आदरणीय गौरक्षको….

आदरणीय गौरक्षको….

Update: 2017-11-13 16:48 GMT

आदरणीय गौरक्षको,

मुझे डर लगने लगा है। सड़क पर चलते हुए , रेलगाड़ी में बैठते हुए, खाना खाते हुए, और शायद सोचते और अपनी बात कहने में भी मुझे डर लगने लगा है। अगर मै कुछ मिनट लेट हो जाऊ, या मेरा फोन ना लगे तो मेरे घर वाले चिंता करने लगते है।हर शाम मातम की शाम तरह सी लगती है, क्यों डरा रहे हो इतना कि हमारा डर खत्म हो जाये और हम भी उस भीड़ में बदल जाये जिसके गुस्से के नाम से तुम आज अत्याचार कर रहे हो।

पहले ऐसा नहीं था, डर था पर इतना नही था। पर पहले ऐसे खबरे भी नही आती थी कि रेलगाड़ी में से किसी को नीचे फेंक दिया गया और पुलिस - प्रशासन को एक गवाह भी नही मिला। हमारी कानून व्यवस्था की धज्जिया तो तब उड़ी जब एक आदमी जिसके ऊपर कत्ल और दंगा करवाने का इलज़ाम हो और उसके मृत शारीर को हमारे राष्ट्रीय ध्वज मे लपेट कर सम्मनित किया गया। कुछ राजनीतिक नेता ,विधायक व सांसद भी पहुचे।

मै पहलु खान भी हूँ , मै जुनैद भी हूँ, मै डी. एस. पी. अयूब भी हूँ ,मै चंद्रशेखर रावण भी हूँ, मै ऊना में मार खाने वाला दलित भी और मै हर वो इंसान हूँ जो भीड़ क हाथो मारा जाता है या मौत की कगार पर पहुंचाया जाता है ;उसका नाम मै चाहे जनता भी हूँ या नही जनता। मै वो दलित भी हूँ जिनको वोट लेते समय हिन्दू और बाद में नीच बना दिया जाता है। मै हिन्दू भी हूँ और मुसलमान भी। मै नीच भी हूँ और स्वर्ण भी।

मै इसी देश का वासी हूँ और मुझे जीने का अधिकार है और ये अधिकार मुझे किसी से मांगने की जुरूरत नही है ये सभी अधिकार मुझे हमारे देश का सविधान देता है। और इसी सविंधान की बदोलत जो लोग इस देश में आग लगाने पर उतारू है मै उनके खिलाफ खड़ा होना चाहता हूँ।

लिखना भी चाहता पर डरता हूँ कि कही सड़क निकलू और मार ना दिया जाऊ, या उस अधमरी हालात में घर पहुंचूं के अपना काम भी खुद ना कर पाउ। मै मरना नहीं चाहता ना ही मै मारना चाहता हूँ ,मै उसी भारत में रहना चाहता हूँ जिसका सपना भारत के स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हर सेनानी ने देखा था। मै उसी धर्मनिरपेक्ष, लोकतंत्र, समाजवादी व न्यायपूर्ण समाज में रहना चाहता जिसकी कल्पना भारत के संविधान की प्रस्तावना में की गयी है। मेरा ये विश्वास है कि एक दिन उस तरह की सामाजिक सरंचना की हमारे देश के हर हिस्से में आएगी।

में बहुत नही जIनता और ना जानना चाहता हूँ। मै बस शाम को अपने परिवार के साथ अगर घूमने जाऊ तो मुझे ये डर ना हो कि मै वापिस आऊंगा या नहीं। मुझे यह डर ना हो कि मेरे लिफाफे को देखकर एक भीड़ मुझ पर हमला ना कर दे। मै उसी खुली हवा में साँस लेना चाहता हूं ।

पर तुम एसा नही चाहते जानते हो क्यों; क्योंकि तुम सोचते नहीं हो, तुम्हें लगता है तुम्हारे हर दुःख का कारण मै हूं , तुम्हे लगता है मै तुम्हारी नौकरियां खा रहा हूँ। जरा पूछो उस आदमी से जो तुम्हे ये बतला रहा है कि कितनी नौकरियां निकली है पिछले कुछ सालो में, वो बताएगा तुम्हे। मुझे गलत मत समझना मै भी उतना ही इस देश का निवासी हूँ जितने तुम हो, और मै भी इस देश से इतना ही प्यार करता हूँ जितना तुम करते हो।

तो अगर इस समय में तुम इस देश के विकास में मदद नहीं कर सकते तो तुमसे हाथ जोड़ के निवेदन है कि कम से कम डर का माहौल मत पैदा करो कि हम उन मुद्दों को भूल जाये जिनके ऊपर बात की जानी चाहिए।

सप्रेम
एक डरा हुआ नागरिक

Similar News

The Vulgar Chase for Marks

Who Was the PM Waving At?