना ने उन्हें इस ओर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया.
श्री अली ने बताया, “अगले साल पूजा के दौरान मैंने अपने साथी कलाकारों को देवी – देवताओं के पुतले बनाते देख रहा था. मैं यह सोचकर थोड़ा हिचक रहा था कि मेरे समुदाय लोग कहीं इसे मुद्दा न बना लें. लेकिन अपने साथियों का प्रोत्साहन पाकर मैंने कोशिश की और नतीजा बढ़िया निकला. वह एक शुरुआत थी. शुक्र रहा कि किसी ने भी मुझसे कोई नकारात्मक बात नहीं कही.”
उन्होंने कहा, “ हर किसी ने मेरा उत्साह बढ़ाया और इसने मुझे अपना काम जारी रखने के लिए प्रेरित किया.”
दलगांव युवा समाज के पूजा समिति के सदस्य दीपंकर राय चौधुरी ने बताया कि पूजा के दौरान बेहतरीन माहौल होता है और हम सभी धर्म को एक बाधा के तौर पर नहीं देखते हैं.
श्री चौधुरी ने द सिटिज़न को बताया, “अली और उनके काम से मैं अवगत हूं. यह एक बहुत बड़ा संदेश है कि यहां के लोग कैसे आपस में सदभाव के साथ मिलकर रहते हैं. वो एक कलाकार है और हम सभी मिलकर पूरे उत्साह से पूजा मनाते हैं.”