भारत महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित

विश्व के 550 चुनिन्दा महिलाओं के मामलों के विशेषज्ञों की राय

Update: 2018-07-05 16:06 GMT

यह एक संयोग है कि जिस दिन प्रधानमंत्री की सुरक्षा बढ़ाने की खबर दिन भर चलती रही, उसी दिन भारत महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित करार दिया गया. प्रधानमंत्री तो सुरक्षित हैं, पर क्या महिलाओं की सुरक्षा के लिए कोई योजना बनेगी? सरकार ने इस रिपोर्ट पर अपनी मंशा जाहिर कर दी है, शुरू में बताया गया कि अब ज्यादा मामले दर्ज किये जा रहे हैं इसीलिए समस्या बड़ी लग रही है. पर, यदि पूरी रिपोर्ट को देखें तो समझ में आएगा कि जिसने भी इस सर्वेक्षण के सन्दर्भ में यह टिप्पणी की है, उसने रिपोर्ट को शायद पलट कर देखा ही नहीं है. यह रिपोर्ट आंकड़ों के आधार पर बनाई ही नहीं गयी है, बल्कि इसका आधार विश्व के 550 चुनिन्दा महिलाओं के मामलों के विशेषज्ञों की राय है.

कुछ दिनों बाद महिला और बाल विकास मंत्रालय ने बताया कि इस रिपोर्ट को सर्वेक्षण के आधार पर तैयार किया गया है, इसलिए हम इसे स्वीकार नहीं करते. जिस देश में लगभग 10 लाख लड़कियां प्रतिवर्ष भ्रूण हत्या और उपेक्षा के कारण मर रही हों, वहाँ महिलायें सबसे अधिक असुरक्षित हैं इसे बताने के लिए किसी रिपोर्ट की आवश्यकता भी नहीं है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2007 से 2016 के बीच महिलाओं पर होने वाले अपराध में 83 प्रतिशत की बृद्धि हो चुकी है और देश में हरेक घंटे औसतन 4 मामले बलात्कार के सामने आते हैं.

महिलाओं की सुरक्षा और इज्जत का आइना तो सुषमा स्वराज का प्रकरण ही है. कांग्रेस पार्टी ने तो इसकी भर्त्सना की है, पर उनकी अपनी पार्टी में नितिन गडकरी को छोड़कर सब खामोश है. प्रधानमंत्री भी खामोश हैं, जबकि सोशल मीडिया के आतंकवादी उनके समर्थक हैं. इससे इतना तो पता चलता है कि देश में महिलाओं की स्थिति एक जैसी है, चाहे वो शक्तिशाली राजनेता हों, पत्रकार हों या आम महिला हों. सरकार को ये सारी गतिविधियाँ पसंद हैं इसीलिए इसपर कभी लगाम लगेगा, ऐसा लगता नहीं. द गार्डियन में 26 जून को प्रकाशित एक समाचार के अनुसार, “हिन्दू राष्ट्रवादी और दुनिया के राजनेताओं में डोनाल्ड ट्रम्प के बाद ट्विटर पर सबसे बड़े समर्थकों की संख्या वाले नरेन्द्र मोदी पर लगातार ये आरोप लगते रहे हैं कि वो अपने अभद्र और अश्लील भाषा का उपयोग करने वाले समर्थकों को नियंत्रित करने के लिए कभी प्रयास नहीं करते.”

समाचार के अनुसार, “नरेन्द्र मोदी कुछ ऐसे अकाउंट भी फॉलो करते हैं जो विरोधियों को ट्रोल करते हैं और जातिवादी नफरत फैलाने वाले मैसेज करते हैं. जुलाई 2015 में नरेन्द्र मोदी ने सोशल मीडिया पर अपने 150 समर्थकों को आवास पर दावत के लिए आमंत्रित किया था, इनमे कई पर महिलाओं पर अभद्र टिप्पणी करने और धमकाने के आरोप भी लगे थे”. सोशल मीडिया पर जिस तरीके से महिलाओं का शोषण किया जा रहा है, वैसा इसके पहले कभी देखा नहीं गया. अनेक महिला पत्रकार पहले भी इसका शिकार हो चुकी हैं. बलात्कार की धमकी तो जैसे सामान्य हो चली है, हत्या तक की धमकियाँ खुलेआम दी जा रहीं हैं. इन सबके बावजूद सरकार चुप है तो उसकी मंशा पर सवाल उठाना लाजिमी है. हाल में पत्रकार राना अय्यूब पर सोशल मीडिया में धमकियों का ऐसा सिलसिला शुरू किया गया था जिसकी भर्त्सना संयुक्त राष्ट्र के ह्यूमन राइट्स कमीशन ने भी की थी.

रिपोर्ट में बताया गया है कि यौन हिंसा, शोषण और महिलाओं को बंधक बनाकर गुलामों जैसे काम करवाने में भारत सबसे आगे है. भारत के बाद क्रम से अफ़ग़ानिस्तान, सीरिया, सोमालिया, सऊदी अरब, पाकिस्तान, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ कांगो, येमन, नाइजीरिया और अमेरिका का नाम है. विकसित देशों में अमेरिका ही ऐसा देश है जो सबसे ऊपर के 10 देशों में शामिल है. वैसे यौन हिंसा के सन्दर्भ में अमेरिका तीसरे स्थान पर है.

थोमसन रायटर्स फाउंडेशन की इस रिपोर्ट को विश्व के 550 चुनिन्दा महिलाओं के मामलों के विशेषज्ञों की राय के आधार पर बनाया गया है. इन विशेषज्ञों में नीति निर्माता, सामाजिक टिप्पणीकार, गैर सरकारी संगठनों के विशेषज्ञ, स्वास्थ्य सेवा विशेषज्ञ, शिक्षाविद और मददगार संस्थाओं के प्रतिनिधि सम्मिलित थे. इससे पहले वर्ष 2011 में ऐसी पहली रिपोर्ट तैयार की गयी थी, जिसमें अफ़ग़ानिस्तान, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ कांगो, पाकिस्तान, इंडिया और सोमालिया क्रम से सबसे असुरक्षित देश थे. इन विशेषज्ञों से महिलाओं से सम्बंधित 6 विषयों – स्वास्थ्य सेवा, भेदभाव, सांस्कृतिक परंपरा, यौन हिंसा, गैर-यौन हिंसा, और मानव तस्करी – के सन्दर्भ में संयुक्त राष्ट्र के कुल 192 सदस्यों में से सबसे खराब 10 देशों का नाम बताने को कहा गया था.

रिपोर्ट से इतना तो स्पष्ट है कि महिलाओं पर हिंसा या उनसे भेदभाव के मसले पर हमारे देश की छवि पूरी दुनिया में कैसी है, पर सरकार ने इस रिपोर्ट पर अपनी ऑंखें बंद कर ली हैं. दूसरी तरफ संयुक्त राष्ट्र के घोषणा पत्र जिसमे कहा गया है, वर्ष 2030 तक महिलाओं को बराबरी का दर्जा हरेक देश को देना है और इनसे भेदभाव ख़त्म करना है, पर भारत ने भी हस्ताक्षर किया है.

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