उमर खालिद को कौन मारना चाहता है?

न्यूज चैनलों में बैठ लोग देश में नफरत फैला रहे हैं जिसका शिकार आज आम नागरिक बन रहा है

Update: 2018-08-14 16:22 GMT

अभी पिछले हफ्ते फेसबुक पर उमर खालिद ने यूनाइटेड अगेंस्ट हेट का पेज लाइक इनवाइट भेजा था। कल यानी 13 अगस्त को यूनाइटेड अगेंस्ट हेट (नफरत के खिलाफ एकजुट) की तरफ से बेखौफ आजादी नाम का एक कार्यक्रम कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में रखा गया था। इसी कार्यक्रम में शामिल होने गए उमर खालिद पर जानलेवा हमले की कोशिश हुई।

अब सवाल उठता है कि उमर खालिद को कौन मारना चाहता है? किसकी राजनीति को उमर खालिद से खतरा है। इस सवाल का जवाब भी उमर पर हमले के बाद सोशल मीडिया पर आये रिएक्शन से आसानी से पता चलता है। जिस तरह से सरकार, बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भक्तों की पूरी फौज इस खबर के बाद खूनी अट्टाहास करते हुए सोशल मीडिया पर दिखे, जिस तरह से आईटी सेल वालों ने उल्टा उमर पर ही हमला शुरू कर दिया और पूरे हमले में फेक वीडियोज या गलत तरीके से कोट करके चश्मदीद गवाहों के नाम पर झूठ फैलाया जा रहा है उससे जाहिर होता है कि देश का एक खास तबका उमर से कितना नफरत करता है। इस तबके में सरकार के लोग भी शामिल हैं, बीजेपी के लोग भी, संघ परिवार के लोग भी और उससे जुड़े न्यूज चैनल में बैठे लोग भी।

क्योंकि उमर लगातार धार्मिक कट्टरता और फासीवादी ताकतों के खिलाफ बोलते रहे हैं, क्योंकि उमर देश के प्राकृतिक संसाधनों पर कॉरपोरेट और मुनाफाखोरों के लूट के खिलाफ बोलता रहे हैं, क्योंकि उमर सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते रहे हैं, क्योंकि उमर नफरत फैलाने वालों के बीच मुहब्बत की बात करते रहे हैं, जाहिर है हिन्दू-मुसलमान करवाने वालों को, दंगा करवाने वालों को, लोगों के घरों को उनकी धार्मिक पहचान की वजह से आग के हवाले करने वालों को, दंगे के दौरान महिलाओं के साथ बालात्कार करने वालों को उमर पसंद नहीं, न उमर का होना पसंद है।

यह जानना जरूरी है कि उमर खालिद जिस कार्यक्रम में शामिल होने क्लब गए थे, वह नफरत के खिलाफ आयोजित की गयी थी। उसी नफरत के खिलाफ जिसने रकबर को मारा, अखलाक को मारा, सैफुद्दीन को मारा, जुनैद को मारा, जिसने नजीब को गायब कर दिया। उस कार्यक्रम में गौ-गुंडों द्वारा हत्या कर दिये गए परिवार के लोग भी शामिल थे, जेएनयू से गायब नजीब की मां भी शामिल थीं और गोरखपुर अस्पताल में सैकड़ों बच्चों की जान बचाने वाले डॉक्टर कफील अहमद भी शामिल थे, जिन्हें बाद में हिन्दू-मुस्लिम नफरत फैलाने वाले शिकारियों ने निशाना बनाया। यह विडंबना है कि कल नफरत के खिलाफ आयोजित इस कार्यक्रम में उमर खालिद को भी उसी नफरत का शिकार होना पड़ा।

लेकिन सवाल फिर उठता है कि उमर को मारना कौन चाहता है ? याद कीजिए पिछले तीन साल में जबसे जेएनयू को एक खास तरह के विवाद में खसीटने की कोशिश हुई है, तभी से उमर खालिद को इस देश में विलेन बनाकर पेश करने की चाल शुरू हुई। इसमें सरकार के मंत्री से लेकर पुलिस और फिर सरकार की गोद में बैठे, नफरत फैलाने के एजेंडे में लगे न्यूज चैनल सब शामिल हैं। उमर पर पुलिस ढंग से भले चार्जशीट भी दाखिल न कर पाई हो, लेकिन गोदी मीडिया टाइम्स नाउ, जी न्यूज, रिपब्लिक टीवी पर लागातार उमर का मीडिया ट्रायल होता रहा, बिना किसी सबूत के उमर के खिलाफ काल्पनिक रिपोर्ट होती रही, इस्लामोफोबिया के शिकार ये न्यूज चैनल झूठी खबरें करते रहे, उमर के विदेशी तार जोड़ते रहे, आतंकवादी संगठनों से रिश्ते बनाते रहे।

और ऐसा करना टीवी चैनलों के लिये सबसे आसान था। उमर मुस्लिम समुदाय से आते हैं, भले वो अपनी धार्मिक पहचान को तवज्जो नहीं देते, लेकिन फिर भी उन्हें मुसलमान होने की वजह से टारगेट करना आसान था। न्यूज चैनलों ने अपने नफरत फैलाने के एजेंडे का मोहरा उमर खालिद को बनाया। उमर खालिद जो केवल और केवल एक छात्र था, जो अपनी पीएचडी करने भर की कोशिश में जुटा था, जो किसी भी बड़े राजनीतिक ताकत से नहीं जुड़ा था, जो आम मध्यवर्गीय युवाओं की तरह अपनी पढ़ाई और देश की हालत दोनों के लिये चिंतित था और संघर्ष कर रहा था। न्यूज चैनलों के लिये बड़ा आसान था कि वो ऐसे किसी पढ़े- लिखे-समझदार, लेकिन सत्ता और पावर से दूर खड़े व्यक्ति के खिलाफ अनाप- शनाप खबरें चलाते रहे और देश के बड़े हिस्से में मुसलमानों के खिलाफ जहर फैलाने का कारोबार करता रहे।

आज वो जहर उमर खालिद पर हमले के रूप में हम सबके बीच है। आज वो जहर उन ट्विट्स में दिख रहा है जिसमें हमला चूक जाने पर अफसोस जाहिर किया जा रहा है।

उमर खालिद अभी सुरक्षित हैं, लेकिन अगर उन्हें कुछ भी होता तो क्या ये न्यूज चैनल वाले, ये सरकार में जिम्मेदार पदों पर बैठकर झूठे बयान देने वाले लोग उसके जिम्मेदार नहीं होते? क्या इस हमले के लिये भी वही लोग जिम्मेदार नहीं हैं? मुझे लगता है बिल्कुल हैं। इन सबके दामन पर खून के छिंटे पड़े हुए हैं। देश में हो रही मॉब लींचिंग से लेकर उमर खालिद पर हमले तक।

और फिर स्वतंत्रता दिवस से दो दिन पहले, संसद से कुछ ही दूरी पर, हाई अलर्ट सुरक्षा के बीच अगर गोली चलती है, अगर सरकार और एक खास नफरत की राजनीति करने वालों के खिलाफ बोलने वाले व्यक्ति को जान से मारने की कोशिश होती है, अगर हमलावर भागने में भी सफल हो जाता है तो फिर यह किस तरफ इशारा कर रहा है? इस सुरक्षा में चूक की जिम्मेवारी किसकी है? दिल्ली पुलिस की या फिर दिल्ली पुलिस के सुप्रीमो की?

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