अपने पति के लिए न्याय मांगती पत्रकार की पत्नी, साथियों ने लगायी चुप्पी
मणिपुर के पत्रकार किशोरचंद्र वान्गखम की गिरफ्तारी का मामला
रंजीता एलान्गबम के लिए लड़ाई कठिन है, लेकिन वो इसे जीतने के लिए कटिबद्ध हैं. रंजीता, पत्रकार किशोरचंद्र वान्गखम की पत्नी हैं. किशोरचंद्र वान्गखम को पिछले साल दिसम्बर में मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह की आलोचना करने वाली एक पोस्ट की वजह से राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था.
इंफाल ईस्ट में सजीवा सेंट्रल जेल के बाहर अपने पति से मुलाकात के लिए इंतजार करते हुए रंजीता ने द सिटिज़न को बताया, “यह बहुत ही मुश्किल घड़ी है. अकेले लड़ाई लड़ना बहुत ही मुश्किल है. लेकिन मैं थकी नहीं हूं. मैं लडूंगी और जीतूंगी.”
पिछले साल 21 नवम्बर को वान्गखम, जो एक स्थानीय समाचार चैनल आईएसटीवी के एक एंकर – डेस्क एडिटर थे, को इंफाल वेस्ट पुलिस ने भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार की आलोचना करने वाला एक वीडियो सोशल मीडिया अपलोड करने पर गिरफ्तार कर लिया था.
वान्गखम ने, मैतेई भाषा में, ब्रितानी हुकूमत के खिलाफ झांसी की रानी की लड़ाई की याद में एक समारोह आयोजित करने और उस लड़ाई को मणिपुर के स्वतंत्रता आंदोलन से जोड़ने के लिए मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह की कड़ी आलोचना की थी.
उन्हें भारतीय दंड संहिता की धारा 294 और 500 के साथ – साथ देशद्रोह से संबंधित धारा 124-A के तहत गिरफ्तार कर लिया गया. हालांकि, 26 नवम्बर को एक स्थानीय अदालत में पेश किये जाने पर, उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया.
लेकिन 27 नवम्बर को उन्हें दोबारा गिरफ्तार कर लिया गया. इस बार अदालत से बचने के लिए उनकी गिरफ़्तारी राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत की गयी.
दो बेटियों की मां, रंजीता ने कहा कि इस मामले को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की मिसाल बनाना चाहती हैं.
रंजीता ने कहा, “आज उन्हें (वान्गखम को) गिरफ्तार किया गया है, कल किसी और को भी बंद किया जा सकता है. लोगों में अपनी भावना को व्यक्त करने को लेकर खौफ है. लेकिन मैं चाहती हूं कि हर कोई इस लड़ाई जुड़े ताकि हमारे देश में अभिव्यक्ति की आजादी कायम रहे.”
रंजीता ने मणिपुर में वान्गखम के साथी पत्रकारों से अपेक्षित सहयोग न मिलने पर अफसोस और निराशा जाहिर की.
मणिपुर के जिला अस्पताल में बतौर ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट कार्यरत रंजीता ने बताया, “इंडियन जर्नलिस्ट यूनियन और प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया के लोग मददगार रहे हैं. मणिपुर में दो मीडिया संस्थान और कुछ पत्रकार निजी तौर पर मदद करते रहे हैं. लेकिन मुझे लगता है कि इस गिरफ़्तारी के विरोध में और आवाजें उठनी चाहिए थी.”
रंजीता ने इस पूरे घटनाक्रम को मानसिक उत्पीड़न करार दिया और कहा कि उनके पति पर “आवारा, शराबी और बदजुबान” होने के गलत लांछन लगाये गये और अफवाहें उड़ाई गयीं. उन्होंने कहा, “यह सब मेरे और मेरी दो बेटियों के लिए असहनीय था.”
सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता और ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क के श्रीजी भवसार ने कहा रासुका साम्राज्यवादी युग के राष्ट्रीय सुरक्षा अध्यादेश का प्रतिरूप है और भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में किसी पत्रकार और राजनीतिक या नागरिक अधिकार कार्यकर्ता का इस कानून के तहत गिरफ्तार किया जाना अस्वीकार्य है.
मणिपुर स्टूडेंट्स एसोसिएशन (एमएसए), दिल्ली के भूतपूर्व अध्यक्ष थोकचोम वीवोन ने कहा कि भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद से मणिपुर के लोग भय के वातावरण में जी रहे हैं.
थोकचोम ने द सिटिज़न को बताया, “दशकों से लोग सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट) से पहले ही त्रस्त थे और अब ये सब. किशोरचंद्र को भाजपा सरकार द्वारा जानबूझकर उसकी आवाज़ को दबाने के लिए गिरफ्तार किया गया है. सत्ता प्रतिष्ठान के खिलाफ बोलने और उसपर सवालिया निशान खड़े करने वाले किसी के साथ भी यही सलूक होगा.”
उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा सरकार जनता की आवाज़ से डरती है और इसीलिए उसने पिछले कुछ महीनों में दो बार पांच – पांच दिनों के लिए इंटरनेट भी रोक लगाई.
थोकचोम ने कहा, “यहां तक कि किशोरवय के बच्चे भी सरकार के लिए खतरा बन चुके हैं. यह फासीवाद है.”
थोकचोम ने इस मामले में स्थानीय मीडिया के रवैये पर हैरानी जतायी.
हालांकि, भाजपा के प्रवक्ता टिकेन्द्र सिंह ने कहा कि यह “अभिव्यक्ति की आज़ादी” की गलत व्याख्या है.
टिकेन्द्र सिंह ने द सिटिज़न से कहा, “उसने सारी हदें पार कर दीं. यह अभिव्यक्ति की आज़ादी नहीं है. प्रत्येक भारतीय को संविधान का सख्ती से पालन करना चाहिए, लेकिन इस आदमी ने सीमाएं लांघ दीं. और ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. यह तीसरी बार है और उसने इसे आदतन करना शुरू किया. ऐसी परिस्थितियों में, सरकार को चुप नहीं रहना चाहिए.”
उन्होंने आगे जोड़ा, “मणिपुर एक ऐसा राज्य बन गया है जहाँ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर, हर कोई दुस्साहसी हो गया है और संविधान, कानून एवं व्यवस्था के बारे में जानकारी के बिना ये सब कहने लगा है. ऐसी परिस्थितियों में, किसी राज्य का वजूद कैसे बचा रह सकता है?”
इस बीच असम में, 2016 में भाजपा के सत्ता में आने के बाद से देशद्रोह समेत राज्य के खिलाफ अपराध के कम से कम 245 मामले दर्ज किए गए हैं.