एक युग का अंत : “नागालैंड के गांधी” का निधन
नटवर ठक्कर ने 86 वर्ष की आयु में अंतिम सांस ली
पद्मश्री सम्मान प्राप्त गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता नटवर ठक्कर के निधन से पूर्वोत्तर भारत ने एक महान हस्ती को खो दिया. उन्हें ‘नागालैंड का गांधी’ भी कहा जाता था.
श्री ठक्कर ने 86 वर्ष की उम्र में एक निजी अस्पताल में अपने जीवन की अंतिम सांस ली. वे किडनी की बीमारी से जूझ रहे थे. वर्ष 1955 में 23 साल की उम्र में नागालैंड आने के बाद, वे यहीं के होकर रह गये और ताउम्र इस क्षेत्र में गांधीवादी विचारों का प्रचार करते रहे.
उनकी मौत की ख़बर पाकर नागालैंड के मुख्यमंत्री एन. रियो ने अपने शोक संदेश में कहा, “नागालैंड गांधी आश्रम के संस्थापक पद्मश्री नटवर ठक्कर के निधन की ख़बर से मैं दुखी हूं. समाज की भलाई में उनका उल्लेखनीय योगदान था. ईश्वर उनके परिवार के सदस्यों, मित्रों एवं प्रियजनों को इस तकलीफ को सहने की शक्ति दे एवं उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे.”
श्री ठक्कर अपने पीछे अपनी पत्नी लेन्तिना ओ, दो पुत्रियों एवं एक पुत्र को छोड़ गये हैं.
नागालैंड के राज्यपाल पी बी आचार्य ने कहा, “स्वर्गीय नटवर ठक्कर से मेरी निजी मित्रता थी और मेरा उनसे लंबे समय तक जुड़ाव रहा. वर्ष 1962 के दुर्भाग्यपूर्ण चीनी हमले के बाद पूर्वोत्तर भारत के अपने पहले दौरे के समय मैं 1965 में उनके आश्रम में गया था. उनके निधन से मुझे व्यक्तिगत क्षति पहुंची है.”
नटवर ठक्कर ने 1955 में मोकोकचुआंग जिले के चुचुयिमलंग गांव में नागालैंड गांधी आश्रम की स्थापना की थी. उस समय उनकी उम्र सिर्फ 23 साल थी.
इस गांधीवादी कार्यकर्ता के शुरूआती दिनों को याद करते हुए, गुवाहाटी के वरिष्ठ पत्रकार नवा ठाकुरिया बताते है कि 1955 के मध्य में महाराष्ट्र से नागालैंड आने के बाद नटवर ठक्कर को शुरुआत में बहुत ही कठिन दौर से गुजरना पड़ा.
गुवाहाटी प्रेस क्लब के सचिव, श्री ठाकुरिया बताते हैं, “शुरुआत में, किसी ने भी उनका स्वागत नहीं किया. अधिकांश लोगों ने उनपर शक किया और उन्हें एक जासूस माना. वे वापस लौटकर एक आरामदायक जिंदगी जी सकते थे. लेकिन वे एक सच्चे गांधीवादी थे. उन्होंने यहां रुककर सभी बाधाओं का सामना करने का फैसला किया. नागालैंड में किये गये उनके कार्यों में स्कूली पढ़ाई बीच में छोड़ने को मजबूर बच्चों एवं शारीरिक रूप से अक्षम लोगों को व्यावसायिक प्रशिक्षण, गांवों में प्राथमिक विद्यालय, चिकित्सा केन्द्रों एवं पुस्तकालयों की स्थापना शामिल है. उन्होंने लोगों को मधुमक्खी पालन और गुड़ के उत्पादन में संलग्न कर और तेल की मिलों, बायोगैस प्लांटों, लकड़ी की कारीगरी की दुकानों और खादी विक्रय केन्द्रों की स्थापना करके उन्हें जीविका कमाने में मदद दी.”
श्री ठाकुरिया ने यह भी बताया कि श्री ठक्कर कई मौकों पर गुवाहाटी प्रेस क्लब आये थे और पत्रकारों को संबोधित किया था.
श्री ठक्कर ने लेन्तिना ओ नाम की एक स्थानीय लड़की से शादी की, जिसने शीघ्र ही उनके मिशन में उनका हाथ बंटाना शुरू कर दिया. सामाजिक कार्यों में उनके उल्लेखनीय योगदानों के लिए लेन्तिना ओ को भी पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया.
श्री ठाकुरिया ने बताया कि श्री ठक्कर ने विभिन्न पुरस्कारों में प्राप्त अधिकांश राशि को गांवों के कल्याण के लिए दान में दे दिया.
श्री ठक्कर के कार्यों ने न सिर्फ नागालैंड, बल्कि पड़ोसी राज्यों के लोगों को भी प्रेरित किया.
बाल – अधिकार कार्यकर्ता एवं बाल – अधिकारों के लिए काम करने वाली गुवाहाटी स्थित संस्था ‘उत्साह’ के संस्थापक, मिगुल दास कुए, उन्हें अपने एक गुरु के रूप में याद करते हैं. “मैंने अपना एक गुरु, बड़ा भाई और प्रिय मित्र खो दिया है. नटवर भाई को बस एक फोन करने की जरुरत होती थी और वे हमेशा मदद के लिए उपलब्ध रहते थे. उनकी समझदारी भरी बातों ने मुझे उत्साह के शुरूआती दिनों में कई गंभीर चुनौतियों से निपटने में मदद दी. उत्साह आज जो कुछ भी है, उसे बनाने में नटवर भाई ने एक प्रारंभिक सलाहकार के रूप में अहम भूमिका निभायी थी. वे हमें बहुत याद आयेंगे.”